सभी कहानियों को पढ़ने मे लगने वाला समय लगभग 44 minutes
CONTENT FOR SHORT STORY IN HINDI
- छोटी कहानी (SHORT STORY IN HINDI) क्यूँ जरूरी हैं ?
- दो बहनें और बौने की कहानी
- एवरग्रीन घाटी का ड्रैगन (evergreen valley and dragon a short story in hindi )
- अच्छा राजा और बुरा राजकुमार (a lesson for prince a short story in hindi)
- गड़गड़ाहट का बादल (the cloud and the kid a short moral story in hindi )
- चींटी और हाथी की दोस्ती (the friendship a short story in hindi)
- काला जादू और अच्छा जादू (black magic a short story in hindi )
- गोविंद और परी
- तीन वरदान
- फूफू बाबा की कहानी
- ईमानदार लकड़हारा
- लालची कुत्ता
- किसान और साँप की कहानी
- जब राजा बना भिखारी
- प्यासा कौवा
- झूठी शान की कहानी
- खरगोश और कछुआ
- बिल्लियों की लड़ाई की कहानी
हिन्दी की छोटी कहानियाँ (SHORT STORY IN HINDI) हमेशा से ही पाठकों के लिए एक खोज का विषय रहा है , हम आपके लिए लेके आयें है हिन्दी की छोटी कहानियों का खजाना जहा आपको मिलेंगी हर प्रकार की छोटी कहानियाँ, जैसे तेनाली रमन की कहानी, अकबर बीरबल की कहानियाँ, पंचतंत्र की कहानियाँ, बेताल पचिसी की कहानियाँ, और प्रख्यात लेखकों जैसे रमेश थानवी की घड़ियों की हड़ताल, गिजुभाई बधेका की कहानियाँ जिन्हे पढ़ कर आपको आनंद या जाएगा ।
छोटी कहानी (SHORT STORY IN HINDI) क्यूँ जरूरी हैं ?
हिन्दी मे छोटी कहानियों को विशेष महत्त्व दिया गया है क्यूंकी अनेकों भारतीय शिक्षाविदों का मानना है की मात्रभाषा मे पढ़ी गई कहानी किसी भी बच्चे के अवचेतन मन को खोलने का काम करती है । Short Story In Hindi यानि हिन्दी की छोटी कहानी बच्चों का सर्वांगीण विकास करती हैं।
हमारे द्वारा दी गई कहानियों मे आपको प्रश्न उत्तर के साथ-साथ, कठिन शब्दों के अर्थ भी मिलेंगे, और साथ ही साथ हर कहानी से जुड़े मौलिक प्रश्न भी दिए जा रहे हैं ।
यदि किसी बच्चे को अभी पढ़ने मे कठिनाई है तो कहानी का मौखिक संस्करण भी दिया जा रहा है ।
दो बहनें और बौने की कहानी
दो बहनें थीं। एक का नाम गीता और दूसरी का नाम रत्ना था। दोनों बहनें रंग, रूप और स्वभाव में एक जैसी ही थीं। दोनों साथ रहतीं, साथ काम करतीं, साथ घूमने जातीं और साथ ही सो जातीं। वे कभी आपस में झगड़ती नहीं थीं। दोनों बहनें माता-पिता को बहुत प्रिय थीं।
एक बार दोनों बहनें बाजार जा रही थीं। रास्ते में उन्होंने एक बौने को देखा। उसके पैरों तक लंबी सफेद दाढ़ी और सिर पर लाल लंबी टोपी थी। एक कुत्ता बौने की दाढ़ी को मुँह में ले कर खींच रहा था। बौना कुत्ते के मुंह से अपनी दाढ़ी को छुड़ाने का प्रयत्न कर रहा था। लेकिन कुत्ता दाढ़ी छोड़ नहीं रहा था। बौना परेशान था। यह देख कर दोनों बहनों को दया आई। उन्होंने फौरन बौने के पास जा कर कैंची से उसकी लंबी दाढ़ी काट डाली। दाढ़ी छोटी हो गई। बौना खुश होने की बजाय नाराज हो कर बोला, “लड़कियों, तुम्हें यह होशियारी करने के लिए किसने कहा था? तुमने मेरा चेहरा ही बिगाड़ दिया।”
दोनों बहनें बिना कुछ बोले वहाँ से रवाना हो गईं। दूसरी बार दोनों बहनें पास के गाँव से लौट रही थीं। रास्ते में उन्होंने उसी बौने को देखा। वह अपनी लंबी दाढ़ी के सहारे एक वृक्ष की डाली से लटका हुआ था। उसकी दाढ़ी में खिंचाव हो रहा था। इसलिए वह चीख रहा था। लेकिन कोई उसकी सहायता के लिए नहीं आ रहा था। दोनों बहनों ने यह दृश्य देखा, तो वे दौड़ती हुई बौने के पास पहुँचीं। उन्होंने कैंची से बौने की दाढ़ी काट कर उसे पीड़ामुक्त कर दिया। लेकिन बौना खुश होने के बदले गुस्सा हो कर बोला, “लड़कियों, तुम्हें यह होशियारी करने के लिए किसने कहा था? तुमने मेरा चेहरा ही बिगाड़ दिया।”
दोनों बहनें कुछ जवाब दिए बिना वहाँ से चली गईं।
तीसरी बार दोनों बहनें शहर की ओर जा रही थीं। उसी समय वह बौना साइकिल पर सवार हो कर वहाँ से गुजरा। एकाएक उसकी लंबी दाढ़ी साइकिल की चैन फंस गई। साइकिल तुरंत ही रुक गई। बौना चीखने लगा। उसकी
चीख सुन कर दोनों बहनें दौड़ती हुई उसके पास गईं। साइकिल की चैन में से दाढ़ी का निकलना संभव नहीं था। दोनों बहनों ने कैंची से उसकी लंबी दाढी काट दी। वह अपनी आदत के अनुसार गुस्से से बोला, लेकिन दोनों बहनों ने कोई जवाब नहीं दिया।
एकाएक वहाँ चमत्कार हुआ। बौना एक परी के रूप में बदल गया। परी ने कहा, “तुम दोनों मेरी कसौटी पर खरी उतरी हो। तुम दोनों का विवाह राजकुमारों से होगा। तुम दोनों बहुत सुखी रहोगी।” परी ने दोनों बहनों को एक-एक फूल दिए और कहा, “इन फूलों को ले कर तुम दोनों राजमहल में जाना। वहाँ राजा और रानी के सामने इन फूलों को सूंघना।” इतना कह कर परी अदृश्य हो गई।
फूलों को ले कर गीता और रत्ना घर आईं और उन्होंने अपने माता-पिता को सारी बातें बताईं। उसके बाद परी के कहने के अनुसार गीता और रत्ना राजमहल में गईं। दोनों ने राजा-रानी के सामने फूल सूंघे । तुरंत चमत्कार हुआ। दोनों फूलों में से दो राजकुमार प्रकट हो गए।
राजा-रानी बहुत खुश हुए। उनके कोई संतान नहीं थी। राजा-रानी ने दोनों बहनों की दोनों राजकुमारों से बड़ी धूमधाम से शादी कर दी। उन्हें आज दो सुंदर बेटे ही नहीं, दो सुंदर-सुंदर बहुएँ भी मिल गई थीं! महल में चारों ओर खुशी छा गई। गीता और रत्ना के माता-पिता भी आशीर्वाद देने आ पहुँचे।
सभी लोग महल में आनंद से रहने लगे।
एवरग्रीन घाटी का ड्रैगन (evergreen valley and dragon a short story in hindi )
बहुत समय पहले की बात है, एक दूर देश में एक सुंदर घाटी थी जिसका नाम एवरग्रीन घाटी था। इस घाटी में कई जादुई प्राणी रहते थे, जिनमें ड्रैगन, बौने और परियां शामिल थीं। घाटी के बीच में एक शानदार महल खड़ा था, जिस पर एक बार दयालु लेकिन अब पागल राजा, राजा एल्डेन, का शासन था।
राजा एल्डेन एक समय में बुद्धिमान और कोमल शासक थे, जिन्हें उनके सभी प्रजाजन प्यार करते थे। लेकिन एक दिन, उन्होंने महल की गहरी काल कोठरी में एक प्राचीन कलाकृति खोजी – एक श्रापित मुकुट जो अपार शक्ति का वादा करता था। जैसे ही उन्होंने मुकुट को अपने सिर पर रखा, एक काला जादू उन पर हावी हो गया, जिससे वह एक निर्दयी और अत्याचारी राजा बन गए।
बौने, जो मजबूत पहाड़ी खानों में रहते थे, कुशल कारीगर और खनिक थे। वे लंबे समय से परियों के साथ तालमेल में काम कर रहे थे, जो अपने ज्ञान और जादू के लिए जानी जाती थीं और हरे-भरे जंगलों में रहती थीं। साथ में, उन्होंने तय किया कि उन्हें पागल राजा को रोकने और एवरग्रीन घाटी में शांति बहाल करने के लिए कुछ करना होगा।
एक दिन, एक युवा बौना जिसका नाम बोफिन था और एक परी जिसका नाम एलारा था, को एवरग्रीन घाटी के प्रसिद्ध ड्रैगन को खोजने के लिए चुना गया। यह ड्रैगन, जिसका नाम जेफाइरा था, कहा जाता था कि उसमें ही मुकुट के श्राप को तोड़ने के लिए पर्याप्त जादू है।
बोफिन और एलारा ने दृढ़ संकल्प के साथ अपनी यात्रा शुरू की। वे घने जंगलों से गुजरे, चमकती नदियों को पार किया और खड़ी पहाड़ियों पर चढ़े। रास्ते में, उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जैसे भयंकर भेड़िये और खतरनाक चट्टानें। लेकिन उनकी दोस्ती और दृढ़ संकल्प ने उन्हें हर कठिनाई से पार दिलाया।
कई दिनों की यात्रा के बाद, वे आखिरकार ड्रैगन की गुफा तक पहुंचे, जो चमचमाते रत्नों और प्राचीन खजानों से भरी हुई थी। वहां, उन्होंने जेफाइरा से मुलाकात की, जो हरे-भरे पंखों और सुनहरी आँखों वाली एक शानदार ड्रैगन थी।
“हमें आपकी मदद चाहिए, जेफाइरा,” एलारा ने विनती की। “हमारा राजा श्रापित हो गया है, और केवल आपका जादू ही उसे बचा सकता है।”
जेफाइरा ने उनकी कहानी ध्यान से सुनी और मदद करने के लिए सहमत हो गई। “लेकिन पहले,” उसने कहा, “तुम्हें अपनी बहादुरी और दिल की शुद्धता साबित करनी होगी। तभी मेरा जादू काम करेगा।”
