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Class 2 Short Moral Stories in Hindi

By Deepshikha choudhary

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Class 2 Short Moral Stories in Hindi for childrens, our stories are short with proper illustrations, each and every story is carefully selected for childrens of class 2, 3
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Class 2 Short Moral Stories in Hindi
हम यहाँ हर रोज एक नई कहानी जोड़तें हैं

नमस्ते दोस्तों, बच्चों के विकास में MORAL STORIES का महत्वपूर्ण योगदान होता है और यहाँ हम प्रस्तुत कर रहे हैं “Class 2 Short Moral Stories in Hindi.” यह कहानियाँ न केवल मनोरंजन प्रदान करती हैं, बल्कि बच्चों को अच्छे मार्गदर्शन की भी प्रेरणा देती हैं।
इन कहानियों के माध्यम से बच्चे सिखते हैं कि कैसे सही और गलत के बीच अंतर की पहचान करें और उन्हें अच्छे आदर्शों की पहचान होती है। यह कहानियाँ उनकी भावनाओं को समझने में मदद करती हैं और उन्हें सामाजिक मूल्यों की पहचान करने में सहायक होती हैं।

आपके बच्चों के नैतिक विकास में “कक्षा 2 की छोटी मोरल स्टोरीज “ मददगार साबित हो, हम यही कामना करते हैं।

यह एक छोटी सी कहानी है जिसमें टीम वर्क और समुदाय के महत्व के बारे में बताया गया है।

एक छोटे से गांव में, एक बूढ़े आदमी ने अपने बगीचे में एक शलजम लगाया। शलजम इतना बड़ा और मजबूत हुआ कि बूढ़ा उसे अकेले बाहर नहीं निकाल पाया। इसलिए,एक-एक करके, उन्होंने मदद के लिए पुकारा: पहले उनकी पत्नी, फिर उनकी पोती, फिर उनका कुत्ता (जुरका), और फिर बिल्ली (मुर्का)। लेकिन सबके खींचने पर भी शलजम हिला नहीं।

story illustration of class 2 short moral story of an old age farmer with a big tulip

आखिरकार, हताश बूढ़े आदमी ने पास से गुजरते हुए एक छोटे से चूहे को पुकारा: “छोटे चूहे, छोटे चूहे, आओ और इस विशाल शलजम को खींचने में हमारी मदद करो!”

चूहा, आश्चर्यजनक रूप से, मान गया। पर बूढ़े की पत्नी बोली के यह तो इतना छोटा सा चूहा है हम सब इतने बड़े होक भी इस शलजम को नहीं निकल पा रहे है तो यह चूहा कैसे करेगा? वह छोटा चूहा शलजम के पास भागा और एक जोरदार कोशिश से शलजम की जड़ को कुतरने लगा। आखिरकार छुए के कुतरने से शलजम की जड़ ढीली होने लगी। टीम में इस छोटे से साथी के जुड़ने के साथ, आखिरकार वे मिलकर विशाल शलजम को जमीन से बाहर निकालने में सफल रहे।

यह कहानी, हालांकि सरल है, सहयोग के मूल्य पर प्रकाश डालती है और बताती है कि आकार या ताकत की परवाह किए बिना, हर कोई एक साझा लक्ष्य में योगदान दे सकता है। यह एक अच्छा उदाहरण है कि हम सब साथ मिलकर और मजबूत होते हैं।

हँसो की चतुराई

Class 2 Short Moral Stories in Hindi for childrens, our stories are short with proper illustrations, each and every story is carefully selected for childrens of class 2, 3

हंसों के झुण्ड में एक बार एक लोमड़ी जा पहुंची। उसे देखकर हंसों के प्राण सूख गए कि अब जान बचना मुशकिल है। लोमड़ी ने जब उन्हें अत्याधिक भयभीत पाया तो उनकी आखिरी इच्छा पूछी-” तुम लोगों की कोई अंतिम इच्छा हो तो कहो।”

“ मरने से पहले हम ईश्वर को याद करना चाहते हैं।” सभी हंसों ने एकमत होकर कहा। “चलो शुरू हो जाओ।” लोमड़ी उदारता पूर्वक बोली। पहले एक हंस ने जोर से बोलना शुरू किया। उसके बाद दूसरा, फिर तीसरा और इस प्रकार सभी हंस एक साथ जोर-जोर से बोलने लगे। उनका इस प्रकार का तेज कर्कश स्वर सुनकर लोमड़ी के सिर में दर्द हो आया और वह बिना हंसों का शिकार किए ही अपने घर लौट गई।

खट्टे अंगूर कौन खाए

class 2 short moral story of a fox jumping for grapes

एक दिन एक लोमड़ी भूख से बेहाल जंगल में भटक रही थी। वह सारा दिन जंगल की खाक छानती रही, लेकिन उसे कहीं मांस का सूखा टुकड़ा तक न मिला। भटकती हुई वह एक बगीचे में आ गई, जहां बेलों पर पके हुए अंगूरों के गुच्छे लटक रहे थे। यह देखकर उसके मुंह में पानी आ गया। वह उछल-उछलकर अंगूर के गुच्छों तक पहुंचने की चेष्टा करने लगी। पर अंगूर काफी ऊंचाई पर थे, उन्हें पाने के लिए लोमड़ी खूब कूदी-फांदी, मगर वह अंगूर तक नहीं पहुंच सकी। एक तो भूख के मारे वह पहले ही अधमरी हुई पड़ी थी, दूसरे यहां कई-कई फुट उछलने के कारण उसकी पसलियां हिल गई। आखिर थककर उसने उम्मीद छोड़ दी और वहां से चलती बनी। जाते-जाते अपने दिल को समझाने के लिए उसने कहा, ‘अंगूर खट्टे हैं। ऊं हूं! ऐसे खट्टे अंगूर कौन खाए ?’

