एक समय की बात है, जब रात का समय आता था और चाँदनी रातें अपनी कहानियों के साथ आसमान को सजाती थीं। यह वह समय था, जब छोटे-छोटे बच्चे अपनी माँ-पापा से कहानियों की मिठास में खो जाते थे। इन कहानियों को ही इंग्लिश में bedtime stories for kids in hindi कहा जाता है।
आइए, हम एक नए सफर पर निकलें, जहां हर कहानी एक सिख देती है और हर किसी को एक नया सबक सिखाती है। इन कहानियों में हैरत भरी दुनिया के किस्से हैं, जो आपके बच्चों को नई राह दिखा सकते हैं और उन्हें सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
तो बच्चो, आपकी आँखों को बंद करें और सुनें इस नए सफर की शुरुआत करते हैं हमारे बच्चों की Bedtime stories के साथ!
Bedtime Stories For Kids In Hindi
कहानियाँ जो हम पढ़ने वाले हैं !
बिल्ले के न्याय की कहानी
एक बड़े भारी पीपल के पेड़ के तले एक तीतर रहता था। उसका घॉसला पेड़ के ठीक नीचे एक बिल में था। पीपल के आसपास जो भी छोटे-बड़े पशु-पच्ची रहते थे उन सभी से उसकी गहरी दोस्ती थी।
एक दिन तीतर अपने आरामदेह घर को छोड़कर खाने की तलाश में निकला। बहुत दूर उड़ने के बाद वह एक धान के खेत में पहुंचा। उन दिनों फसल पकने पर थी धान के पौधों में चावल के दाने तैयार हो चुके थे और चावल तीतर का मन-भाता खाना था ।
भोजन की भरमार देखकर वह उसी खेत में टिक गया और जी भरकर चावल खाता रहा। वहां उसने दूसरे बहुत से परिन्दों को दोस्त बनाया और उनके साथ ठाठ से समय बिताया । उस दिन वह घर वापस नहीं लौटा, दूसरे दिन भी नहीं लौटा और तीसरे- चौथे दिन भी नहीं लौटा। इस तरह उसी खेत में कई दिन गुजर गये ।
जिन दिनों तीतर बाहर था उन दिनों कहीं से एक खरगोश आया । उसके रहने का कोई ठिकाना नहीं था । उसने तीतर का खाली घोंसला देखा तो उसी को अपना घर बना लिया ।
कुछ दिन बाद तीतर वापस आया तो अपने घर में खरगोश को घुसा देखकर बड़ा नाराज हुआ ।
“तुम यहां क्या कर रहे हो ?” उसने पूछा, “यह तो मेरा घर है ।”
“तुम्हारा ?” खरगोश ने कहा, “जब होगा तब होगा, अब यह मेरा घर है। में यहां एक-दो नहीं कई दिनों से रह रहा हूं।”
“लेकिन तुम रह कैसे रहे हो ?” तीतर ने कहा, “यह घर मैंने अपने लिए अपने ही हाथों बनाया था । मैं जिन्दगी भर इसी घर में रहा हूं । यकीन न आता हो तो पड़ोस में किसी से भी पूछ सकते हो ।”
“में क्यों पूछू ?” खरगोश ने कहा, “में जब यहां आया था तब यह मकान बिल्कुल खाली था । तभी में इसमें रहने लगा। मकान उसी का होता है जो उसमें रहता है। अब यह मकान मेरा है। तुम्हें यकीन न आता हो तो तुम्हीं पड़ोसियों से क्यों नहीं पूछ लेते ।”
“यह सब बकवास है।” तीतर ने चिल्ला कर कहा, “मैं कुछ दिनों के लिए बाहर चला गया था । अब में वापस आ गया हूं । फौरन मेरा मकान छोड़ो और यहां से मुंह काला करके भाग जाओ ।”