अपने आप को साबित करने के लिए, बोफिन और एलारा ने ड्रैगन द्वारा स्थापित तीन परीक्षाओं का सामना किया। पहली परीक्षा थी ताकत की, जिसमें उन्हें एक विशाल शिला को मिलकर उठाना था। दूसरी परीक्षा थी बुद्धि की, जिसमें उन्हें एक पहेली को सुलझाना था जो उनके ज्ञान और सहयोग की परीक्षा लेती थी। अंतिम परीक्षा थी साहस की, जिसमें उन्हें एक अंधेरी सुरंग में से गुजरना था जो भ्रम और भय से भरी हुई थी।
प्रत्येक परीक्षा के साथ, बोफिन और एलारा मजबूत और अधिक एकजुट होते गए। उन्होंने तीनों परीक्षाओं में सफलतापूर्वक पास कर लिया, अपनी सच्ची बहादुरी और दिल की शुद्धता को दिखाया। उनके प्रयासों से प्रसन्न होकर, जेफाइरा ने उन्हें जादुई ड्रैगन आग की एक शीशी दी।
“इसे राजा के पास ले जाओ,” जेफाइरा ने निर्देश दिया। “इसे श्रापित मुकुट पर डालो, और यह जादू तोड़ देगा।”
बोफिन और एलारा शीशी को सुरक्षित रखते हुए महल की ओर जल्दी लौट आए। जब वे पहुंचे, तो उन्होंने राजा एल्डेन को गुस्से में पाया, उनकी आंखें श्रापित मुकुट के काले जादू से चमक रही थीं। बिना किसी हिचकिचाहट के, एलारा ने मुकुट पर ड्रैगन आग डाल दी। एक अंधेरे प्रकाश की चमक थी, और काला जादू समाप्त हो गया।
राजा एल्डेन गिर पड़े, और जब वे जागे, तो उनकी आंखें फिर से साफ और दयालु थीं। श्राप समाप्त हो गया था, और वह फिर से अपने पुराने रूप में लौट आए। अपनी बहादुरी और निष्ठा के लिए आभारी, राजा एल्डेन ने न्यायपूर्ण और बुद्धिमान रूप से शासन करने की कसम खाई।
एवरग्रीन घाटी ने उत्सव मनाया, और शांति बहाल हो गई। बोफिन और एलारा नायक बन गए, उनकी कहानी पीढ़ियों तक सुनाई जाती रही। और उस दिन से, बौनों, परियों, और यहाँ तक कि महान ड्रैगन जेफाइरा के बीच का बंधन मजबूत हो गया, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि एवरग्रीन घाटी एकता और जादू का स्थान बनी रही।
और इस तरह, घाटी फल-फूल गई, और वे सभी खुशी-खुशी रहने लगे।
अच्छा राजा और बुरा राजकुमार (a lesson for prince a short story in hindi)
बहुत समय पहले की बात है, एक समृद्ध राज्य था जिसका नाम फ्लोराव्यू था। वहां एक बुद्धिमान और दयालु राजा, राजा लियोन, का शासन था। वे न्याय और करुणा के साथ शासन करते थे, यह सुनिश्चित करते थे कि उनकी प्रजा शांति और खुशी से जीवन व्यतीत करे। राज्य अपने हरे-भरे बागानों, भरपूर फसलों और सामंजस्यपूर्ण समुदायों के लिए जाना जाता था।
राजा लियोन का एक पुत्र था, राजकुमार मार्कस, जो उम्मीद की जाती थी कि वह अपने पिता के नक्शेकदम पर चलेगा और एक दिन महान शासक बनेगा। लेकिन, अपने पिता के विपरीत, राजकुमार मार्कस अभिमानी और स्वार्थी था। उसे केवल शक्ति और धन में रुचि थी, वह अक्सर नौकरों के साथ दुर्व्यवहार करता और लोगों की जरूरतों को नजरअंदाज करता था।
राजा लियोन को उम्मीद थी कि समय और मार्गदर्शन के साथ, राजकुमार मार्कस नेतृत्व और करुणा के सच्चे मूल्यों को सीखेगा।
उन्होंने राजकुमार को विभिन्न कार्य और जिम्मेदारियां सौंपीं, यह उम्मीद करते हुए कि ये अनुभव उसे विनम्रता और सहानुभूति सिखाएंगे।
एक दिन, राज्य में भीषण सूखा पड़ा। नदियाँ सूख गईं, फसलें बर्बाद हो गईं, और लोग भारी कष्ट में आ गए। राजा लियोन ने अपनी सामान्य बुद्धिमानी के साथ घोषणा की कि शाही भंडार खोल दिए जाएंगे और संग्रहीत भोजन लोगों में वितरित किया जाएगा। इस निर्णय ने कई जीवन बचाए और राजा के प्रति लोगों का और अधिक सम्मान और प्रेम अर्जित किया।
हालांकि, राजकुमार मार्कस ने इस संकट को अपनी शक्ति बढ़ाने के अवसर के रूप में देखा। उसने गुप्त रूप से भोजन जमा करना शुरू कर दिया और इसे निराश्रित ग्रामीणों को अत्यधिक कीमतों पर बेचना शुरू कर दिया। जब राजा लियोन को अपने बेटे के कार्यों के बारे में पता चला, तो वह गहरे निराश और दुखी हो गए।
राजकुमार मार्कस को सबक सिखाने के लिए, राजा लियोन ने एक योजना बनाई। उन्होंने नगर चौक में एक भव्य सभा बुलाई और एक प्रतियोगिता की घोषणा की। “जो कोई भी इस कठिन समय में लोगों के लिए सबसे अधिक खुशी और राहत ला सकता है,” उन्होंने घोषणा की, “उसे शाही खजाने से एक बहुमूल्य उपहार दिया जाएगा।”
राजकुमार मार्कस, अपने धन और प्रभाव में आत्मविश्वास रखते हुए, प्रतियोगिता का मजाक उड़ाया। वह विश्वास करता था कि राज्य की संपत्ति को हासिल करने में कोई उसे पार नहीं कर सकता। लेकिन एक विनम्र युवा किसान जिसका नाम थॉमस था, ने प्रतियोगिता में भाग लेने का निर्णय लिया। थॉमस ने हमेशा राजा लियोन की दयालुता की प्रशंसा की और अपने साथी ग्रामीणों की मदद करना चाहता था।
थॉमस को कहानी सुनाने और संगीत में विशेष प्रतिभा थी। उसने ग्रामीणों को इकट्ठा किया और आशा और साहस की कहानियाँ साझा कीं, उत्साहवर्धक गीत गाए और उनके मनोबल को ऊँचा उठाने के लिए सामुदायिक गतिविधियों का आयोजन किया। उसने अपनी छोटी बचत का उपयोग करके बीज खरीदे और सभी को छोटे सब्जी के बगीचे लगाने के लिए प्रोत्साहित किया, उन्हें सूखे के दौरान टिकाऊ तरीके सिखाए।
जैसे-जैसे दिन बीतते गए, फ्लोराव्यू के लोग फिर से मुस्कुराने लगे। हँसी और संगीत की ध्वनि हवा में गूँजने लगी, और छोटे बगीचों में ताजा सब्जियाँ उगने लगीं। राजा लियोन ने गर्व के साथ देखा कि थॉमस के प्रयासों ने उनके लोगों को सच्ची खुशी और राहत दी।
जब प्रतियोगिता समाप्त हुई, तो यह स्पष्ट था कि असली विजेता कौन था। राजा लियोन ने थॉमस को शाही महल में बुलाया और उसकी निस्वार्थता और रचनात्मकता के लिए उसकी प्रशंसा की। “तुमने एक सच्चे नेता के गुण दिखाए हैं,” राजा ने कहा। “तुम्हारे कार्यों ने हमारे राज्य में आशा और खुशी लाई है।”
राजा लियोन फिर राजकुमार मार्कस की ओर मुड़े। “मेरे बेटे, नेतृत्व धन और शक्ति जुटाने के बारे में नहीं है। यह अपने लोगों की विनम्रता और करुणा के साथ सेवा करने के बारे में है। थॉमस ने हम सभी को एक मूल्यवान सबक सिखाया है।”
विनम्र और शर्मिंदा, राजकुमार मार्कस ने अपनी गलतियों को महसूस किया। उसने ग्रामीणों से माफी मांगी और जमा किया हुआ भोजन लौटा दिया। राजा लियोन के मार्गदर्शन और थॉमस की मित्रता से, राजकुमार मार्कस ने बदलना शुरू किया। उसने लोगों का विश्वास और सम्मान अर्जित करने के लिए कड़ी मेहनत की, खुद को उनकी भलाई के लिए समर्पित किया।
समय के साथ, राजकुमार मार्कस एक बुद्धिमान और करुणामय नेता के रूप में विकसित हुआ, जो अपने पिता की विरासत के योग्य था। राजा लियोन, अपने बेटे के परिवर्तन पर गर्व करते हुए, अंततः सिंहासन उसे सौंप दिया। राजकुमार मार्कस के शासन के तहत, फ्लोराव्यू समृद्ध होता रहा, और अच्छे राजा और बुरे राजकुमार की कहानी एक प्रिय कहानी बन गई, जो मोचन और दयालुता की शक्ति की कहानी बन गई।
और इस प्रकार, फ्लोराव्यू का राज्य फलता-फूलता रहा, और वे सभी खुशी-खुशी रहने लगे।
गड़गड़ाहट का बादल (the cloud and the kid a short moral story in hindi )
बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गाँव का नाम आनंदपुर था। यह गाँव हरे-भरे खेतों, सुंदर बागानों और हंसते-खेलते लोगों से भरा था। लेकिन एक दिन, आकाश में एक काला बादल आया, जिसका नाम था गरज।
गरज एक बड़ा और भयानक बादल था, जो गुस्से में था। उसकी गड़गड़ाहट इतनी तेज थी कि लोग डर के मारे अपने घरों में छिप जाते थे। गरज ने बिजली गिराकर गाँव के खेतों को नष्ट करना शुरू कर दिया, जिससे लोगों में भय और चिंता फैल गई।
गाँव के बुजुर्ग, जिनका नाम दादा मंगत था, ने सबको इकट्ठा किया और कहा, “हमें इस बादल के गुस्से की वजह समझनी होगी। शायद हम उसे शांत कर सकें।” गाँव के लोग सहमत हो गए और एक योजना बनाई।
गाँव में एक छोटा लड़का था, जिसका नाम अर्जुन था। वह बहुत बहादुर और समझदार था। उसने दादा मंगत से पूछा, “मैं गरज से बात करने जाऊं? शायद मैं उसकी समस्या समझ सकूं और उसे शांत कर सकूं।”
दादा मंगत ने अर्जुन को आशीर्वाद दिया और उसे सावधानी बरतने की सलाह दी। अर्जुन ने एक छोटी सी टोपी पहनी और अपनी प्यारी बिल्ली मीना को साथ ले लिया। वे दोनों मिलकर गरज के पास गए, जो गाँव के ऊपर मंडरा रहा था।
अर्जुन ने गरज से पूछा, “गरज, तुम इतनी गुस्से में क्यों हो? हम तुम्हारी मदद कैसे कर सकते हैं?”