नाचने वाली मछलियां

नाचने वाली मछली (class 2 short moral stories in hindi )

एक मछुआरा मछली पकड़ने के साथ-साथ बांसुरी भी बहुत अच्छी बजाता था। एक दिन वह अपनी बांसुरी तथा मछलियों का टोकरा लेकर नदी किनारे एक चट्टान पर जा बैठा। उसका सोचना था कि बांसुरी की मधुर तान सुनकर मछलियां खुद ब खुद उसके टोकरे में आ गिरेंगीं। लेकिन ऐसा कुछ न हुआ और एक भी मछली निकट तक नहीं आई। मछुआरा अब निराश हो चला था। भारी कदमों से वह घर की ओर बढ़ चला। वहां जाकर उसने मछली पकड़ने का जाल उठाया और सीधे ले जाकर पानी में डाल दिया। कुछ ही देर में उसकी टोकरी मछलियों से भर गई। जाल में फंसी मछलियां अभी जिन्दा थीं और छटपटा रही थीं। यह देख मछुआरा बोला- “अजीब मूर्ख मछलियां हैं जब मैं बांसुरी बजा रहा था तब तो नाची नहीं और अब मैं बांसुरी नहीं बजा रहा हूं तो नाच रही हैं।”

जब शेर ने किया प्रेम

जब शेर ने किया प्रेम (class 2 short moral stories in hindi)

जंगल के राजा शेर ने एक दिन यूं ही घूमते-टहलते एक सुन्दर किसान कन्या को देखा, जो खेतों में काम कर रही थी। पहली ही नजर में शेर उस लड़की पर रीझ गया। फिर एक दिन शेर जा पहुंचा उस लड़की के पिता के पास और विवाह के लिए आग्रह करने लगा। लड़की का पिता इस कारण शेर को अपने पास आया देख आश्चर्यचकित रह गया। लेकिन उसने सीधे-सीधे शेर को इन्कार करना ठीक न समझा और बोला-” मेरी लड़की को तुम्हारे दांत व तीखें नाखून पसंद नहीं। पहले इन्हें निकलवा कर आओ और अपने नाखून व दांत उखड़वाकर आ गया। अब भला नख-दंत विहीन शेर की ताकत ही क्या रह गई थी।

अब शेर फिरसे लड़की के घर रिश्ता मांगने पहुँच गया । लड़की का पिता समझदार था। वह जनता था कि अब शेर ताकतवर नहीं रह गया है अगर इसे कुछ दिन और रोक लिया गया तो , यह शेर भूख से ही मर जाएगा, तब लड़की के पिता ने कहा “मैंने पंडित जी से बात की है तुम्हारा रिश्ता 2 महीने बाद का तय किया गया है।” यह सुनकर मूर्ख शेर बाद खुश हुआ, और वह वापस जंगल लौट आया, परंतु बिना दांत और नाखूनों के शेर अब शिकार नहीं कर पाया और भूख से ही मर गया । इस तरह लड़की के पिता ने “सांप को भी मार दिया और लाठी भी नहीं टूटी” ।

ईमानदार लकड़हारे की कहानी

ईमानदार लकड़हारे की कहानी (class 2 short moral stories in hindi)

एक गरीब लकड़हारा था, लेकिन था बेहद ईमानदार। एक बार नदी किनारे एक पेड़ से लकड़ी काटते हुए उसकी कुल्हाड़ी नदी में गिर गई। वह दुखी हो उठा क्योकि उसके पास नई कुल्हाड़ी खरीदने के पैसे नही थे। अपनी विवशता पर वह रो उठा। वन देवता उसकी करुण पुकार सुनकर प्रगट हो गए और बोले-चिंता मत करो मैं नदी में से तुम्हारी कुल्हाड़ी अभी निकाल देता हूँ। यह कहकर वह नदी में डुबकी लगाई।

कुछ ही देर बाद वनदेवता पानी से निकले तो उनके हाथ में एक सोने को कुल्हाड़ी थी। सोने की वह कुल्हाड़ी उन्होनें लकड़हारे की ओर बड़ा दी। लकड़हारे ने कहा-नही-नही यह मेरी कुल्हाड़ी नही है। मैं इसे नही ले सकता। मेरी कुल्हाड़ी ऐसी नही थी। वनदेवता ने फिर नदी में डुबकी लगाई। इस बार वह चांदी की कुल्हाड़ी ले आए। लकड़हारे ने कहा-नही-नहीं देव यह भी मेरी कुल्हाड़ी नही है। वनदेवता ने फिर नदी में डुबकी लगाई। इस बार वह साधारण सी कुल्हाड़ी ले आए। लकड़हारे ने कहा-हाँ यही मेरी कुल्हाड़ी है।