“यह कभी नहीं हो सकता,” खरगोश ने कहा, “यह मेरा मकान है, मैं इसमें रहूंगा और ठाठ से रहूंगा ।”
इस तरह तीतर और खरगोश के बीच झगड़ा होने लगा । उनकी तूत्तू मैं-मैं सुनकर कई पशु-पक्षी जमा हो गये । उन्होंने तीतर की बात सुनी और खरगोश का जवाब भी सुना । मगर कोई भी यह तय नहीं कर सका कि मकान किसका हो । उन्होंने सुझाया कि मामला हल करने के लिए किसी कानूनी जानकार की सलाह लेनी चाहिए इसपर तीतर और खरगोश ने अपना मामला किसी पंच के सामने रखने का निश्चय किया।
मगर ऐसे उलझे हुए कानूनी मसले को सुलझाने के लिए योग्य पंच की जरूरत थी और ऐसा पंच खोजना आसान नहीं था। पंच की खोज में वे दोनों घंटों तक, मीलों इधर-उधर भटकते रहे ।
अन्त में वे गंगा के तट पर पहुंचे। तट के पास, उनसे कुछ ही दूरी पर एक बड़ा-सा बिल्ला खड़ा दिखायी पड़ा। चिल्ले पर नजर पड़ते ही उनके कदम जहां के तहां रह गये। दोनों अच्छी तरह जानते थे कि चिल्ला कितना खतरनाक जानवर होता है।
वह बिल्ला बड़ा ही घाघ था। खरगोश और तीतर को अपनी ओर आते देख उसने चट आंखें मूंद लीं। हाथ में माला पकड़ ली और पिछले पैरों पर खड़े होकर रामनाम का जाप शुरू कर दिया।
तीतर और खरगोश ने बिल्ले का पूजा-पाठ देखा तो चक्कर में पड़ गये । ऐसा धर्मात्मा बिल्ला उन्होंने पहली मरतबा देखा था। उन्होंने मन हो मन सोचा ‘अहा ! यह कितनी अच्छी तरह से भगवान का नाम जप रहा है।’
“मेरे ख्याल से इस बिल्ले को ही पंच बना लेना चाहिए,” खरगोश ने कहा ।
“मैं भी यही सोच रहा हूं,” तीतर ने कहा, “लेकिन हमें जरा सावधान रहना होगा। आखिर यह हमारा कुदरती दुश्मन भी तो है।”
बिल्ले का पूजा-पाठ खत्म होने तक दोनों चुपचाप खड़े रहे । पूजा समाप्त कर विल्ले ने धीरे से आंखें खोलीं और उन दोनों की ओर देखा ।
“हे धर्मात्मा,” तीतर ने बिल्ले से कहा, “मेरे और इस खरगोश के बीच एक छोटा-सा झगड़ा उठ खड़ा हुआ है। मगर मामला कानूनी है। आप कृपा कर इस झगड़े का निबटारा कर दीजिये । हम में से जो भी गलती पर होगा उसे आप सजा दे सकते हैं।”
“राम, राम कैसी बातें करते हो भाई ?” चिल्ले ने कहा, “भगवान का नाम लो, ऐसी कुत्राणी न बोलो। में तो दूसरों का दुख देख भी नहीं सकता और तुम कहते हो ‘हममें से एक को सजा दे देना, हरे कृष्ण, हरे कृष्ण! जो दूसरों को दुख देता है वह भगवान के कोप का भाजन बनता है। खैर हटाओ इन बातों को, अपनी कहो तुम्हारे झगड़े का जो किस्सा है कह डालो । मैं सही फैसला करके बता दूंगा कि गलती किसकी है।”
तब तीतर ने कहा, “किस्सा यों है कि में कुछ दिन बाहर रहने के बाद घर लौटा तो देखता क्या हूं कि इस खरगोश ने मेरे घर पर कब्जा जमा लिया है।”
“तुम्हारा घर कैसा ?” खरगोश ने चिल्लाकर कहा, “वह घर मेरा है।”
“शान्ति, शान्ति,” बिल्ले ने कहा, “जरा मुझे पूरा किस्सा तो सुन लेने दो ।”
इस पर पहले तो तीतर ने अपनी बात कही। फिर खरगोश ने अपना दावा पेश किया ।