गरज ने गुस्से में गरजते हुए कहा, “मुझे लगता है कि कोई मेरी परवाह नहीं करता। मैं अकेला और उदास हूँ। जब भी मैं गड़गड़ाता हूँ, लोग मुझसे डरते हैं और भाग जाते हैं।”
अर्जुन ने सोचा और कहा, “गरज, अगर हम तुम्हें सुनेंगे और तुम्हारी कहानी समझेंगे, तो क्या तुम शांत हो जाओगे?”
गरज ने आश्चर्य से कहा, “तुम सचमुच मेरी कहानी सुनना चाहते हो?”
अर्जुन ने सिर हिलाया और गरज की बात ध्यान से सुनी। गरज ने बताया कि वह एक समय में एक छोटा, प्यारा बादल था, जो बच्चों के साथ खेलता और बारिश की बूंदें गिराता था। लेकिन समय के साथ, उसे नजरअंदाज किया गया और वह अकेला हो गया। उसका दिल भारी हो गया और वह गुस्से में बदल गया।
अर्जुन ने गरज से कहा, “गरज, हम तुम्हें फिर से खुश देखना चाहते हैं। हम तुम्हारे साथ खेलेंगे और तुम्हें कभी अकेला नहीं छोड़ेंगे।”
अर्जुन की प्यारी बातें सुनकर गरज का दिल पिघल गया। उसने अपना गुस्सा छोड़ दिया और धीरे-धीरे उसके काले बादल हल्के सफेद बादलों में बदल गए। उसने बिजली गिराना बंद कर दिया और गाँव में धीरे-धीरे हल्की बारिश शुरू कर दी।
गाँव के लोग बाहर आए और देखा कि गरज अब एक प्यारा बादल बन गया था। उन्होंने अर्जुन और गरज के साथ खुशी-खुशी खेला। गरज ने अपने दिल की बात साझा की और सभी ने उसे ध्यान से सुना।
अब गरज खुश था और गाँव में बारिश लाकर खेतों को हरा-भरा करता था। गाँव के लोगों ने उसे हमेशा अपने साथ रखा और उसे कभी अकेला महसूस नहीं होने दिया।
और इस तरह, आनंदपुर गाँव में फिर से खुशहाली और शांति आ गई। अर्जुन और गरज की दोस्ती ने सबको यह सिखाया कि ध्यान और प्रेम से किसी के भी दिल को बदला जा सकता है।
और इसलिए, सभी खुशी-खुशी रहने लगे।
चींटी और हाथी की दोस्ती (the friendship a short story in hindi)
बहुत समय पहले की बात है, एक हरे-भरे जंगल में अनेक जीव-जन्तु रहते थे। इस जंगल में एक विशाल हाथी था जिसका नाम था भीम और एक छोटी सी चींटी थी जिसका नाम था मीरा। भीम जंगल का सबसे बड़ा और सबसे शक्तिशाली प्राणी था, जबकि मीरा जंगल के सबसे छोटे प्राणियों में से एक थी। इसके बावजूद, उनकी दोस्ती बहुत गहरी थी।
भीम एक दयालु और विनम्र हाथी था। वह सभी जानवरों की मदद करता और उनकी समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करता था। दूसरी ओर, मीरा अपनी मेहनत और चतुराई के लिए जानी जाती थी। वह अपने छोटे आकार के बावजूद हर काम को पूरी ईमानदारी और निष्ठा से करती थी।
एक दिन, जंगल में एक बड़ा तूफान आया। तूफान ने पेड़ों को गिरा दिया और नदी के किनारे को बहा दिया। इससे जंगल के जानवरों को काफी परेशानी हुई। भीम ने देखा कि नदी के किनारे पर एक बड़ा पेड़ गिरा हुआ था, जिससे नदी का पानी रुक गया था और जंगल में बाढ़ आने की संभावना थी।
भीम ने तुरंत अपनी पूरी ताकत से पेड़ को हटाने की कोशिश की, लेकिन वह अकेले यह काम नहीं कर पाया। उसने जंगल के सभी जानवरों से मदद मांगी, लेकिन कोई भी जानवर इतना बड़ा और मजबूत नहीं था कि वह पेड़ को हटा सके।
भीम बहुत निराश हुआ और पेड़ के पास बैठ गया। तभी मीरा वहां आई और उसने भीम से पूछा, “क्या हुआ भीम? तुम इतने उदास क्यों हो?”
भीम ने मीरा को अपनी समस्या बताई। मीरा ने थोड़ी देर सोचा और फिर कहा, “भीम, हो सकता है कि मैं इतनी बड़ी न हो, लेकिन मैं अपनी छोटी-छोटी चींटी मित्रों की मदद से यह काम कर सकती हूं।”
मीरा ने अपनी चींटी मित्रों को बुलाया और सब मिलकर एक योजना बनाई। उन्होंने पेड़ के तने के छोटे-छोटे हिस्सों को काटना शुरू किया। मीरा और उसकी चींटी मित्रों ने मिलकर पूरे दिन और रात काम किया। उन्होंने धीरे-धीरे पेड़ के तने को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांट दिया, जिसे भीम आसानी से हटा सकता था।
भीम ने चींटियों के काम को देखकर उनकी मेहनत और एकता की सराहना की। उसने पेड़ के टुकड़ों को नदी से हटा दिया और नदी का पानी फिर से बहने लगा। जंगल के जानवरों ने खुशी से भीम और मीरा की जय-जयकार की।
इस घटना के बाद, भीम और मीरा की दोस्ती और भी मजबूत हो गई। भीम ने समझा कि सच्ची ताकत आकार में नहीं होती, बल्कि एकता, मेहनत और समर्पण में होती है। मीरा ने भी सीखा कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता, अगर हम उसे पूरी लगन और मेहनत से करें।
भीम और मीरा की दोस्ती जंगल में एक मिसाल बन गई। उन्होंने मिलकर हर मुश्किल का सामना किया और हमेशा एक-दूसरे की मदद की। और इस तरह, जंगल के सभी जानवर खुशी-खुशी और शांति से रहने लगे।
और इसलिए, चींटी और हाथी की इस अनोखी दोस्ती की कहानी जंगल में हमेशा सुनाई जाती रही, और वे सभी खुशी-खुशी रहने लगे।
कथा सार/ MORAL OF THIS SHORT STORY IN HINDI
हमे हमेशा एक दुसरे की मदद करनी चाहिए और हमेशा दोस्ती में हमे बड़ा या छोटा नहीं देखना चाहिए .