वनदेवता ने कहा-जब मैने तुम्हे सोने की कुल्हाड़ी दी तो तुमने मना क्यों कर दिया। लकड़हारे ने कहा-क्योंकि वो मेरी नही थी। लेकिन मुझे तो पता नही था । तुम वो कीमती कुल्हाड़ी ले सकते थे। किन्तु मुझे तो पता था कि जो चीज मेरी नही है वो मैं कैसे ले सकता हूँ। यह बईमानी होती। उस गरीब लकड़हारे की ईमानदारी देखकर वनदेवता बहुत प्रसन्न हुए। उन्होनें उसे आर्शीवाद दिया और उसकी लोहे की कुल्हाड़ी के साथ ही सोने और चांदी की कुल्हाड़ी भी दे दी।

समझदार किसान

एक किसान को नदी पार करनी थी। उसके पास एक शेर, एक घास का गट्ठर और एक बकरी थी। नदी पार करने के लिए घाट पर एक छोटी सी नाव खड़ी थी। एक बार में सिर्फ दो लोग ही उसमें सवार होकर जा सकते थे। किसान ने सोचा कि क्या करूं? मैं यदि पहले शेर को ले जाता हूं तो बकरी घास खा जाएगी। यदि घास ले जाता हूं तो शेर बकरी को खा जाएगा। इसी उधेड़बुन में डूबे किसान को एक उपाय सुझा। किसान पहले बकरी को लेकर चला और उस पार छोड़ आया। फिर वापस आकर शेर को ले गया। शेर को वहाँ छोड़ा और बकरी को वापस ले आया। फिर बकरी को वहाँ छोड़ा और घास का गट्ठर लेका चला और उस पार छोड़ आया। घास शेर के पास छोड़कर वापस आया और बकरी को ले गया। इस प्रकार बिना किसी नुकसान के उसने नदी पार कर ली।

लालची कुत्ता

लालची कुत्ता एक कुत्ते को कहीं से हड्डी मिल गई और वह उसे मुंह में दबाकर भाग निकला। वह किसी ऐसी जगह जा कर उसे खाना चाहता था, जहां और कोई न हो। भागते हुए वह नदी पर बने पुल से होकर गुजरा। एकाएक उसकी नजर पानी में दिखाई दे रही अपनी परछाई पर पड़ी। अपनी परछाई को दूसरा कुत्ता समझकर उसकी हड्डी छीनने के उद्देश्य से वह भौंकने लगा। उसके भौंकते ही मुंह में दबी हड्डी पानी में जा गिरी और लहरों के साथ बह गई। कुत्ता बेचारा भूखा रह गया।

कथा सार/ MORAL OF THE STORY

-लालच बुरी बला
MORAL OF THIS SHORT STORY IN HINDI IS THAT :- GREED IS ALWAYS DANGEROUS

यमराज और इंद्र का तोता

एक बार इंद्र देव ने अपने महल में सभी देवताओं को आमंत्रित किया। सब ने वहाँ पहुँच कर अपना-अपना आसन लिया। इंद्रदेव जब अपने राज सिंहासन पर बैठे तो उनका पसंदीदा तोता भी उनके पास ही उनके आसन पर बैठ गया। सभा में यमराज सबसे अंत में आए, जो मृत्यु के देवता हैं। जैसे ही यमराज ने तोते को देखा तो तोता समझ गया कि उसका अंतिम समय आ गया है। डर के कारण तोता काँपने लगा। यह देखकर इंद्रदेव बोले, “कृपया मेरे तोते की जान छोड़ दीजिए यमदेव ! आखिरकार यह मेरा सबसे प्यारा होता है। “, यमदेव ने जवाब दिया, “यह मेरे हाथ में नहीं है, यह फैसला तो किस्मत करती है। ” किस्मत ने कहा, “तोते का समय अब आ गया है। उसे यम के साथ जाना ही होगा। “

यह सुनकर यम ने तोते को एक बार और देखा और उसकी मृत्यु हो गई। यम देवता बोले, “कोई भी अपनी मृत्यु से नहीं बच सकता, चाहे वह राजा हो या भिखारी। “