दोनों की बात सुनकर बिल्ला कुछ देर मौन रहा फिर इस प्रकार कहने लगा ।
“क्या बताऊं भाईयो, में अब बूढ़ा हो गया हूं। मुझे न तो ठीक-ठीक दिखायी देता है न सुनाई देता है। में तुम्हारा मामला पूरी तरह से समझ ही न सका तुम दोनों जरा नजदीक आकर बात करो तो अच्छा रहेगा ।”
इतनी देर में खरगोश और तीतर दोनों ही बिल्ले का डर भूल गये थे। उन्हें बिल्ले पर पूरा-पूरा भरोसा हो चला था । वे दोनों वेबेफिक्री से उसके नजदीक खिसक आये
अचानक बिल्ले ने बिजली की तरह तड़प कर वार किया और एक ही झपाटे में दोनों का काम तमाम कर दिया ।
बुरी संगत की कहानी
राजा गजोधर के भव्य कमरे में बबली नाम की एक जूँ रहती थी। उसके दिन बड़े सुख से कट रहे थे। राजा के पलंग पर उसका एकछत्र राज्य था। उसके अलावा उस पलंग पर अन्य कोई जंतु न था।
बबली राजा के तकिये में रहती थी । तकिये से सदैव मंद-मंद सुगंध आती रहती क्योंकि दासियाँ पलंग पर तरह-तरह के इत्र छिड़का करती थीं। बबली पूरे दिन सुगंधित तकिये में दुबकी चैन से सोती रहती। संध्या को जब उसकी नींद टूटती वह तकिये के भीतर से जगमग शयनकक्ष को देखती रहती । कभी वहाँ किसी नर्तकी का सुंदर नृत्य होता, कभी किसी गायिका का सुरीला गायन, कभी किसी कलाकार का सितार वादन ।,
धीरे-धीरे राजा को नींद आ जाती। बबली धैर्य से उसके खर्राटों की प्रतीक्षा करती। जैसे ही राजा खरटि भरने लगता वह समझ जाती कि अब वह भूख मिटा सकती है। बबली निःसंकोच तकिये से बाहर निकल आती। पेट भर राजा का खून चूसती । फिर वापस तकिये में जाकर छिप जाती। यह क्रम महीनों से चला आ रहा था। पर न कभी राजा को किसी प्रकार का कष्ट हुआ, न किसी की दृष्टि बबली पर पड़ी।
एक दिन की बात है। दिन का समय था। बबली चैन से तकिये में सो रही थी कि अचानक किसी जंतु की आहट से उसकी नींद उचट गयी। उसने आँखें खोलकर आस-पास देखा। मगर तकिये में कोई न दिखाई दिया। बबली को लगा कि उसे भ्रम हुआ है। कोई जंतु भला कैसे राजा के पलंग पर आ सकता है। अनेक शयनकक्ष की सफाई में लगी रहती हैं, प्रतिदिन पलंग की झाड़-पोंछ होती रहती है। द्वार पर सैकड़ों पहरेदार चौकन्ने होकर पहरा देते रहते हैं। फिर कैसे कोई जंतु पलंग पर आ सकता है? लेकिन किसी के रेंगने की आहट बराबर आ रही थी। बबली ने सोचा कि तकिये से बाहर निकलकर पता लगाना चाहिए।
बबली अभी तकिये से बाहर निकल ही रही थी कि अचानक उसकी दृष्टि एक गोल-मटोल जंतु पर पड़ी। वह ठिठक गयी। जंतु उसके सामने आकर खड़ा हो गया और बबली के कुछ कहने से पहले ही हाथ जोड़कर बोला, “मुझ पर नाराज न हो बहन। मैं मुसीबत का मारा हूँ, तुम्हारी शरण में आया हूँ। अपने घर में थोड़ी-सी जगह दे दोगी तो जीवन-भर तुम्हारा उपकार नहीं भूलूँगा।”
उसकी गिड़गिड़ाहट का बबली पर कोई असर न हुआ। वह गुस्से से भरकर बोली, “आखिर तुम हो कौन? यहाँ आने की तुम्हारी हिम्मत कैसे पड़ी?”