काला जादू और अच्छा जादू (black magic a short story in hindi )
बहुत समय पहले की बात है, एक दूरस्थ राज्य का नाम था मंत्रलोक। यह राज्य अपनी जादुई शक्तियों और रहस्यमय वातावरण के लिए प्रसिद्ध था। यहां के लोग जादू की विभिन्न कलाओं में माहिर थे और अपनी शक्तियों का उपयोग अच्छे और बुरे दोनों उद्देश्यों के लिए करते थे।
राज्य के किनारे पर एक घना जंगल था, जिसे काला जंगल कहा जाता था। इस जंगल में एक क्रूर और शक्तिशाली जादूगरनी रहती थी जिसका नाम था कालीमाया। कालीमाया का दिल काले जादू से भरा हुआ था और वह अपने जादू का उपयोग लोगों को परेशान करने और नुकसान पहुंचाने के लिए करती थी।
कालीमाया की शक्तियों का मुकाबला करने के लिए राज्य के मध्य में एक छोटी सी बस्ती थी, जहां एक नेक और दयालु जादूगरनी रहती थी जिसका नाम था सुमन। सुमन अच्छे जादू में माहिर थी और उसका उद्देश्य हमेशा लोगों की मदद करना और राज्य में शांति और खुशहाली बनाए रखना था।
एक दिन, कालीमाया ने राज्य पर कब्जा करने की योजना बनाई। उसने अपने काले जादू से एक भयानक तूफान पैदा किया, जो राज्य के हर कोने में तबाही मचाने लगा। लोग डर के मारे अपने घरों में छिप गए और राज्य में अराजकता फैल गई।
राजा ने सुमन को बुलाया और उससे मदद की गुहार लगाई। सुमन ने राजा को आश्वासन दिया कि वह कालीमाया के काले जादू का सामना करेगी और राज्य को बचाएगी। सुमन ने अपनी शक्तियों को एकत्रित किया और कालीमाया का सामना करने के लिए काले जंगल की ओर रवाना हो गई।
जब सुमन कालीमाया के महल के पास पहुंची, तो कालीमाया ने उसका मजाक उड़ाते हुए कहा, “तुम्हारे अच्छे जादू से मेरे काले जादू का मुकाबला नहीं हो सकता। तुम हार जाओगी।”
सुमन ने शांतिपूर्वक उत्तर दिया, “कालीमाया, जादू का असली उद्देश्य लोगों की मदद करना और खुशहाली लाना है, न कि उन्हें नुकसान पहुंचाना। मैं तुम्हें चेतावनी देती हूं, अपने काले जादू का त्याग करो और लोगों की भलाई के लिए अपने जादू का उपयोग करो।”
कालीमाया ने सुमन की चेतावनी को नजरअंदाज किया और उस पर हमला कर दिया। उसने अपने काले जादू से आग और बिजली पैदा की, लेकिन सुमन ने अपने अच्छे जादू से उसे विफल कर दिया। सुमन ने अपने दिल की शक्ति का उपयोग करते हुए एक अद्भुत रोशनी पैदा की, जिसने कालीमाया के काले जादू को खत्म कर दिया।
कालीमाया की शक्तियाँ धीरे-धीरे कम होने लगीं और वह कमजोर पड़ गई। सुमन ने उसकी मदद करने का प्रस्ताव रखा, लेकिन कालीमाया ने उसे ठुकरा दिया। अंत में, कालीमाया ने अपनी हार स्वीकार कर ली और सुमन की दयालुता के सामने झुक गई।
सुमन ने कालीमाया को माफ कर दिया और उसे सिखाया कि सच्ची शक्ति दयालुता और प्रेम में होती है, न कि काले जादू में। कालीमाया ने अपने गलतियों का एहसास किया और सुमन की शिष्या बन गई। उसने अपने काले जादू का त्याग कर दिया और अच्छे जादू का उपयोग करते हुए लोगों की मदद करने लगी।
राज्य में शांति और खुशहाली लौट आई। लोग सुमन और कालीमाया की नई दोस्ती की प्रशंसा करने लगे और राज्य में जादू का उपयोग केवल अच्छे उद्देश्यों के लिए होने लगा।
इस तरह, काले जादू और अच्छे जादू की यह कहानी राज्य में एक मिसाल बन गई।
कथा सार/ MORAL OF THIS SHORT STORY IN HINDI
सुमन और कालीमाया की दोस्ती ने सभी को यह सिखाया कि सच्ची शक्ति दयालुता, प्रेम और सेवा में होती है। और इस तरह, मंत्रलोक राज्य में सभी लोग खुशी-खुशी और शांति से रहने लगे।
गोविंद और परी
एक किसान था। उसका एक बेटा था। उसका नाम गोविंद था। वह बहुत आलसी था। वह कोई काम नहीं करता था और दिन भर इधर-उधर भटकता रहता था। मित्रों के साथ घूमता और कल्पना के घोड़े दौड़ाता।
एक दिन गोविंद ने अपनी माँ से कहा, “माँ, मैं राजकुमारी के साथ शादी करूंगा।” गोविंद की बे-सिर-पैर की बातें सुन कर माँ को हँसी आ गई। वह बोली, “मूर्ख, तेरे जैसे आलसी को राजकुमारी कौन देगा ? पहले तू लायक बन, फिर राजकुमारी के बारे में सोचना।”
माँ की बात गोविंद को चुभ गई। वह कुछ नहीं बोला। शाम को बिना खाए-पिए और बिना किसी से कुछ कहे, वह घर से निकल गया। रात के अंधेरे में चलते-चलते वह यही सोच रहा था कि मैं लायक बनूँगा और राजकुमारी से शादी करूँगा। चलते-चलते उसका पैर फिसल गया। उसका सिर एक बड़े पत्थर से टकराया और वह बेहोश हो कर गिर पड़ा।
गोविंद को जब होश आया तो उसका सिर एक परी की गोद में था। परी उसके सिर पर प्यार से हाथ फेर रही थी। गोविंद परी को देखता ही रहा। परी ने उससे कहा, “भैया, तुम्हें राजकुमारी से शादी करनी है, तो तुम आलस्य छोड़ दो और मेहनत करो। तुम्हारी इच्छा जरूर पूरी होगी।” इतना कह कर परी गायब हो गई। गोविंद उठा और आगे बढ़ा। चलते-चलते उसने एक रमणीय स्थल देख कर वहाँ एक झोंपड़ी बनाई। वह आसपास के खेतों में मजदूरी करने लगा।
स्वयं खाना बनाता और खाता। उसने आलस्य छोड़ दिया था। उसे अब काम करने में आनंद आता था।
एक दिन राजा अपने काफ़िले के साथ शिकार करने निकला। उसके साथ राजकुमारी और रानी भी थीं। जंगल में पहुँच कर राजा ने एक हिरन का पीछा किया। हिरन अपने प्राण बचाने के लिए भागने लगा। राजा ने भी उसके पीछे अपना घोड़ा दौड़ाया। राजा ने निशाना लगा कर तीर छोड़ा। तीर तो छूटा, पर उसके साथ राजा भी घोड़े से नीचे गिर पड़ा। एक धमाका हुआ और राजा बेहोश हो गया।
पास में ही गोबिंद की झोंपड़ी थी। आवाज सुन कर वह बाहर आया। वह नीचे पड़े हुए राजा को उठा कर अपनी झोंपड़ी में ले आया। उसने राजा को अपने पलंग पर सुलाया और उसे होश में लाने की कोशिश करने लगा। थोड़ी देर में राजा को होश आया। गोविंद ने उसे ठंडा पानी पिलाया और जो कुछ भोजन उसकी झोंपड़ी में था, उसे खिलाया। इस प्रकार गोविंद ने राजा की अच्छी सेवा की।
इतने में रानी, राजकुमारी और राजा का काफ़िला राजा की खोज करता हुआ। गोविंद की झोंपड़ी पर पहुँचा। राजा को सुरक्षित देख कर सभी को खुशी हुई। गोविंद ने पूरी हकीकत कह सुनाई। गोविंद ने राजा को बचाया है, यह जान कर सब ने गोविंद का आभार माना। राजकुमारी तो गोविंद के गठीले शरीर, तेजस्वी चेहरे और सुंदर व्यवहार को देख कर उस पर मोहित हो गई।
गोविंद सेवाभावी और मेहनती था, इसलिए राजा को भी गोविंद पसंद आ गया। राजा गोविंद को अपने साथ राजमहल ले आया। गोविंद राजमहल के बगीचे में काम करने लगा। राजकुमारी को गोविंद बहुत पसंद था। इसलिए उसने अपने माता-पिता से कहा, “मैं गोविंद के साथ शादी करना चाहती हूँ।” राजा और रानी ने राजकुमारी को शादी के लिए स्वीकृति दे दी। कुछ समय के बाद राजकुमारी की गोविंद के साथ धूमधाम से शादी हो गई।
अब गोविंद को अपने माता-पिता की याद आई। वह राजकुमारी के साथ रथ में बैठ कर अपने घर गया। दोनों ने माता-पिता को प्रणाम किया। अपने बेटे का स्वप्न साकार हुआ देख कर माता-पिता की आँखों में खुशी के आंसू आ गए।
माँ ने गोविंद से कहा, “देखा न बेटे, मेहनत का फल कितना मीठा होता है!”