हॉर्नबिल की कहानी

एक बार एक जंगल में हॉर्नबिल पक्षी सभी पक्षियों पर राज करता था। वह बहुत ही ज़्यादा क्रूर था। कोई भी नहीं चाहता था कि वह उनका राजा बने। सारे पक्षियों ने एक सभा बुलाई कि किस प्रकार हॉर्नबिल को राजा के पद से हटाया जाए। सभा में एक सुझाव दिया जो सबको पसंद आया। उल्लू ने जाकर अगले दिन हॉर्नबिल से कहा, 46 अगर तुम राजा बने रहना चाहते हो तो उस डाल पर बैठो और उस डाल को अपनी उल्लू ने चोंच से तोड़ो।” हॉर्नबिल ने बहुत कोशिश की लेकिन वह उस डाल को नहीं तोड़ पाया। फिर उल्लू ने बुलबुल से एक दूसरे डाल पर बैठकर उसे तोड़ने के लिए कहा। बुलबुल ने बहुत आसानी से अपनी चोंच से उस डाल को तोड़ दिया। पराजित होकर हॉर्नबिल ने वह जंगल छोड़ दिया। किसी ने उसे यह नहीं बताया कि कठफोड़वे ने अपनी चोंच से पहले ही बुलबुल के डाल को कमज़ोर कर दिया था।

कबूतर का त्याग

एक जंगल में कबूतरों का एक जोड़ा रहता था। एक दिन उस जंगल में एक शिकारी आया और उसने मादा कबूतर को पकड़ लिया। शिकारी मादा कबूतर को लेकर जाने ही वाला था कि जंगल में तूफान आ गया और बहुत ज़ोरों की बारिश होने लगी। शिकारी को एक पेड़ के नीचे रुकना पड़ा। शिकारी उसी पेड़ के नीचे रुका जहाँ पर कबूतर और कबूतरी का घोंसला था। कबूतरी ने कबूतर से कहा कि वह शिकारी को दुश्मन नहीं अतिथि समझे और उसकी अच्छे से खातिरदारी करे। कबूतर ने शिकारी के लिए आग जलाई। कबूतर ने स्वयं ही आग में कूद कर शिकारी के लिए भोजन की व्यवस्था की। यह देखकर शिकारी को अपने किए पर पछतावा हुआ। उसने कबूतरी को आज़ाद कर दिया। परंतु कबूतर के बिना कबूतरी को अपना जीवन व्यर्थ लगा और वह भी आग में कूद गई। उनके त्याग की वजह से दोनों अमर हो गए और हमेशा साथ रहे।

बूढ़ा मेंढक

जंगल में एक बूढ़ा मेंढक रहता था। एक दिन उसने अपने पड़ोसियों से कहा कि वह बहुत बड़ा चिकित्सक है और हर बीमारी का इलाज कर सकता है। धीरे-धीरे यह खबर सारे जंगल में फैल गई। जब यह खबर लोमड़ी तक पहुँची तो उसने फैसला किया कि वह खुद जाकर उस चिकित्सक से मिलेगी। वह सुबह-सुबह अपने घर से निकली और चिकित्सक से मिलने चल पड़ी। पूरा दिन चलने के बाद वह उस तालाब तक पहुँची जहाँ बूढ़ा मेंढक रहता था। जब मेंढक ने दरवाज़ा खोला तो उसे देख कर लोमड़ी को कुछ अजीब लगा। लोमड़ी ने मेंढक से कहा, “मैंने सुना है कि आप बड़ी से बड़ी बीमारियों का इलाज कर सकते हैं। पर ज़रा अपने आप को देखिए, अगर आप वाकई में इतने अच्छे चिकित्सक हैं तो आप अपना इलाज क्यों नहीं करते? आप अपने इस बदसूरत चेहरे और इन गाँठों का इलाज करें। अगर आप खुद का इलाज नहीं कर सकते तो दूसरों का इलाज कैसे करेंगे?” इतना कह कर लोमड़ी वहाँ से चली गई और मेंढक बहुत शर्मिंदा हुआ

बंदर और मधुमक्खी की कहानी

एक बंदर को शहद बहुत पसंद था। एक दिन उसने एक पेड़ के ऊपर से शहद टपकते देखा। शहद को देखकर उसके मुँह में पानी आ गया। उसने पेड़ के ऊपर बने मधुमक्खी के छत्ते को देखा और कहा, “काश कि यह सारा शहद मुझे मिल पाता। मुझे इस पेड़ पर चढ़कर उस मधुमक्खी के छत्ते से सारा शहद ले लेना चाहिए।” ऐसा सोच कर वह पेड़ पर चढ़ने लगा, तभी उसे याद आया कि कुछ समय पहले उसने ऐसा किया था और मधुमक्खियों ने उस पर हमला कर दिया था। यह घटना याद आते ही वह रुक गया। तभी उसके पास एक मधुमक्खी उड़ती हुई आई और उससे कहा, “क्या हुआ? तुम पेड़ पर चढ़े नहीं।” बंदर ने उसे बताया कि उसके साथ क्या हुआ था। फिर उसने मधुमक्खी से पूछा, “ऐसा क्यों है कि तुम्हारा शहद इतना मीठा होता है, लेकिन तुम्हारा डंक इतना खतरनाक?” तब मधुमक्खी ने जवाब दिया, “शहद के लिए हम बहुत मेहनत करते हैं, इसीलिए वह इतना मीठा होता है। लेकिन जो हमसे शहद चुराने की कोशिश करता है उसे हम अपने ज़हरीले डंक से मज़ा चखाते हैं।” उसकी बात सुनकर बंदर वहाँ से चलता बना।