“मैं खटमल हूँ बहन । तुम भले ही मुझे न जानती हो, मगर हम एक ही बिरादरी के हैं।” खटमल ने काँपते स्वर में कहा। फिर अपने ऊपर पड़ी विपत्ति बयान करने लगा कि वह बड़े आराम से एक सराय में रहता था। सराय में ठहरने के लिए तरह-तरह के लोग आते थे। उनके खून का स्वाद भी अलग-अलग होता था। वह मजे से लोगों का खून पीता और ठाठ से रहता था। एक रात राजा का एक सैनिक सराय में ठहरा। वह सैनिक का खून पीने उसकी गर्दन पर चढ़ गया। सैनिक का खून इतना मीठा था कि उसे पीते ही नशा आ गया। वह सैनिक के कपड़ों में ही चिपककर सो गया। कब सुबह हुई, कब सैनिक सराय छोड़कर राजमहल में आया, उसे पता ही नहीं चला।
अभी कुछ क्षण पहले ही उसकी नींद टूटी तो उसने अपने को राजा के शयनकक्ष में पाया। सैनिक किसी काम से राज के शयनकक्ष में आया था। शयनकक्ष देखकर वह भाँप गया कि इसी जगह बह अपनी जान बचाकर छिप सकता है। वह फुर्ती से सैनिक के कपड़ों में से सरक कर फर्श पर गिर पड़ा और रेंगकर पलंग पर चढ़ गया। खटमल की करुण कथा सुनकर भी बबली का मन न पसीजा। उसने कहा, “यह सराय नहीं, राजमहल है। यहाँ चारों तरफ सैनिकों के पहरे लगे हुए हैं। किसी ने तुम्हें देख लिया तो मेरी भी शामत आ जाएगी। गनीमत इसी में है कि तुम फौरन यहाँ से चलते बनो।”
दाल न गलती देख चालाक खटमल ने पैंतरा बदला, “तुम जितनी सुंदर हो बहन उतनी ही दयालु भी। मैंने आज तक तुम जैसी समझदार जूँ नहीं देखी। अगर तुम मुझे अपने घर में शरण नहीं दोगी तो मैं इसी क्षण सिर पटककर अपने प्राण त्याग दूँ।”
अपनी प्रशंसा सुन बबली का मन एकाएक पिघल उठा। आज तक कभी किसी ने उसकी इतनी प्रशंसा की थी। वह नम्र होकर बोली, “ठीक है। तुम यहाँ रह सकते हो। मगर एक शर्त है। सदैव मेस कहना मानोगे।”
“मानूँगा ।” खटमल ने कहा।
अब दोनों मजे से साथ रहने लगे। बबली ने पाया कि खटमल स्वभाव से बड़ा नेक और आज्ञाकारी है। उसके आ जाने से घर में रौनक आ गयी है।
दिन बीतने लगे । मरियल-सा खटमल राजा का पौष्टिक खून पीकर काफी तगड़ा हो गया। पर धीरे-धीरे वह रंग बदलने लगा। एक दिन की बात है। दोपहर का समय था। बबली गहरी नींद में सो रही थी कि आहट से उसकी नींद उचट गयी। उसने खटमल को तकिये में रेंगते पाया।
“क्यों, तुम सोए नहीं?” बबली ने पूछा।
“नींद नहीं आ रही।” खटमल ने उत्तर दिया, “मुझे बड़ी जोर की भूख लगी है। राजा पलंग पर लेटा आराम कर रहा है। मैं उसका खून चूसकर पेट भरने जा रहा हूँ।”
खटमल की बात सुनकर बबली डर गयी। उसे समझाने लगी कि दोपहर का समय है। भोजन करके राजा सुस्ता रहा है। वह ऐसे में खून चूसने जायेगा तो राजा को फौरन पता चल जाएगा। फिर हमारी खैर नहीं। वह अपना गलत इरादा छोड़ दे।
मगर खटमल ने उसकी एक न सुनी। वह राजा की गर्दन से जाकर चिपक गया और दाँत गड़ा खून पीने लगा।
राजा को अचानक सुई की नोक-सी तीखी चुभन महसूस हुई। वह पीड़ा से तिलमिलाकर उठ बैठा और अपने सेवकों को पुकारने लगा। सेवकों को पहले तो उसने बुरी तरह फटकार लगाई कि वे उसके बिस्तर की सफाई ठीक से क्यों नहीं करते। जरूर विस्तर पर कोई सूक्ष्म जंतु छिपा है, जिसने उसे काट खाया है। फिर आदेश दिया कि वे बिस्तर का कोना-कोना छान मारें और तुरंत जंतु को खोज निकालें।