तीन वरदान
एक नगर था। उसमें एक सेठ रहते थे। उनके पड़ोस में एक गरीब किसान रहता था। सेठ धनी थे, लेकिन बहुत कंजूस थे। जबकि गरीब किसान दिल का उदार था।
शाम का समय था। एक मुसाफ़िर सेठ के दरवाजे पर आया। वह भूखा और बहुत थका हुआ था। उसे देखते ही सेठजी ने गुस्से से कहा, “चला जा यहाँ से। मुझसे कुछ मिलने की आशा मत रखना।”
“सेठजी, मैं बहुत थका हुआ हूँ, बहुत भूखा भी हूँ। सरदी के दिन हैं। मुझे आज की रात अपने यहाँ आश्रय दीजिए। सुबह होते ही मैं चला जाऊंगा। दया कीजिए। भगवान आपका भला करेगा।” मुसाफ़िर एक ही साँस में यह सब कुछ कह गया।
सेठजी ने गुस्से से कहा, “क्या यह धर्मशाला है? चला जा यहाँ से, नहीं
तो नौकर को बुला कर तुझे बाहर निकलवा दूंगा।”
मुसाफिर वहाँ से निकल कर पास में ही गरीब किसान के घर गया। किसान ने मुसाफ़िर को आश्रय दिया। उसे घर में बिठा कर प्रेम से भोजन कराया। उसके साथ बातें कीं और एक कमरे में खाट पर गुदड़ी बिछा दी। मुसाफ़िर शांतिपूर्वक सो गया।
सुबह होते ही मुसाफ़िर जागा। जाते-जाते दिव्य-स्वरूप धारण कर उसने किसान से कहा, “मैं मुसाफ़िर बन कर तेरी परीक्षा लेने आया था। मैं तेरी सेवा-भक्ति से बहुत खुश हुआ हूँ। तुम कोई वरदान मांगो। मैं तुम्हारी इच्छा पूरी करूंगा।”
किसान की आंखों में खुशी के आंसू आ गए। वह भगवान के चरणों में गिर कर कहने लगा, “भगवान, मेरी कोई इच्छा नहीं है। सेवा-भक्ति में मेरी श्रद्धा बनी रहे, यही मेरी इच्छा है।”
‘तथास्तु’ कह कर भगवान अदृश्य हो गए। तभी एक अद्भुत घटना घटी। किसान के घर के स्थान पर एक सुंदर हवेली बन गई। जहाँ पुराना बाड़ा था, वहां एक सुंदर बगीचा बन गया।
किसान की हवेली और सुंदर बगीचा देख कर सेठ को ईर्ष्या हुई। किसान से इस परिवर्तन का कारण जान कर सेठ को बहुत पश्चात्ताप हुआ। वे तुरंत उस मुसाफ़िर की खोज में निकल पड़े। थोड़ी दूर जाने पर सेठ ने एक पेड़ के नीचे उस मुसाफिर को देखा। सेठ दौड़ कर उसके पैरों में गिर गए और बोले, “हे, भगवान, देव, मैं आपको नहीं पहचान सका। मेरी भूल क्षमा करें। आप मेरे घर पधारें और मुझे आशीर्वाद दें।”
भगवान कंजूस सेठ का उद्देश्य समझ गए। वे हँसते हुए बोले, “मैं तेरा आमंत्रण स्वीकार नहीं कर सकता, फिर भी मैं तेरी इच्छा अवश्य पूरी करूंगा। मैं तुझे तीन वरदान देता हूँ। तेरी तीन इच्छाएं पूरी होगी।”
सेठ यही तो चाहते थे। भगवान ने एक के बदले तीन वरदान दिए। सेठ को बहुत खुशी हुई।
सेठ घर गए। ‘मैं तीन वरदान में क्या-क्या माँगूँ?’ इसी विचार में उन्हें पूरी रात नींद नहीं आई। फिर भी वे कोई निर्णय नहीं ले सके। सुबह होते ही मुर्गा बोल उठा – “कुकडू… कू।”
“हे भगवान! इस मुर्गे का नाश हो। इसकी आवाज के कारण मैं शांति से विचार भी नहीं कर सकता।” सेठ जोर से बोल उठे।
तुरंत ही मुर्गा लुढ़क गया। उसकी आवाज बंद हो गई। सेठ समझ गए कि उनकी पहली इच्छा पूरी हो गई। पहला वरदान बेकार गया, इसलिए सेठ को अपने आप पर बहुत गुस्सा आया। उन्होंने सोचा, ‘पहला वरदान तो बेकार गया। अब अन्य दो वरदान मांगने में बहुत सावधानी रखनी पड़ेगी।’ सुबह होते ही सेठ स्नान करके तैयार हो गए। हल्का-सा नाश्ता किया।
घर के बगीचे में गए। वहाँ एक बेंच पर बैठ कर विचार करने लगे कि अन्य
दो वरदानों में क्या माँगा जाए ?
इसी समय घर पर मेहमान आ गए। नौकर सेठ को बुलाने आया। सेठ ने चिढ़ कर कहा, “जा, अभी मैं गहन विचार में डूबा है। अभी मेरी इच्छा बेंच पर चिपके रहने की है। मुझे कोई न बुलाए।”
थोड़ी देर में सेठानी स्वयं बगीचे में सेठ के पास आई और बोली, “सेठजी! किस विचार में पड़े हैं? मेहमान को जल्दी है। जरूरी कार्य है, अंदर चलिए।”
सेठ गहरे विचारों में डूबे हुए थे। वे कुछ नहीं बोले। सेठानी ने सेठ का हाथ पकड़ कर उसे जोर से हिलाया और खींचा। लेकिन यह क्या? सेठ जिस बेंच पर बैठे हुए थे, उसी से चिपक गए थे। सेठ को भी बहुत आश्चर्य हुआ। वे समझ गए। निराश हो कर सिर पर हाथ मारते हुए बोले, “हे भगवान! मैंने अपना दूसरा वरदान भी व्यर्थ गंवाया।”
“कैसा वरदान ? कैसी बात करते हो ?” सेठानी ने पूछा।
सेठ ने सेठानी को पूरी बात बताई। सेठ की बात सुन कर सेठानी ने उन्हें उलाहना देते हुए कहा, “स्वामी, यह आपके लोभ का परिणाम है। अब शोक करने का कोई अर्थ नहीं। अब तो एक ही उपाय है। आप भगवान से अपना तीसरा वरदान माँग कर बेंच से अलग हो जाओ।”
सेठ को सेठानी की बात उचित लगी। जीवन भर बेंच से चिपके रहने का कोई मतलब नहीं था।
सेठ जोर से बोले, “हे भगवान, आप दयालु हैं। मुझे इस बेंच से मुक्त कर दीजिए।” ऐसा ही हुआ, सेठ बेंच से छूट गए और सेठानी के साथ घर गए।
सेठ को अपने स्वभाव पर पश्चात्ताप हुआ। अब वे उदार बन गए। वे अपनी संपत्ति को अच्छे कार्यों में खर्च करने लगे और लोगों की मदद करने लगे।
फूफू बाबा की कहानी
एक ब्राह्मण था। उसका एक लड़का था। एक दिन बाप-बेटा पडोस के गांव जाने के लिए निकले। चलते-चलते रास्ता क्या भूले कि घने जंगल में पहुंच गए। उस जंगल में एक चुड़ैल रहती थी।
दोनों को जोर की भूख लगी थी। वो चुड़ैल के घर पहुंचे। चुडैल घर में ही बैठी थी। उसे देख कर बाप–बेटा दोनों घर के कोने में पड़े कुठले में छिप गए। दोपहर होने पर चुड़ैल कहीं बाहर गई और दूध की हंडी ले कर लौटी । फ़िर उसने खीर बनाई। खीर गरम थी। उसने उसे ठंडा करने के लिए एक ओर रख दिया।
बेटे को कड़ाके की भूख लगी थी। खीर देख कर उसके मुंह में पानी आ गया। खाने के लिए वह उतावला होने लगा। वह पिता से बोला, ‘बापू अब तो मुझसे रहा नहीं जाता। मैं बाहर निकल कर खीर खाऊंगा। चाहे चुड़ैल मुझे ही क्यों न खा जाए। पिता ने कहा, ‘अच्छी बात है। धीरे से बाहर निकलना। चुड़ैल की बाएं और बैठ कर खीर खाना । उसकी बाई आंख नकली है। इसलिए वह तुझे देख नहीं पाएगी। बेटा धीरे से बाहर निकला। जैसे ही उसने खीर के बरतन में हाथ डाला, गरम-गरम खीर से उसका हाथ जल गया। वह फूक-फूंक कर हाथ को सहलाने लगा। फूफू आवाज उठने लगी। चुड़ैल ने पहले कभी ऐसी आवाज नहीं सुनी थी। वह एकदम डर गई। उसने सोचा, मेरे घर में यह कौन घुस गया? सचमुच यह कोई फूफू बाबा है। शायद बहुत बड़ा जादूगर हो! वह फ़ोरन भागी। रास्ते में उसे एक सियार मिला। सियार ने पूछा, ‘अरी ओ भूत की बहन!
यों तीर की तरह कहां जा रही हो?’ वह बोली, “अब क्या बताऊं? मेरे घर में फूफू बाबा घुसा है। इतनी बढ़िया खीर बनाई थी मैंने, लेकिन नसीब में हो तब न सियार बोला, ‘डरो मत। आओ, मैं तुम्हारे साथ चलता हूं। भला चुड़ैल के घर में घुसने की हिम्मत कोन कर सकता है तुमसे तो सारा जमाना डरता है।
चुड़ैल और सियार दोनों घर पहुंचे।.
सियार ने चारों तरफ देखा, तो कहीं कोई भी नजर नहीं आया। हां, कुठले मैं से फूफू की आवाज जरूर उठ रही थी । बेटा अभी भी अपने जले हुए हाथ पर फूंक मार रहा था। सियार बोला, ‘हूं:..कोई है जरूर। चिंता की बात नहीं। कुठले में झांक कर अभी बताता हूं
सियार आगे बढ़ कर कुठले पर चढ़ा और अंदर उतरने लगा । जैसे ही सियार की पूंछ करीब आई अंदर दुबके बेठे ब्राह्मण ने उसे पकड़ कर मरोड़ दिया। सियार चीखने-चिल्लाने लगा, “बाप रे बाप! कुठले में तो कोई मरोड़ी लाल बैठा है! भागो, भागो। यह तो तुम्हारे रे फूफू बाबा का भी बाप मालूम होता है। लेकिन सियार भागता कैसे? उसकी पूंछ तो ब्राह्मण के हाथ में थी । उसे छुड़ाने के लिए सियार ने ऐसा जोर लगाया कि पूंछ ही टूट गई। वह और चुड़ैल, दोनों अपनी जान बचा कर भाग खड़े हुए।
बाद में ब्राह्मण और उसका बेटा कुठले में से बाहर निकले और खीर खाने के बाद इत्मीनान से अपने घर पहुंच गए ।
कथा सार/ MORAL OF THIS SHORT STORY IN HINDI
तो बच्चों फूफू बाबा कहानी से हमे यह शिक्षा मिलती है कि हमे कैसी भी विपरीत परिस्थितियों में विचलित नहीं होना चाहिए, सद्बुद्धि के प्रयोग से हम बड़ी से बड़ी परेशानी से भी निकल सकतें हैं / THIS SHORT STORY IN HINDI GIVE A LESSON THAT IF WE USE OUR BRAIN AND REMAIN CALM DURING THE TIME OF DIFFICULTY, WE CAN HANDLE ANY KIND OF SITUATION WITH EASE.