लड़की और मुर्गी की कहानी

एक किसान और उसकी पत्नी की एक बेटी थी। उनकी बेटी को पालतू जानवरों के साथ खेलना बहुत अच्छा लगता था। एक बार उनकी पालतू मुर्गी ने अंडे दिए, जिसमें से चूज़े निकले। वह छोटी लड़की मुर्गी के बच्चों के साथ खेलने के लिए खेतों में गई। जब वह बच्चों के साथ खेलने के लिए उन्हें उठाने की कोशिश करने लगी तो मुर्गी ने अपनी चोंच से उसके हाथ पर हमला किया। लड़की के हाथ से खून निकलने लगा और वह रोते-रोते अपने घर आई। जब उसकी माँ ने उसे रोते देखा तो उससे कहा, “बुरा मत मानो बेटी ! वह मुर्गी एक माँ भी है। जिस तरह मैं तुम्हारा ख्याल रखती हूँ, वह भी अपने चूजों का ख्याल रखती है। जब तुम उनके पास गई तो उसे लगा कि तुम उसके चूज़ों को नुकसान पहुँचा रही हो, इसीलिए उसने डर के मारे तुम्हें चोट पहुँचाई । ” छोटी बच्ची को माँ की बात समझ आ गई और उसने जानवरों के साथ और अच्छा व्यवहार करना शुरू कर दिया।

हाथी और चूहा

हाथियों का एक झुंड तालाब के पास रहता था। जब भी वह तालाब में पानी पीने जाते तो वहाँ पर कुछ चूहों को अपने पैरों के नीचे कुचल कर मार देते थे। इस बात से चूहे बहुत ज़्यादा परेशान थे। चूहों के राजा ने हाथियों के राजा को अपनी समस्या बताई और कहा, अगर आप हमारी जान नहीं लेंगे तो हम भी मुसीबत के 44 वक्त आपके काम आ सकते हैं। ” हाथियों का राजा यह बात सुनकर हँसने लगा और कहा, “तुम छोटे जीव हमारी क्या सहायता करोगे? पर फिर भी आज से हम ध्यान रखेंगे कि तुम हमारे पैरों के नीचे न कुचले जाओ।” उसके बाद हाथी दूसरे रास्ते से तालाब की तरफ जाने लगे। एक बार एक शिकारी आया, जिसने हाथियों को पकड़ने के लिए जाल बिछाया। कुछ हाथी बच गए और कुछ उसके जाल में फँस गए। हाथियों के राजा को चूहों की बात याद आई। उसने चूहों से मदद माँगी।

चूहों का राजा अपनी पूरी सेना के साथ वहाँ आया और उन सभी चूहों ने जाल काट दिया। हाथी आज़ाद हो गए। हाथियों के राजा ने चूहों के राजा का धन्यवाद दिया।

ब्राह्मण और चार व्यापारी

एक दिन एक चालाक ब्राह्मण चार व्यापारियों से मिला। व्यापारी कीमती रत्न ले जा रहे थे। ब्राह्मण सारे रत्नों को चुराना चाहता था, इसलिए उसने व्यापारियों से मित्रता कर ली। व्यापारियों ने रत्नों को सुरक्षित रखने के लिए उन्हें निगल लिया। ब्राह्मण निराश हो गया पर फिर भी उनके साथ दूसरे शहर के लिए निकल पड़ा। रास्ते में कुछ कौवों ने व्यापारियों को देखा और लुटेरों को खबर कर दी। लुटेरों ने व्यापारियों और ब्राह्मण को पकड़ लिया। व्यापारियों ने लुटेरों से कहा, “हमारे पास पैसे नहीं हैं।” लेकिन लुटेरों ने उनकी बात नहीं मानी। कौवे कभी गलती नहीं करते थे। उन्होंने व्यापारियों की तलाशी ली, परन्तु उन्हें कुछ न मिला। लुटेरों ने व्यापारियों के पेट काटने का फैसला किया। ब्राह्मण समझ गया कि उसकी मृत्यु निश्चित है पर उसने दूसरों को बचाने का फैसला किया। इसलिए उसने लुटेरों से कहा कि पहले उसे मार डाले। लुटेरों ने ब्राह्मण को मार डाला, लेकिन उसके पेट में कोई रत्न नहीं मिला। उन्होंने व्यापारियों को जाने दिया। व्यापारी मन ही मन ब्राह्मण को धन्यवाद देते हुए वहाँ से भाग गए।

शेर और बढई की कहानी

एक बढ़ई जंगल के पास रहता था। एक दिन जब वह जंगल में लकड़ी काटने जा रहा था तो उसे वहाँ एक शेर दिखा। पहले तो वह शेर को देखकर डर गया, फिर् उसने हिम्मत करके शेर से बात की और उसे अपने घर खाने पर बुलाया। शेर को उसके घर का खाना बहुत पसंद आया। वे दोनों दोस्त बन गए। बढ़ई ने शेर से कहा, “तुम जब चाहो मुझसे मिलने आ सकते हो पर शर्त है की तुम्हें अकेले आना पड़ेगा।” शेर अब हर दिन बढ़ई के पास जाता और उसके घर खाना खाता। परिणाम यह हुआ कि शेर ने शिकार करना छोड़ दिया। इस बात से परेशान शेर के दोस्त सियार और कौआ भी उसके साथ बढ़ई के घर आ गए। उनको देखते ही बढ़ई और उसकी पत्नी पेड़ पर चढ़ गए। शेर ने उससे ऐसा करने का कारण पूछा तो बढ़ई बोला, “मुझे तुम पर भरोसा है तुम्हारे दोस्तों पर नहीं है। उन्हें जाना होगा।”