राजा का क्रोध देख सेवक भय से काँपने लगे। उन्होंने बिस्तर उलट दिया और ध्यान से देखने लगे। परन्तु पूरा पलंग छान मारने के बाद भी गद्दों पर कुछ न मिला। अब तकिये की बारी आयी। सेवकों ने तकिये को उलटा-पलटा। फिर उसका गिलाफ उतारकर देखना शुरू किया। अचानक उनकी दृष्टि तकिये के एक कोने से चिपकी बबली पर पड़ी। सेवक खुशी से उछल पड़े। एक सेवक ने तुरंत बबली को उँगलियों से मसल कर मार डाला और राजा का पलंग फिर से उसी तरह बिछा दिया।
हुआ यों कि जैसे ही राजा के सेवकों ने गद्दों को उलटना-पलटना शुरू किया, धूर्त खटमल सर्र से दौड़कर पलंग की दरार में जा छिपा। वहाँ न सेवकों की दृष्टि जा सकती थी, न किसी जंतु के छिपे होने का अनुमान ही हो सकता था। दुष्ट खटमल इसी कारण बच गया और बेचारी बबली को अपने प्राण गँवाने पड़े।
मूर्ख पण्डित की कहानी
एक बार की बात हैं, एक गाँव में एक पण्डित रहता था। वह शक्ति की चाह में भगवान की घोर तपस्या करने लगा। बहुत समय तक घोर तपस्या के बाद भगवान ने दर्शन दिये और पण्डित से पूछा कि तुम्हें क्या चाहिए ? पण्डित ने कहा कि मुझे संजीवनी चाहिए जिससे मैं मृत व्यक्ति को जिन्दा कर सकूँ। भगवान ने पण्डित को संजीवनी देते हुए कहा कि इसका प्रयोग सोच-समझकर करना। लेकिन संजीवनी मिलते ही पण्डित खुशी से पागल हो गया। उसके अन्दर घमण्ड भर गया कि अब तो मैं सबसे ताकतवर इन्सान बन जाऊँगा। सभी मेरे आगे सर झुकायेंगे। घमण्ड से चूर पण्डित गाँव की ओर लौटने लगा कि तभी उसके मन में एक विचार आया कि क्या सच में यह संजीवनी है कहीं भगवान ने मेरे साथ कोई छल तो, नहीं किया। तभी उसे जंगल में मरा हुआ शेर दिखाई दिया। उसने सोचा कि क्यों ना मैं इस जानवर पर भगवान की दी हुई संजीवनी का प्रयोग कर लूँ। यह सोचते हुए पण्डित ने संजीवनी के कुछ पत्ते शेर के मुँह में डाल दिये। फिर क्या था शेर तो उठ खड़ा हुआ और दहाड़ते हुए पण्डित की ओर लपका। अब पण्डित को अपनी गलती का अहसास हुआ लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। शेर पण्डित को खा चुका था।
भोले रामदीन की कहानी
एक बार गाँव में बाढ़ आई। बाढ़ में निर्धन किसान रामदीन का सबकुछ नष्ट हो गया। घर ढह गया, फसल उजड़ गई। गाय, बैल बह गए। बेघर-बार रामदीन के सामने परिवार को पालने की समस्या आ खड़ी हुई। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि किस प्रकार अपने
परिवार का पालन-पोषण करे। कई-कई दिन बिना खाये-पिये गुजर जाते । हारकर रामदीन ने निश्चय किया कि वह पड़ोस के गाँव में मजदूरी खोजेगा।
मजदूरी मिलने में उसे दिक्कत नहीं हुई। एक दयालु किसान ने उसे खेती के काम के लिए रख लिया। रामदीन मेहनती तो था ही। वह जी-तोड़ मेहनत करने लगा। फलस्वरूप किसान की फसल बहुत अच्छी हुई। ऐसी फसल पहले कभी नहीं हुई थी। किसाने ने सोचा, रामदीन की कड़ी मेहनत का ही नतीजा है कि इस वर्ष उसे खेती में तिगुना लाभ हुआ है। बदले में रामदीन को भी लाभ का कुछ भाग मिलना चाहिए। उसने रामदीन को अपने पास बुलाया और कहा, “रामदीन, तुम्हारी मेहनत से फसल में तिगुना लाभ हुआ है। मैं बहुत प्रसन्न हूँ। तुम्हें भी इस लाभ का कुछ भाग देना चाहता हूँ। तुम उसे अनाज के रूप में चाहते हो या किसी अन्य रूप में?”
