बहुत समय पहले, एक बूढ़ा आदमी और एक बूढ़ी औरत रहते थे। नेक दिल बूढ़े आदमी ने एक छोटी गौरैया को रखा था, जिसका वह प्यार से पालन-पोषण करता था। लेकिन बुढ़िया स्वभाव से चिड़चिड़ी थी। एक दिन, जब गौरैया ने अरारोट का थोड़ा सा लेप चख लिया, जिससे वह अपने कपड़े पर कलफ लगाने जा रही थी, वह गुस्से से भर गई। उसने गौरैया की जीभ काट दी और उसे वहां से भगा दिया।
जब बूढ़ा आदमी पहाड़ियों के उपर से काम करके घर आया और पाया कि चिड़िया उड़ गई है, तो उसने पूछा कि वह कहां गई। बुढ़िया ने उत्तर दिया कि उसने गौरैया को जीभ कट कर उदा दिया, बूढ़े ने इसका कारण पूछा तो बुधिया ने बोला की उसने उसकी जीभ इसलिए काटी क्योंकि वह कलफ वाला लेप चुरा रही थी। यह क्रूरता भरी कहानी सुनकर बूढ़ा बहुत दुखी हुआ। उसने सोचा, “हाय! मेरी चिड़िया कहाँ चली गई होगी? बेचारी! बेचारी जीभ-कटी गौरैया! अब तेरा घर कहाँ है?” वह बुढा दूर-दूर तक भटकते हुए, अपनी प्यारी चिड़िया को ढूंढता रहा और कहता रहा: “गौरेया महाराज! गौरेया महाराज! आप कहाँ हो?”
एक दिन, एक पहाड़ की तलहटी में, बूढ़े व्यक्ति का सामना अपनी खोई हुई चिड़िया से हो गया! उन्होंने एक-दूसरे को सकुशल पाकर बधाई दी, फिर गौरैया बूढ़े आदमी को अपने घर ले गई। उसे अपनी पत्नी और बच्चों से मिलवाने के बाद, उसने उसके सामने तरह-तरह के व्यंजन परोसे और उसकी खूब खातिरदारी की।
“कृपया हमारे मामूली भोजन का आनंद लें,” गौरैया ने कहा। “यह जैसा भी है, आपका स्वागत है।”
“क्या विनम्र गौरैया है!” बूढ़े आदमी ने उत्तर दिया। वह बहुत समय तक गौरैया का मेहमान रहा, और हर दिन शाही भोजन का आनंद उठाता रहा। अंत में बूढ़े आदमी ने कहा कि उसे अब घर लौटना चाहिए। चिड़िया ने उसे दो बांस की टोकरियाँ भेंट कीं और विदाई उपहार के रूप में उन्हें अपने साथ ले जाने को कहा। एक टोकरी भारी थी, और दूसरी हल्की। बूढ़े आदमी ने कहा कि चूंकि वह कमजोर और वृद्ध है, वह केवल हल्की टोकरी लेगा। उसने उसे कंधे पर उठाया, और गौरैया परिवार को उदास छोड़कर वह घर लौट आया।
जब बूढ़ा आदमी घर पहुंचा, बुढ़िया बहुत क्रोधित हुई और उसे डांटने लगी: “अच्छा, तो बताओ, इतने दिनों कहाँ गायब थे? इस उम्र में ऐसे घूमना अच्छा लगता है!”
“अरे,” उसने उत्तर दिया, “मैं गौरैयों के घर घूमने गया था। जाते वक्त उन्होंने मुझे यह टोकरी विदाई उपहार के रूप में दी।” फिर उन्होंने यह देखने के लिए टोकरी खोली कि अंदर क्या है। देखो तो, वह सोने-चांदी और कीमती चीजों से भरी हुई थी! जब लालची और चिड़चिड़ी बुढ़िया ने अपने सामने इतना धन देखा, तो उसने डांटना छोड़ दिया और खुशी से फूली नहीं समाई।
“मैं भी जाऊँगी गौरेया के घर! मुझे भी सुंदर उपहार मिलेगा!” उसने कहा, और बूढ़े आदमी से गौरैयों के घर का रास्ता पूछ कर चल दी।
रास्ता पूछते-पूछते आखिरकार उसे जीभ-कटी गौरैया मिल गई। वह बोली: “अच्छा हुआ तुम मिल गए गौरेया महाराज! मैं आपसे मिलने के लिए बहुत उत्सुक थी!” चापलूसी भरी बातों से उसने गौरैया को खुश करने की कोशिश की।
चिड़िया बुढ़िया को अपने घर आमंत्रित करने के अलावा और कुछ कर भी नहीं सकती थी। उसने कोई मेहमाननवाज़ी नहीं की, ना ही जाते समय कोई उपहार की बात की। फिर भी बुढ़िया नहीं मानी। उसने कहा कि वह अपनी यात्रा की यादगार में कुछ लेकर जाएगी। गौरेया ने पहले की तरह दो टोकरियाँ उसके सामने रखीं। लालची बुढ़िया ने उनमें से भारी टोकरी चुन ली और लेकर चल पड़ी। लेकिन जब उसने यह देखने के लिए टोकरी खोली कि अंदर क्या है, तो उसमें से तरह-तरह के भूत और प्रेत निकल आए और उसे सताने लगे।
वहीं दूसरी ओर, बूढ़े आदमी ने एक बेटे को गोद लिया, और उसका परिवार समृद्ध होता गया। क्या खुशनसीब बूढ़ा है!
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