बाघ, बंदर, साँप और सुनार

एक यात्री जंगल से गुज़र रहा था। एक कुँए में एक बाघ, एक बंदर, एक साँप और एक आदमी को फँसा देखकर वह हैरान रह गया । ” कृपया हमें बचाओ”, सभी ने कहा। यात्री ने जानवरों को बाहर निकाला। कुँए में फँसे आदमी ने अनुरोध किया, ” कृपया मुझे भी बचाओ।” पर तीनों जानवरों ने विरोध किया, “नहीं, उसकी बात 66 मत सुनो। वह एक स्वार्थी व्यक्ति है। ” यात्री दयालु था, इसलिए उसने उस व्यक्ति को कुँए से बाहर निकाला। वह आदमी सुनार था। सुनार अपना पता यात्री को देकर चला गया। फिर बंदर ने यात्री को फल दिए। बाघ ने उसे कई गहने दिए। यात्री सारे गहनों को सुनार के पास ले गया। सुनार उन गहनों को पहचानता था। गहने राज्य के राजकुमार के थे। वह गहनों को राजा के पास ले गया और यात्री पर चोरी का आरोप लगाकर उसे गिरफ्तार करवा दिया। लेकिन साँप ने यात्री की मदद की। उसने रानी को डस लिया और उसे बचाने के लिए यात्री को एक औषधि दी। यात्री ने रानी को ठीक कर दिया। राजा यात्री से अति प्रसन्न हुआ। यात्री ने राजा को सारी कहानी बता दी। राजा ने यात्री को मुक्त कर दिया। फिर उसने सुनार को अपने मददगार के साथ छल करने के लिए दंडित किया।

समुद्र और टिटिभ पक्षी की कहानी

समुद्र के किनारे एक टिटिभ पक्षी का जोड़ा रहता था। एक दिन मादा पक्षी ने नर पक्षी से कहा, “मै अंडे देने के लिए तैयार हूँ। हमें किसी सुरक्षित स्थान की तलाश करनी चाहिए।” नर पक्षी ने उसे बताया कि समुद्र का किनारा सुरक्षित है। उसने आश्वासन दिया कि समुद्र उन्हें नुकसान नहीं पहुँचायेगा। समुद्र उनकी बातचीत सुन रहा था और उन्हें उनके अहंकार के लिए सबक सिखाना चाहता था। मादा पक्षी ने समुद्र के किनारे अंडे दिए। एक दिन जब पक्षी समुद्र से दूर थे, तो समुद्र उनके अंडों को बहा ले गया। जब पक्षी वापस आए तो मादा पक्षी फूट-फूट कर रोई । वे गरुड़ देव के पास गए जो उन्हें भगवान विष्णु के पास ले गए। भगवान विष्णु ने समुद्र को चेतावनी दी, “ अंडे लौटा दो, नहीं तो हम तुम्हें सुखा देंगे।” समुद्र डर गया और उसने पक्षियों को अंडे लौटा दिये। उस दिन के बाद पक्षी समुद्र तट पर खुशी-खुशी रहने लगे।

भेड़िया

एक बार एक भेड़िए को तरकीब सूझी। वह हर रोज़ भेड़ की खाल ओड़ कर दूसरी भेड़ों के साथ खेत में चरने जाता। हर शाम वह उनके साथ वापस आ जाता। वह बाकी भेड़ों से उचित दूरी भी बना कर रखता था, ताकि वे उसे पहचान ना पाएँ। एक दिन गड़रिया को माँस चाहिए था। उसने भेड़िए को भेड़ समझ कर पकड़ लिया और फिर उसे मार दिया।

बत्तख और बहेलिया

एक पेड़ पर कई बत्तख रहते थे। एक दिन कई लताएँ पेड़ पर चढ़ने लगीं। एक बूढ़े बत्तख ने दूसरे पक्षियों को चेतावनी दी, “चलो इन लताओं को काट दें वर्ना कोई बहेलिया इन लताओं के सहारे पेड़ पर चढ़ जाएगा और हम सबको पकड़ लेगा।” लेकिन किसी पक्षी ने उसकी नहीं सुनी। लताएँ शाखाओं तक पहुँच गईं। एक दिन जब पक्षी दूर थे, एक शिकारी लताओं के सहारा लेकर पेड़ पर चढ़ गया और उसने पक्षियों के लिए जाल बिछाया। शाम को सभी पक्षी जाल में फँस गए। उन्होंने बूढ़े बत्तख से उनकी मदद करने की याचना की। बुद्धिमान बत्तख ने उन्हें एक युक्ति दी। वे सभी चुपचाप लेटे रहे और मृत होने का नाटक किया। जब शिकारी आया तो उसने मान लिया कि पक्षी मर चुके हैं। उसने हर पक्षी को आज़ाद कर दिया और उन्हें ज़मीन पर गिरा दिया। जब सभी पंछी आज़ाद हुए, तो वे अचानक उठे और वहाँ से उड़ गए। हैरान शिकारी उन्हें देखता ही रह गया।