रामदीन सोच में पड़ गया कि क्या माँगे। अनाज ले या कुछ और? उसे ध्यान आया मजदूरी में से उसने कुछ रुपये बचाकर रखे हैं जिनसे कुछ महीनों तक परिवार का पेट भर सकता है। उसने किसान से कहा, “आपकी मुझ पर बड़ी कृपा रही है। लाभ के रूप में आप कुछ देना ही चाह रहे हैं तो खेती के लायक थोड़ी-सी भूमि दे दीजिए। मैं उस पर खेती करूंगा।”
किसान को रामदीन की बात बुद्धिमतापूर्ण लगी। अनाज तो कुछ दिनों तक ही काम आएगा। किंतु खेती से उसके कष्ट सदैव के लिए दूर हो जाएँगे। उसने तुरंत दो खेत रामदीन के नाम लिख दिए।
प्रसन्न रामदीन अपने गाँव के एक धनी किसान के पास पहुँचा और उससे मदद माँगी, कि अगर वह हफ्ते भर के लिए बैलों की एक जोड़ी उसे खेत जोतने के लिए दे दे तो उसका बड़ा उपकार होगा। काम खत्म होते ही वह बैलों को लौटा देगा। धनी किसान बड़ा काँईयाँ व्यक्ति था, किंतु रामदीन पर टूटी विपत्ति जानता था। उसका मन पसीज उठा, उसने तुरंत बैलों की जोड़ी रामदीन के हवाले कर दी।
रामदीन ने खेतों की जुताई-बुवाई कर ली तो एक दोपहर वह बैलों को लौटाने आया। धनी किसान उस समय भोजन कर रहा था। उसने रामदीन से कहा, “बैलों को उस बाड़े में बाँध दो।” रामदीन ने वैसा ही किया और अपने घर चला गया।
अभी वह अपने घर पहुँचकर सुस्ता ही रहा था कि धनी किसान ने दरवाजा खटखटाया और कहा, “बैलों की जोड़ी कहाँ है?”
“वह तो मैं आपके बाड़े में बाँध आया हूँ।” रामदीन ने उत्तर दिया।
“मगर बाड़े में तो बैल नहीं हैं?”
“मैंने तो बैल आपके सामने ही बाँधे थे।” रामदीन ने घबराकर कहा।
धनी किसान क्रोधित हो उठा और बोला, “तुमने बैल बाड़े में बाँधे थे तो क्या उन्हें बाड़ा लील गया? तुम्हारी नीयत खराब हो गयी है रामदीन ! तुम इसी समय राजा के पास चलो। मैं उनसे तुम्हारी बेईमानी की शिकायत करूँगा। तुम्हें सजा दिलवाऊँगा ।”
रामदीन ने उसे विश्वास दिलाने की बहुत कोशिश की। किंतु उसने एक न सुनी। रामदीन समझ गया कि भाग्य उसके साथ खेल खेल रहा है। एक विपत्ति से छुटकारा नहीं मिलता कि दूसरी टूट पड़ती है। वह दुखी मन से धनी किसान के संग महल की ओर चल पड़ा।
अभी वह कुछ ही दूर गया था कि रास्ते पर तेजी से आते हुए एक घुड़सवार ने उसे अचानक धक्का देकर गिरा दिया। पत्थर से छिलकर रामदीन का दाहिना कान कट गया। जैसे ही वह सीधा हुआ, वैसे ही उसने घुड़सवार को लक्ष्य बनाकर लाठी फेंकी। संयोग से लाठी घोड़े के माथे पर लगी। घोड़ा छटपटाकर ढेर हो गया और कुछ ही पलों में मर गया। आगबबूला घुड़सवार ने रामदीन को पकड़ लिया और कहने लगा, “तुमने मेरे प्यारे घोड़े को मार डाला। मैं तुम्हें राजा से मृत्युदंड दिलवाऊँगा।” यह कहकर घुड़सवार भी उनके साथ महल की ओर चल पड़ा।
चलते-चलते रात हो गई। उन्होंने नगर के बाहर डेरा डाल दिया। वहीं कुछ नट भी ठहरे हुए थे। रात में रामदीन सोने के लिए लेटा तो मन भारी हो उठा। उसने सोचा कि दुर्भाग्यवश जो कुछ भी मेरे साथ घटता जा रहा है, चाहे उसमें मेरा कोई दोष हो न हो, पर राजा आजन्म कारावास की सजा दिए बिना नहीं मानेगा। और अब में किसी प्रकार भी अपने परिवार की देख-भाल नहीं कर पाऊँगा, और जब मैं परिवार का उत्तरदायित्व नहीं निभा पाऊँगा तो भला ऐसा जीवन जीने से क्या फायदा! इससे तो अच्छा है कि में स्वयं फाँसी लगाकर मर जाऊँ और जीवन का अंत कर लूँ। यह निश्चय करते ही वह आहिस्ता से उठा, नटों के सामान में से एक रस्सी निकाली। रस्सी को बरगद की डाल पर फंसाकर फंदा बनाया, फिर फंदा गले में पहनकर लटक गया। भाग्य ने यहाँ भी उसका साथ नहीं दिया। रस्सी कमजोर थी, टूट गयी। वह नीचे सोए नटों के नेता पर धड़ाम से जा गिरा। नटों का नेता मर गया।
नट जाग गए। उन्होंने रामदीन को पकड़ लिया और निश्चय किया कि वे भी उसे राजा के पास ले जाएँगे और न्याय माँगेंगे।
दूसरे दिन तीनों अभियोगी रामदीन को रस्सी से जकड़े हुए राजदरबार पहुँचे। उन्होंने राजा को अपनी-अपनी शिकायतें सुनायीं, फिर उनसे प्रार्थना की कि वे दुष्ट रामदीन को
उसकी करनी का उचित दंड दें।
राजा बहुत बुद्धिमान था, सारा मामला फौरन ताड़ गया। उसने सबसे पहले धनी किसान से पूछा, “जब रामदीन बैल लेकर आया था तब तुम क्या कर रहे थे?”