इस कहानी में आये हुए कुछ कठिन शब्द
- कुठला – पुराने समय में अनाज या अन्य सामान रखने के लिए मिटटी से बना बड़ा सा बर्तन
- हंडी- मिटटी से बना खाना बनाने के प्रयोग में लाया जाने वाला बर्तन
ईमानदार लकड़हारा
एक गरीब लकड़हारा था, लेकिन था बेहद ईमानदार। एक बार नदी किनारे एक पेड़ से लकड़ी काटते हुए उसकी कुल्हाड़ी नदी में गिर गई। वह दुखी हो उठा क्योकि उसके पास नई कुल्हाड़ी खरीदने के पैसे नही थे। अपनी विवशता पर वह रो उठा। वन देवता उसकी करुण पुकार सुनकर प्रगट हो गए और बोले-चिंता मत करो मैं नदी में से तुम्हारी कुल्हाड़ी अभी निकाल देता हूँ। यह कहकर वह नदी में डुबकी लगाई।
कुछ ही देर बाद वनदेवता पानी से निकले तो उनके हाथ में एक सोने को कुल्हाड़ी थी। सोने की वह कुल्हाड़ी उन्होनें लकड़हारे की ओर बड़ा दी। लकड़हारे ने कहा-नही-नही यह मेरी कुल्हाड़ी नही है। मैं इसे नही ले सकता। मेरी कुल्हाड़ी ऐसी नही थी। वनदेवता ने फिर नदी में डुबकी लगाई। इस बार वह चांदी की कुल्हाड़ी ले आए। लकड़हारे ने कहा-नही-नहीं देव यह भी मेरी कुल्हाड़ी नही है। वनदेवता ने फिर नदी में डुबकी लगाई। इस बार वह साधारण सी कुल्हाड़ी ले आए। लकड़हारे ने कहा-हाँ यही मेरी कुल्हाड़ी है।
वनदेवता ने कहा-जब मैने तुम्हे सोने की कुल्हाड़ी दी तो तुमने मना क्यों कर दिया। लकड़हारे ने कहा-क्योंकि वो मेरी नही थी। लेकिन मुझे तो पता नही था । तुम वो कीमती कुल्हाड़ी ले सकते थे। किन्तु मुझे तो पता था कि जो चीज मेरी नही है वो मैं कैसे ले सकता हूँ। यह बईमानी होती। उस गरीब लकड़हारे की ईमानदारी देखकर वनदेवता बहुत प्रसन्न हुए। उन्होनें उसे आर्शीवाद दिया और उसकी लोहे की कुल्हाड़ी के साथ ही सोने और चांदी की कुल्हाड़ी भी दे दी।
लालची कुत्ता
लालची कुत्ता एक कुत्ते को कहीं से हड्डी मिल गई और वह उसे मुंह में दबाकर भाग निकला। वह किसी ऐसी जगह जा कर उसे खाना चाहता था, जहां और कोई न हो। भागते हुए वह नदी पर बने पुल से होकर गुजरा। एकाएक उसकी नजर पानी में दिखाई दे रही अपनी परछाई पर पड़ी। अपनी परछाई को दूसरा कुत्ता समझकर उसकी हड्डी छीनने के उद्देश्य से वह भौंकने लगा। उसके भौंकते ही मुंह में दबी हड्डी पानी में जा गिरी और लहरों के साथ बह गई। कुत्ता बेचारा भूखा रह गया।
कथा सार/ MORAL OF THIS SHORT STORY IN HINDI
-लालच बुरी बला ।
MORAL OF THIS SHORT STORY IN HINDI IS THAT :- GREED IS ALWAYS DANGEROUS
किसान और साँप की कहानी
एक गांव में एक किसान रहता था। वहाँ पर दो-तीन साल से बारिश नहीं हुई थी, जिस वजह से वहाँ की सारी जमीन सूख चुकी थी । किसान बहुत दुखी था, क्योंकि वो अपने जमीन के ऊपर कोई फसल नहीं उगा पा रहा था । सर्दी का मौसम था| आज किसान पेड़ के नीचे आराम कर रहा था। तभी उसे वहाँ एक सांप नजर आया । वह साँप अपना फन फैलाये हुए बैठा हुआ था । किसान के मन में एक बात आई ।
ये सांप काफी सालों से यहाँ रहता है। इसे भी इस अकाल के समय में मेरी तरह खाना ढूंढने में परेशानी होगी। फिर किसान ने मन ही मन यह तय किया कि वो हर रोज़ सांप को एक कटोरी दूध पिलाएंगा। अगले ही दिन किसान एक कटोरी में दूध ले आया और सांप के बिल के पास रखकर कहने लगा “हे नागराज आपको मेरा प्रणाम, मैंने कभी ध्यान नहीं दिया कि आप भी यही रहते है। सूखे की वजह से मैं तो परेशान हूँ और मुझे लगता है आपको भी परेशानी हो रही होगी इसलिए अब से मैं रोज़ आपको एक कटोरी दूध पिलाया करूँगा” ।
ये बोलकर किसान ने वो कटोरी वही छोड़ दी और वहाँ से चला। अगले दिन सुबह जब वो कटोरी लेने वापस आया तो उसने देखा की कटोरी में कुछ चमक रहा है । किसान ने कटोरी को उठाकर देखा तो उसके अंदर एक सोने का सिक्का था। फिर किसान हर रोज़ सांप को एक कटोरी दूध पिलाता और अगले दिन सुबह हर रोज़ उसे एक सोने का सिक्का मिलता | एक दिन किसान को किसी काम से शहर जाना था, और उसने अपने बेटे को ये जिम्मेदारी सौंपी।
उसने अपने बेटे को कहा बेटा ध्यान से एक कटोरी दूध सांप के बिल के पास रख देना । किसान के बेटे ने अपने पिता के कहे अनुसार एक कटोरी दूध साँप के बिल के पास रख दी । अगली सुबह उसे भी सोने का सिक्का मिला। उसके बेटे ने सोचा की यह सांप तो बड़ा कंजूस है जरूर उसके पास बहुत सारे सोने के सिक्के होंगे। लेकिन यह तो हर रोज़ बस एक ही सिक्का देता है। अगर मैं इसे मार दूँ तो मैं इसके सारे सोने के सिक्के ले सकता हूँ। .
अगली शाम जब लड़का दूध देने के लिए गया तो उसने सांप को देखते ही उस पर छड़ी से वार किया, मगर सांप भी सतर्क था उसे छड़ी तो लगी पर उसने किसान के बेटे को भी डंस लिया। सांप का विष बहुत ही जहरीला था। देखते ही देखते किसान के बेटे की मौत हो गयी और जख्मी सांप अपने बिल में वापस चला गया। जब किसान वापस लौट कर आया तो उसे अपने बेटे की मृत्यु के बारे में पता चला, साथ ही वह बहुत दुखी और क्रोधित होकर सांप के बिल के पास उसे मारने पहुंचा।
तभी उसने सांप को देखा के साँप को भी काफी चोट आयी है। उसे देखते ही वह समझ गया कि उसके बेटे ने सांप पर हमला किया होगा । वो समझ गया की परिस्थिति ही कुछ ऐसी हो गई होगी कि सांप ने उसके बेटे को डंसा होगा। उसने हाथ जोड़कर सांप से माफी मांगी और सांप से अपने बेटे को वापस लाने के लिए कहा। थोड़ी देर बाद सांप अपने बिल में जाकर, बाहर आया और उसने किसान को एक जड़ी- बूटी दी।
किसान जड़ी- बूटी लेकर अपने मरे हुए बेटी के पास गया, उसने उसके नाक के पास वो जड़ी-बूटी रखी। थोड़ी देर बाद उसका बेटा खाँसता हुआ उठ खड़ा हुआ। जिंदा होने के बाद किसान के बेटे को उसकी गलती का अहसास हुआ| वो अपने पिता के साथ सांप के बिल के पास गया और उससे हाथ जोड़कर माफी मांगी, और बोला “हे नागराज मुझे क्षमा कर दीजिए। अब मैं किसी भी पशु, पक्षी या जानवर पर हमला नहीं करूँगा। मुझे क्षमा दान दें”। साँप ने भी खुश होकर अपना सिर हिलाया और वापस अपने बिल में चला गया।
कथा सार/ MORAL OF THIS SHORT STORY IN HINDI
इस कहानी से हमें दो सीख मिलती है पहली ये कि लालच करना बुरी बात और दूसरी सीख ये है की हमे निर्दोष जीवो पे हमला नहीं करना चाहिए। हमें उन्हें बिल्कुल भी परेशान नहीं करना चाहिए
This short story in Hindi tells us that greed is evil. The second moral of this story is that we do not have to kill innocent animals.