टोकरी भर बादाम की कहानी

एक बार एक गिलहरी की नौकरी जंगल के राजा शेर के घर लगी। वह हर काम को बोलते ही कर दिया करती थी। शेर उसके काम से बहुत ज़्यादा खुश था। शेर ने उसे एक टोकरी भर के बादाम देने का वादा किया। जब गिलहरी थोड़ी बड़ी हुई तो दूसरी गिलहरियों की आज़ादी से उसे ईर्ष्या होने लगी। परंतु अब वह आजीवन शेर के साथ काम करने के लिए मज़बूर थी। इस तरह कई साल बीते और जब गिलहरी बूढ़ी हो गई तो शेर ने बहुत बड़ी दावत रखी। शेर ने वादे के अनुसार गिलहरी को एक टोकरी भर के बादाम दिए। परंतु बादाम देखकर गिलहरी उदास हो गई क्योंकि अब उन बादामों को खाने के लिए उसके पास दाँत नहीं बचे थे।

साधू और बकरी की कहानी

रविवार का दिन था। बाजार में भीड़-भाड़ के बीच अपनी जरूरत की चीजें खरीदने में लोग काफी व्यस्त थे। अचानक बढ़ी हुई दाढ़ी-मूछों वाला एक आदमी चमड़े के कपड़े पहने हुए वहाँ आया। देखने में वह एक साधू की तरह लग रहा था, वह सभी से कह रहा था कि लोग उसे प्रणाम और सम्मान करें। थोड़ी देर के बाद, कहीं से एक बकरी आई। वह अपने सिर को नीचे करते हुए साधू के सामने खड़ी हो गई। साधू को खुशी महसूस हुई। उसने समझा कि जानवर भी अपना सिर झुकाकर उसे सम्मान दे रहे हैं। लेकिन साधू इस बात से अनजान था कि बकरी उस पर हमला करने के लिए तैयार हो रही है, क्योंकि साधू चमड़े का लिबास पहने हुए था, जिसे बकरी ने स्पष्ट रूप से पसंद नहीं किया था। उसके आस-पास खड़े लोग इस दृश्य को देख रहे थे। लोगों ने उसे चेतावनी देने की कोशिश की, लेकिन साधू कुछ समझ पाता, इससे पहले ही बकरी ने उस पर हमला कर दिया और सींग से उसकी छाती को छेद दिया। दर्द में कराहने वाले उस साधू की मौके पर ही मौत हो गई।
इस कहानी से हमे यह शिक्षा मिलती है की हमे सम्मान अपने कर्मों से मिलता है न की हमारे दिखावे से ।

श्रवण कुमार की कहानी

अपने माता-पिता के परम भक्त और आज्ञाकारी पुत्र श्रवण कुमार के नाम को भला कौन नहीं जानता। वे बहुत ही महान, सुकुमार और आज्ञाकारी थे। एक दिन, श्रवण के माता-पिता बारिश में भीग गए। उन्होंने एक पेड़ के नीचे शरण ली। अनजाने में माँ का पैर साँप के ऊपर पड़ गया। साँप ने गुस्से में उनके माता-पिता पर अपना ज़हर उगल दिया जिससे वे दोनों अंधे हो गये। उस दिन के बाद से, श्रवण ने अपने अंधे माता-पिता की बहुत ईमानदारी से देख-भाल करनी शुरू कर दी। एक बार उनके माता-पिता के मन में तीर्थ यात्रा पर जाने की इच्छा हुई। आज्ञाकारी पुत्र, श्रवण उन्हें एक विशाल तराजू में बैठाकर तीर्थ यात्रा पर ले गया। तीर्थयात्रा के लिए जाते समय उनके माता-पिता को प्यास लगी और वे पानी पीना चाहते थे। श्रवण अपने माता-पिता को सुरक्षित स्थान पर बैठाकर पास के जंगल में नदी से पानी लाने चले गए। राजा दशरथ जंगल में शिकार के लिए निकले थे। जब उन्हें नदी की ओर से कुछ आवाज सुनाई दी, तो उन्होंने कोई जानवर समझकर उस पर तीर चला दिया। “हाय भगवान” कहकर दर्द में श्रवण रो पड़े और मर गए। नदी देव इस पूरी घटना को देख रहे थे। उन्होंने राजा को श्रवण के माता- पिता के पास जाने के लिए राजी किया। राजा ने अपनी गलती स्वीकार की कि उसने क्या किया है? इस बीच, नदी देव ने अपने जादू से श्रवण को जीवन प्रदान कर दिया तथा श्रवण के माता-पिता का अंधापन भी दूर कर दिया।