“हुजूर, मैं भोजन कर रहा था।” धनी किसान ने उत्तर दिया।
“बैल तुमने देखे थे?” राजा ने फिर पूछा।
“देखे तो थे हुजूर ।”
“बैल तुम्हें वापस मिल सकते हैं।”
“सौ कैसे, हुजूर?”
“पहले तुम उसे अपनी आँखें निकालकर दो… क्योंकि जिन आँखों से तुमने बैलों को देखा था उनकी बात पर विश्वास करने को तुम तैयार हो ।”
राजा के निर्णय से धनी किसान खिसिया गया।
इसके बाद राजा ने घुड़सवार से पूछा, “रामदीन का कान कैसे कट गया?”
“उसे रास्ते का पत्थर लग गया, हुजूर ।”
“रास्ते का पत्थर कैसे लग गया?”
“घोड़े का धक्का खाकर वह रास्ते पर गिर पड़ा।”
“घोड़ा किसका था?”
“मेरा था, हुजूर ।”
“तुम्हें, तुम्हारा घोड़ा मिल सकता है।”
घुड़सवार के चेहरे पर चमक दौड़ गयी, “सो कैसे, हुजूर?”
“ऐसे कि तुम इसे इसका कान वापस कर दो। यह तुम्हारे घोड़े के प्राण लौटा देगा।’ राजा के निर्णय से कॉईयाँ घुड़सवार संकोच से गड़ गया। अब बारी आयी नटों की।
राजा ने उनसे प्रश्न किया, “रस्सी किसकी थी?”
“हमारी थी, हुजूर ।”
“इतनी कमजोर क्यों थी?”
“उस पर चढ़कर हम रोज खेल दिखाते थे, हुजूर। इसलिए घिस गयी थी।”
“तो ऐसा करते हैं कि तुममें से कोई नट इसी रस्सी का फंदा बनाकर डाल से लटक जाए। मैं रामदीन को ठीक फंदे के नीचे लिटाए दे रहा हूँ। रस्सी टूटेगी तो वह नट इसके ऊपर गिर जायेगा और वह स्वयं अपनी मौत मर जाएगा। इस तरह इसे अपने किए की सजा मिल जाएगी। तो कोई नट तैयार है बरगद के पेड़ पर लटकने को ?”
राजा का निर्णय सुनकर सारे नट लज्जा से गड़ गए। राजा ने रामदीन को फौरन छोड़ दिया।
अमरूद का पेड़ की कहानी
बबली और बबलू दोनों बहन-भाई थे। दोनों ही शैतान थे तथा बहुत लड़ाई करते और अपनी माँ का कहना भी नहीं मानते थे। दोनों स्कूल जाते समय रास्ते में जो भी पेड़-पौधें दिखाई देते उन्हें तोड़ते-उखाड़ते हुए चलते। पेड़-पौधे तो जैसे उनके पक्के दुश्मन थे। उनकी माँ उन्हें ऐसा करने से मना करती पर दोनों माँ की बात को अनसुना कर देते थे।
एक दिन माँ ने दोनों को एक अमरूद दिया कि इसे बाँट कर खा लो पर वे दोनों तो इस पर भी झगड़ बैठे। बबली कहती मेरा अमरूद है और बबलू कहता मेरा है दोनों लड़ते हुए घर के बाहर सड़क पर आ गये। एक-दूसरे से छीनते हुए अमरूद सड़क किनारे कीचड़ में जा गिरा। दोनों को बहुत दुःख हुआ। अब दोनों ने वादा किया कि अब हम कभी लड़ाई नहीं करेंगे। कुछ देर बाद उदास मन से दोनों घर वापिस आ गये। दोनों जब भी बाहर जाते उन्हें उसी जगह पर व्ही अमरूद याद आता।