कहानी से जुड़े शब्दार्थ
अकाल- सूखे की स्थिति
सतर्क – सावधान रहना
जब राजा बना भिखारी
एक भिखारी भीख मांगने निकला। उसका सोचना था कि जो कुछ भी मिल जाए, उस पर अधिकार कर लेना चाहिए। 1 दिन वो राजपथ पर बढ़ा जा रहा था। एक घर से उसे कुछ अनाज मिला। वो आगे बढ़ा और मुख्य मार्ग पर आ गया। अचानक उसने देखा कि नगर का राजा रथ पर सवार होकर उसकी ओर आ रहा है। वो सवारी देखने के लिए खड़ा हो गया, लेकिन यह क्या?
राजा की सवारी उसके पास आकर रुक गई। राजा रथ से उतरा और बिखारी के सामने हाथ पसारकर बोला, मुझे कुछ भीख दे दो। देश पर संकट आने वाला है और पंडितों ने बताया है कि आज मार्ग में जो पहला भिखारी मिले उससे भीख मांगे तो संकट टल जाएगा। इसलिए मना मत करना। भिखारी हक्काबक्का रह गया। राजा देश के संकट को टालने के लिए उससे ही भीख मांग रहा है।
भिखारी ने झोली में हाथ डाला तो उसकी मुट्ठी अनाज से भर गई। उसने सोचा इतना नहीं दूंगा। उसने मुट्ठी थोड़ी सी ढीली कर दी और अनाज के कुछ दाने भरे। लेकिन फिर सोचा कि इतना भी नहीं दूंगा, अगर इतना दिया तो तुम्हारा क्या होगा ये सब सोचते विचारते। उसने अनाज के पांच दाने राजा को दे दी। राजा प्रसन्नतापूर्वक उस भीख को लेके वहाँ से चला गया।
भिखारी जब शाम को घर पहुंचा तो उसने अपनी पत्नी से बोला आज तो अनर्थ हो गया, मुझे ही भीख देनी पड़ी, यह कहकर उसने पत्नी को भीख का झोला उतार कर के दे दिया। पत्नी ने जब झोले को पलटा तो उसमें से पांच सोने के सिक्के निकले। ये देख भीखारी पछता कर बोला “मैंने राजा को सभी कुछ क्यों नहीं दे दिया ? अगर मैंने पूरा झोला राजा को दे दिया होता तो आज मेरे पास कितने सारे सोने के सिक्के होते ? और हमारी गरीबी हमेशा के लिए मिट जाती”।
कथा सार/ MORAL OF THIS SHORT STORY IN HINDI
राजा बना भिखारी कहानी से हमें ये सीख मिलती है की दान देने से संपन्नता बढ़ती है। इसके दान हमेशा ही उदारहृदय से करना चाहिए। ये किसी ना किसी स्वरूप में हमें फायदा ही देता है।
MORAL OF THIS SHORT STORY IN HINDI IS THAT WE HAVE TO DONATE WITH OPEN HEART, DONATIONS ALWAYS HELP US BACK.
कहानी मे आने वाले कठिन शब्दों के अर्थ-
अधिकार करना :– अपना मानकर कब्जा कर लेना,
राजपथ :– वह रास्ता जिसके राजा का घर/महल हो
मार्ग– रास्ता
हाथ पसारकर:– कुछ मांगने के लिए हाथ को आगे बढ़ाना/ फैलाना
हक्काबक्का:– हैरान
झोला:– थैला
प्यासा कौवा
पानी की तलाश में भटक रहे एक कौवे को एक घड़ा दिखाई दिया। किंतु उसमें पानी इतना कम था कि कौवे की चोंच उस तक पहुंच ही नहीं पा रही थी। तब कौवे को एक उपाय सूझा वह अपनी चोंच से कंकड़ उठा-उठाकर घड़े में डालने लगा। कंकड़ डलने से धीरे-धीरे पानी e की सतह ऊपर उठने लगी। अंततः पानी घड़े के मुंह तक आ गया और कौवा अपनी सूझबूझ के कारण प्यास बुझाने में सफल रहा।
कथा सार/ MORAL OF THIS SHORT STORY IN HINDI
कथा सार मेहनत का फल सदैव मीठा होता है।
MORAL OF THIS SHORT STORY IN HINDI IS THAT HARD WORK ALWAYS PAY.
झूठी शान की कहानी
एक जंगल में पहाड़ की चोटी पर एक किला बना था। किले में उस राज्य की सेना की एक टुकड़ी तैनात थी। किले के एक कोने के बाहर की ओर एक बड़ा सा पेड़ था। उस पेड़ पर एक उल्लू रहता था। वो खाने की तलाश में नीचे घाटी में फैले आस-पास के गांव में जाता। वंहा की चारागाहों और लंबी घास, झाड़ियों में कई छोटे-छोटे कीट पतंग मिलते थे, जिन्हें उल्लू खाता और आराम से अपना जीवन जी रहा था।
पास में ही एक बड़ी झील थी, जिसमें हंस रहते थे। उल्लू पेड़ पर बैठा झील को देखता रहता। उसे हंसों का तैरना और उड़ना देखकर बहुत आनंद आता था। वो सोचता था कि हंस कितना शानदार पक्षी है। एकदम दूध सा सफेद, गुलगुला शरीर। सुराहीदार गर्दन, सुंदर मुख और तेजस्वी आंखें उसकी बड़ी इच्छा थी कि कोई हंस उसे अपना दोस्त बना ले।
एक दिन उल्लू पानी पीने के बहाने झील के किनारे एक झाड़ी के पास उतरा। पास ही एक बहुत सुन्दर और सौम्य हंस पानी में तैर रहा था। झाड़ी की आवाज़ सुनकर वह झाड़ी के पास आया। उल्लू ने बात करने का बहाना ढूंढा और बोला। हंस जी आपकी आज्ञा हो तो पानी पी लूँ? बहुत प्यास लगी है। हंस ने चौंककर से देखा और बोला, मित्र पानी प्रकृति का दिया वरदान है। इस पर किसी एक का अधिकार नहीं बल्कि सबका हक है। उल्लू ने पानी पीकर सिर हिलाया जैसे उसे निराशा हुई। हंस ने पूछा मित्र असंतुष्ट दिख रहे हो? क्या प्यास नहीं बुझी? उल्लू ने कहा पानी की प्यास तो बूझ गई पर आपकी बातों से मुझे ऐसा लगता है कि आप मीठी वाणी और ज्ञान के सागर हैं आपकी बात सुनकर मुझे ज्ञान लेने की प्यास जग गई है, वो कैसे ? हंस मुस्कुराया। और बोला मित्र आप कभी भी यहाँ आ सकते और मुझसे बात कर सकते हैं। मैं जो जानता हूँ वो आपको बताऊँगा और मैं भी आपसे कुछ सीखूंगा। इसके बाद हंस व उल्लू रोज़ मिलने लगे।
एक दिन हंस ने उल्लू को बता दिया कि वो वास्तव में हंसों का राजा हंसराज है। अपना असली परिचय देने के बाद हंस अपने मित्र को निमंत्रण देकर अपने घर ले गया। हंस के यहाँ शाही ठाट थी। खाने के लिए कमल व नरगिस के फूलों के भोजन परोसे गए। उसके अलावा भी बहुत कुछ था। बाद में सौंप इलायची की जगह मोती पेश किए गए। यह देख उल्लू हैरान। अब हंसराज रोजाना ही उल्लू को महल में ले जाकर खिलाने पिलाने लगे। इससे उल्लू को डर लगने लगा कि किसी दिन उसे साधारण समझ के हंसराज उससे दोस्ती ना तोड़ ले इसलिए हंसराज की बराबरी करने के लिए उसने झूठ कह दिया कि वो भी उल्लुओं का राजा उलूकराज है। झूठ कहने के बाद उल्लू को लगा कि उसका भी फर्ज बनता है। हंसराज को अपने घर पर बुलाया जाए।
एक दिन उल्लू ने दुर्ग के भीतर होने वाली गतिविधियों को गौर से देखा और उसके दिमाग में एक योजना आई। उसने महल की बातों को बहुत ध्यान से समझा। सैनिकों के कार्यक्रम को नोट किया। फिर वो हंसराज के पास पहुंचा। जब वो झील पर पहुंचा तब हंसराज कुछ हंस अन्यों के साथ जल में तैर रहे थे। उल्लू को देखते ही हंस बोला “मित्र आप इस समय”? उल्लू ने उत्तर दिया, “हाँ मित्र” मैं आपको आज अपना घर दिखाने वो अपना मेहमान बनाने के लिए लेने आया हूँ। मैं कई बार आपका मेहमान बन चुका हूँ, मुझे भी सेवा का मौका दें, हंस ने टालना चाहा ‘मित्र इतनी जल्दी क्या है फिर कभी चलेंगे’? उल्लू ने कहा ‘आज तो आपको लिए बिना नहीं जाऊंगा’। हंसराज को उल्लू के साथ जाना ही पड़ा।
पहाड़ की चोटी पर बने किले की ओर इशारा कर उल्लू उड़ते उड़ते बोला “वो मेरा किला है”। हंस बहुत प्रभावित हुआ वो दोनों जब उल्लू के घर वाले पेड़ पर उतरे तो किले के सैनिकों की परेड शुरू होने वाली थी। दो सैनिक छत पर बिगुल बजाने लगे। उल्लू किले के सैनिकों के रोज़ के कार्यक्रम को याद कर चुका था इसलिए ठीक समय पर हंसराज को ले आया था। उल्लू :- “देखो मित्र आपके स्वागत में मेरे सैनिक बिगुल बजा रहे है। उसके बाद सैनिक, सेना, और सेनापति सलामी देकर आप को सम्मानित करेगी”। रोज़ की तरह परेड हुई और झंडे की सलामी दी गई। हंस समझा सचमुच उसी के लिए यह सब हो रहा है। उल्लू के इस सम्मान से गदगद होकर हंस बोला, “आप तो एक शूरवीर राजा की भाँति ही राज़ कर रहे हो”। उल्लू ने हंस पर रौब डाला। मैंने अपने सैनिकों को आदेश दिया है कि जब तक मेरे परम मित्र राजा हंसराज मेरे अतिथि है तब तक इसी प्रकार रोज़ बिगुल बजे वो सैनिकों की परेड निकले।
