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काठ की डांट (भाग-1) / ( KATH KI DANT )

By KahaniVala

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Hindi Sahitya me Khaniyon ko Atyant Upyogi mana gya hai , hindi kahaniyaan bachhon ke mansik vikas ke liye ek jacha parkha madhyam hai, Yahan Par hmare dwara “KahaniVala” ki ek kahani “KATH KI DANT” prastut ki gayi hai jo prathmik istar ke bachhon ke liye upyukt hai . Yahan par har kahani ka likhit evam maukhik sansakran uplabdh hai , jisse har ek bacchon ko kahani padhne evam samjhne me asani ho or kahani ka anand liya ja sake.

कहानी शुरू करने से पहले आइए कुछ शब्दों का मतलब जान लेते हैं काठ कहा जाता है लकड़ी को डाट कहा जाता है लकड़ी के तने को, सियार को हम लोग गीदड़ के नाम से जानते है।

बहुत पहले की बात है नंदनवन मे एक शेर ओर शेरनी का जोड़ा राज किया करता था ।  उसी वन मे एक चतुर सियार रहा करता था । वह सियार बड़ा ही चालबाज़ और कपटी (धोखेबाज़) था। वह अपने कपट से दूसरे जानवरों से खाना छीन लिया करता था।  उस सियार की मनसा (मन की इच्छा) जंगल के राजा शेर को मारकर खुद राजा बनने की थी ।

सियार इसी जुगत मे लगा राहत की कैसे इसे शेर को मारकर शेर के राज्य पर अपना अधिकार (अपना बना लेना) किया जाए। 

एक दिन सियार चला जा रहा था, तभी उसकी नजर एक टूटे हुए पेड़ के तने पर पड़ती है । उस तने मे एक कोटर (पेड़ मे बनी एक खाली जगह ) बनी हुई थी जिसे देखकर सियार को राजा बनने का रास्ता सूझता है।  

अब सियार ने एक ऐसा वक्त खोजता है जब शेर अपनी गूफ़ा से बहार शिकार करने जाता, तब वह सियार शेर की गूफ़ा के पास जाकर रोज एक ही बात चिल्लाने लगता है–

“दम है तो बहार आ

आकर मुजसे टकरा ”

अब कुछ दिनों तक तो शेरनी यह सब सुनती रही, क्यूंकी शेरनी का बच्चा अभी छोटा था तो वो सोचती थी के पता नहीं कौनसा खतरनाक जानवर है जो यहाँ आके जंगल के राजा को ललकारता है। रोज यही होता देख शेरनी से भी न रहा गया , आखिरकार वह सब कुछ शेर को बता देती है, के कोई दुष्ट जानवर रोज आता है और आपको लड़ने के लिए ललकारता है और कहता है–

“दम है तो बहार आ

आकर मुजसे टकरा ”

  यह बात सुनकर शेर को गुस्सा आ जाता है और वह गुस्से मे बोलत है की –

“आज मै बहार जाता हूँ

जाके उससे टकराता हूँ ”

अब प्रतिदिन (रोज) की भांति सियार उसी समय गूफ़ा के बहार पहुँच कर वही बात कहता है , मगर आज शेर अंदर ही था। सियार की आवाज सुनकर शेर दहाड़ लगता हुआ बाहर निकलता है,

सियार भी इसी मौके की तलाश मे था। अब शेर सियार को कहता है “मूर्ख गीदड़ आज तेरा अंतिम समय आ गया है, तूने खुद ही अपनी मौत को ललकार है”

सियार होते ही चालक पृवर्ती (आदत या स्वभाव) के है, सियार शेर से कहता है “चलो वो तो देखा जायेगा कौन किसका काल बनता है”

अब शेर को यह सुनकर और भी गुस्सा आ जाता है, और वह सियार की ओर दौड़ लगता है, सियार पहले से सोची हुई योजना के तहत दौड़ लगता है, और शेर को उसी टूटे पेड़ वाली खोंखल के पास लेके चला जाता है। अब तक शेर, सियार के इस प्रकार भागने से और भी गुस्से मे आ जाता है।

सियार शेर के गुस्से का फायदा उठा कर उसे फिर छेड़ता हुआ भागता है और कहता है–

“दम है तो पकड़, वरना मुझे बर्दास्त कर ”

अब शेर और जोर से उसके पीछे दौड़ लगता है, जब सियार गीदड़ को पकड़ने वाला होता है उसी समय सियार उस पेड़ की कोटर से पार हो जाता है, उसके पीछे-पीछे शेर भी कोटर को पार करने की कोशिश करता है, पर कोटर छोटी होने के कारण शेर उसमे ही फंसा रह जाता है।     

इस प्रकार शेर को उस कोटर मे फंस कर अपने प्राण (जान) गवाने पड़ते हैं।

 इस प्रकार एक नन्हा व चालक सियार जंगल का राजा बन बैठता है।

कथा सार

तो बच्चों इस कहानी से हमे यह शिक्षा मिलती है के हमे कभी भी अपने शत्रु को कमजोर नहीं समझना चाहिए, शत्रु से हमेशा सावधान ओर सतर्क रहना चाहिए।

इस कहानी को दो भागों में बांटा गया है कहानी का भाग –2 पढ़ने के लिए क्लिक करें ।

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