कुछ दिनों बाद उन्होंने उस जमीन पर एक पौधे को फूटते देखा जहाँ उनका अमरूद गिरा था। अब दोनों को वह पौधा अच्छा लगने लगा। अब वहाँ कीचड़ भी सूख गयी थी। नौना और बबलू ने पौधे के आस-पास सफाई की और दोनों पौधे की देखभाल करने लगे। अब उन्हें पेड़-पौधे अच्छे लगने लगे थे। उन्होंने अपनी पुरानी गन्दी आदत को छोड़ दिया था। समय बीतता गया पौधा अब पेड़ बन चुका था। एक दिन बबलू ने देखा की अमरूद के पेड़ पर भौर आने लगा। दोनों बहुत खुश थे। वो रोज उसकी छाया में बैठते व खेलते। इस प्रकार देखते ही देखते पेड़ पर अमरूद लगने लगे। बबली और बबलू को अब पूरी तरह समझ आ गया था कि पेड़-पौधों का हमारे जीवन में क्या महत्व है। उन्होंने अपनी माँ से माफी मांगते हुए वादा किया कि वे अब कभी भी पेड़-पौधों को नहीं तोड़ेंगे बल्कि अधिक से अधिक पौधे लगायेंगे। बबली और बबलू ने अपने स्कूल के सभी दोस्तों को बुलाकर वह पेड़ दिखाया और सभी को अमरूद खिलाये और सभी से पेड़ लगाने का आग्रह किया। बच्चों में यह बदलाव देखकर माँ बहुत खुश हुई।
Moral Of These Bedtime Stories For Kids In Hindi
बिल्ले के न्याय की कहानी
- हमें आपस मे मिलजुलकर रहना चाहिए , आपस में लड़ाई नहीं करनी चाहिए ।
- यदि हम आपस मे लड़ते हैं तो कोई भी तीसरा हमारी लड़ाई का फायदा उठा सकता है ।
बुरी संगत की कहानी
- अच्छा व्यक्ति यदि बुरी संगत मे पड जाए तो, तो अच्छे व्यक्ति को सावधान हो जाना चाहिए।
- बुरे व्यक्ति की संगत जरूर हीअच्छे व्यक्ति को नुकसान पहुचाती है ।
मूर्ख पण्डित की कहानी
- अगर कोई ज्ञान मूर्ख व्यक्ति को मिल जाता है , तो निश्चित ही वह उससे खुद को या अपने आस पड़ोस को जरूर हानी पहुचाएगा ।
भोले रामदीन की कहानी
- किस्मत भले ही आपको परेशान करे परहमे कभी भी हार नहीं माननी चाहिए ।
- हमारी किस्मत हमे एक बार धोखा दे सकती है , दो बार दे सकती है, पर बार बार हमें धोखा नहीं दे सकती ।
- लगातार मेहनत करने से ही सफलता मिलती है ।
अमरूद का पेड़ की कहानी
- लगतार प्रयास से कोई भी छोटा काम (बीज) बड़ा (पौधा) बन सकता है
Bedtime Stories बच्चों की रुचि को बढ़ाने, उनकी भाषा और नैतिक विकास को निखारने का काम करती हैं । ये कहानियाँ सामान्यत: सरल भाषा संरचना, जीवंत चित्रण, और संबंधित पात्रों के साथ होती हैं, जिससे बच्चों के लिए एक मनोहर और मजेदार पठन अनुभव करने का मौका मिलता है। ये कहानियाँ सामाजिक और नैतिक मूल्यों को साधने का प्रयास करती हैं, भाषा कौशल को बढ़ाने के साथ साथ नैतिक मूल्यों को भी बढ़ाने का प्रयास करती हैं। ये कहानियाँ कल्पना शक्ति को प्रोत्साहित करने के साथ , शब्दावली को सुधारने, का काम करती हैं।
Here we have some examples of Bedtime Stories, गरीब किसान की कहानी, धनुर्धारी अर्जुन की कहानी, काठ की डांट (भाग-1), काठ की डाट (पार्ट-2) , बादशाह की आंगुठी (Ring Of Emperor) are some example of some bedtime stories for boys age 7.
Here we have some examples of Bedtime Stories हँसो की चतुराई, खट्टे अंगूर कौन खाए, नाचने वाली मछलियां, जब शेर ने किया प्रेम, ईमानदार लकड़हारे की कहानी, समझदार किसान, लालची कुत्ता
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