उल्लू को पता था कि सैनिकों का यह हर रोज़ का काम है| हंस को उल्लू ने फल और अखरोट खिलाये। यह सब देखने के बाद भोजन का उतना महत्त्व नहीं रह गया था। सैनिकों की परेड का जादू अपना काम कर चुका था। हंसराज के दिल में उल्लू मित्र के लिए बहुत सम्मान पैदा हो गया । उधर सैनिक टुकड़ी को वहाँ से कूच करने के आदेश मिल चूके थे। दूसरे दिन सैनिक अपना सामान समेटकर जाने लगे तो हंस ने कहा, मित्र देखो आपके सैनिक आपकी आज्ञा के लिए बिना कहीं जा रहे। उल्लू हड़बड़ा कर बोला। किसी ने उन्हें गलत आदेश दिया होगा। मैं अभी रोकता हूँ। ऐसा बोल करके उल्लू चिल्लाया सैनिकों ने उल्लू की आवाज सुनी तो इसे अपशकुन समझकर, जाना स्थगित कर दिया।
दूसरे दिन फिर यही हुआ। सैनिक जाने लगे तो उल्लू ने फिर आवाज़ निकाली सैनिकों के नायक ने क्रोधित होकर सैनिकों को मनहूस उल्लू को तीर मारने का दिया। एक सैनिक ने तीर छोड़ा तीर उल्लू की बगल में बैठे हंस को लगा। तीर लगने पर हंस नीचे गिरा और फड़फड़ा कर मर गया। उल्लू उसके शव के पास दुखी होकर रोने लगा। हाँये मैंने अपनी झूठी शान के चक्कर में अपना परम मित्र को खो दिया। धिक्कार है मुझ पर। उल्लू को आसपास की बिल्कुल भी खबर नहीं थी, वो बेसुध बैठा था। उसके साथ देख एक सियार उस पर झपटा और उसका भी काम तमाम कर दिया।
कथा सार/ MORAL OF THIS SHORT STORY IN HINDI
इस कहानी से हमें ये सीख मिलती है कि हमें वास्तविकता में जीना चाहिए। झूठी शान से हमेशा नुकसान ही होता है।
MORAL OF THIS SHORT HINDI STORY IS THAT WE HAVE TO LIVE IN REALITY, FALSE PRIDE ALWAYS LEADS TO LOSS.
खरगोश और कछुआ
कई साल पहले की बात है, एक छोटे से गाँव में खरगोश और कछुआ रहते थे। दोनों के बीच एक दिन एक दोस्ती हुई। एक दिन, खरगोश ने छलांग लगाते हुए कहा, “मैं तुमसे किसी भी प्रतियोगिता में आसानी से जीत सकता हूँ।”
कछुआ थोड़ी सा मुस्कराया और बोला , “तुम जैसे तेज दौड़ने वाले के सामने, मैं कैसे जीत सकता हूँ? पर चलो ठीक है तुम्हारा मन रखने के लिए हम दोनों एक रेस जरूर लगाएंगे ।”
खरगोश और कछुआ ने गाँव के सभी जानवरों को दौड़ में बुलाया। दौड़ के दिन, सभी जानवर उत्साह से भरे थे।
दौड़ शुरू हुई और खरगोश अपनी तेज से कछुए से काफी आगे निकाल जाता है । खरगोश आगे निकाल कर यह सोचता है की उसने बड़ी दूरी तय कर ली है, कछुआ उसे किसी प्रकार भी नहीं पकड़ सकता । खरगोश तेज दौड़ने के कारण थोड़ी देर में ही थक गया था, इसलिए वह एक पेड़ के नीचे आकर आराम करने लगता है ।
दूसरी ओर, कछुआ धीरे-धीरे आ रहा था। उसकी धैर्यशीलता और लगन उसकी अगली चाल को बता रही थी। खरगोश ने देखा कि कछुआ उसकी ओर आ रहा है, यह देखकर वह फिर से तेज दौड़ते हुए कछुआ को पास कर देता है और फिरसे पेड़ के नीचे आराम करने लगता है ।
फिर कुछ ही समय में, कछुआ खरगोश के पास पहुँच जाता है मगर इस बार थका हुआ खरगोश नींद से उठ नहीं पाता। अंत में, कछुआ दौड़ जीत जाता है।
कथा सार/ MORAL OF THIS SHORT STORY IN HINDI
इस घटना से सबको यह सिख मिली कि धैर्य, स्थिरता, और लगन किसी भी प्रतिस्पर्धा में महत्वपूर्ण होते हैं। खरगोश ने तो तेज दौड़ में जीतने का ठान लिया था, लेकिन कछुआ ने अपनी लगन, धर्य जैसे गुणों की मदद से उसे हराया। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि जीतने के लिए तेज नहीं, स्थिर और समय के साथ चलना महत्वपूर्ण है।
बिल्लियों की लड़ाई की कहानी
बहुत समय पहले की बात एक गांव में दो बिल्ली रहा करती थी। दोनों बहुत ही अच्छी दोस्त थी और दोनों आपस में बहुत प्यार से रहती थी। दोनों की दोस्ती का सभी लोग उदाहरण देते थे। वह दोनों बहुत खुश थीं। उन्हें जो कुछ भी मिलता था उसे आपस में मिल बांटकर खाया।
एक दिन दोनों दोपहर के वक्त खेल रही थी खेलते-खेलते दोनों को ज़ोर की भूख लग आई। वह खाने की तलाश में निकल पड़ी। कुछ दूर जाने पर एक बिल्ली को एक रोटी का टुकड़ा नजर आया । उसने झट से उस रोटी को उठा लिया, और जैसे ही उसे खाने लगी तो दूसरी बिल्ली ने कहा- अरे! या क्या तुम अकेले ही रोटी खाने लगी? मुझे भूल गयी क्या मैं तुम्हारी दोस्त हूँ और हम जो भी खाते हैं आपस में बाँट कर ही खाते हैं ।
पहली बिल्ली ने रोटी के दो टुकड़े किये और दूसरी बिल्ली की और एक टुकड़ा बढ़ाया यह देखकर दूसरी बिल्ली बोली , यहाँ क्या “तुमने मुझे छोटा टुकड़ा दिया”, यह तो गलत है। बस इसी बात पर दोनों में झगड़ा शुरू हो गया और झगड़ा इतना बढ़ गया कि सारे जानवर एकट्ठा हो, इतने में एक बंदर भी आ गया ।
दोनों को झगड़ते देख वो बोला, “अरे बिल्ली रानी क्यों झगड़ रही हो ?” दोनों ने अपनी दुविधा बंदर को बताई तो बंदर ने कहा बस इतनी सी बात मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ ।
“मेरे पास एक तराजू है उसमें मैं ये दोनों टुकडों को तौल कर तुम्हें बता सकता हूँ कि कौन सा टुकड़ा बड़ा है और कौन सा छोटा”। फिर हम दोनों टुकड़े को बराबर कर लेंगे। बोलो तुम लोगों को मंजूर है। दोनों बिल्लियां तैयार हो गई।
बंदर पेड़ पर चढ़ा और तराजू ले आया। उसने दोनों टुकड़े को एक एक पलड़े पर रखा। तौलते समय उसने देखा कि एक पलड़ा भारी है, तो वो बोला “अरे यह टुकड़ा बड़ा है, चलो दोनों को बराबर कर दें”।
यह कहते ही उसने बड़े टुकड़े में से थोड़ा सा तोड़कर खा लिया।इस तरह से हर बार जो पलड़ा भारी हुआ, उस वाली तरफ से उसने थोड़ी सी रोटी तोड़कर अपने मुँह में डालनी शुरू कर दिया । दोनों बिल्लियां अब घबराकर देखती रही वो फिर भी चुपचाप बंदर के फैसले का इंतजार करती रही। लेकिन जब दोनों ने देखा कि दोनों टुकड़े बहुत छोटे छोटे रह गए हैं तो वो बंदर से बोली आप चिंता ना करो अब हम लोग अपनी रोटी आपस में बाँट लेंगे।
इस बात पर बन्दर बोला जैसा आप दोनों को ठीक लगे लेकिन मुझे भी अपनी मेहनत की मजदूरी तो मिलनी ही चाहिए। इतना कहकर बंदर ने रोटी के बचे हुए दोनों टुकड़े भी अपने मुँह मेँ डाल लिए और बेचारी बिल्लियों को वहाँ से खाली हाथ ही लौटना पड़ा। दोनों बिल्लियों को अपनी गलती का अहसास हो चुका था और उन्हें समझ में आ चुका था कि आपस की लड़ाई बहुत ही बुरी होती है और दूसरे इसका फायदा उठा सकते हैं।
कथा सार/ MORAL OF THIS SHORT STORY IN HINDI
बिल्लियों की लड़ाई कहानी से हम लोगों को यह शिक्षा मिलती है। कभी भी आपस में लड़कर रिश्ते खराब नहीं करने चाहिए । क्योंकि जब भी हम आपस में लड़ते हैं तो कोई बाहरी व्यक्ति इसका फायदा उठा सकता है
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