भगवान का संकेत

बहुत समय पहले की बात है। एक शूरवीर और प्रतापी राजा था। उसने कई राष्ट्रों पर विजय प्राप्त करके विशाल धन संग्रह कर लिया था। जब राजा अस्सी साल का था तब भी सोचता था कि वह कभी बूढ़ा नहीं होगा क्योंकि वह शारीरिक रूप से स्वस्थ था और अस्सी की उम्र में भी उसके बाल काले थे।

एक दिन जब वह अपने को आईने में देख रहा था, तो अपने सिर पर भूरे बालों को देखा। उसने महसूस किया कि वह अब बूढ़ा हो रहा है। उन्हें अपने पूर्व कर्मों और सांसारिक जीवन में गुजारे हुए वर्षों का बड़ा पछतावा था। राजा ने इसे ईश्वर की इच्छा के संकेत के रूप में लिया, कि अब उन्हें अपने सांसारिक सुखों का त्याग करना चाहिए और ईश्वर में ध्यान लगाना चाहिए। उसने अपने बड़े बेटे का राजतिलक कर दिया। जब सभी दरबारियों को इस बात का पता चला, तो उनके मंत्री बहुत दु:खी हुए और बोले, ” हे प्यारे राजा, आप हमें क्यों छोड़ना चाहते हैं?” राजा ने मुस्कुराते हुए अपने भूरे बालों को पकड़कर दिखाते हुए कहा, “मेरे प्यारे मंत्री, भगवान ने इस भूरे बालों के माध्यम से अपना संदेश भेजा है कि तुम्हारी मृत्यु निकट है। जीवन भर मैंने सिर्फ धन और शक्ति के बारे में सोचा, लेकिन अब मैं ध्यान करके अपनी अज्ञानता के मोह से छुटकारा पाना चाहता हूँ।”

प्रमुख शिष्य की कहानी

एक महात्मा जी के कई बुद्धिमान शिष्य थे। वे सब आपस में या महात्मा के साथ विचार-विमर्श किया करते थे। एक दिन, महात्मा जी और उनके प्रमुख शिष्य कुछ धार्मिक मुद्दों पर चर्चा कर रहे थे। तभी उस राज्य के राजा ऋषि के प्रति अपनी श्रद्धा अर्पित करने के लिए वहाँ आ पहुँचे। राजा मिठाई और शाही व्यंजनों के साथ महात्मा जी के लिए उपहार लाए थे। मुख्य शिष्य चर्चा में इतना लीन था कि वह राजा के आगमन की सूचना नहीं दे सका। इतना ही नहीं उसने तो उनका अभिवादन भी नहीं किया। स्वागत करने के बजाय, राजा ने मुख्य शिष्य को यह कहते हुए सुना, “क्या खुशी है ! बहुत खुशी हुई ! ” राजा ने यह समझा कि वह उसके द्वारा लाए गए उपहारों को देखकर शायद अपनी खुशी व्यक्त कर रहा है। अतः उन्होंने शिष्य के प्रति अवमानना महसूस की और स्वयं की उपस्थिति को कम कर दिया। राजा ने मुख्य शिष्य को लालची होने के लिए खुले तौर पर फटकार भी लगाई। मुख्य शिष्य के लिए ‘अवमानना’ शब्द सुनकर वहाँ मौजूद हर कोई हैरान रह गया। इतना होने के बाद महात्मा जी ने राजा की ओर देखा और शिष्य की असली पहचान बताई | महात्मा जी ने कहा, “हे राजन्, जिस व्यक्ति के लिए आप अवमानना कर रहे हैं वह एक बड़े साम्राज्य का पूर्व सम्राट था। उन्होंने वैरागी के जीवन के लिए सब कुछ त्याग दिया था। आपने जो “आनंद ” सुना था, वह वास्तव में एक महात्मा के रूप में उनके जीवन का आनंद था, जिसके बारे में वह बात कर रहे थे। राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने अपने व्यवहार के लिए माफी माँगी।

सुअर और दो बछड़े

एक बड़े घर में पालतू जानवर के रूप में एक सुअर और दो बछड़े थे। घर का मालिक सुअर को दोनों बछड़ों की अपेक्षा अधिक महत्व देता था। सुअर उस घर में एक राजकुमार की तरह रहता था। उसे सभी बेहतरीन अनाज और सब्जियों से बना स्वादिष्ट भोजन देते थे। इसके विपरीत दोनों बछड़े दिन भर बहुत मेहनत करते थे, परंतु उन्हें खाने के नाम पर बचे हुए भोजन और सूखी घास ही मिलती थी। छोटे बछड़े को सुअर से बहुत ईर्ष्या थी। वह कहता था कि- “जब हम पूरी मेहनत करते हैं तो हमें खाने के लिए अच्छा खाना क्यों नहीं दिया जाता है।” छोटे ने बड़े से शिकायत की। “अरे नहीं,” बाद में हाँफता हुआ बोला, “कभी किसी से ईर्ष्या न करें क्योंकि आप नहीं जानते कि उस प्राणी को क्या कीमत चुकानी पड़ सकती है।” मालिक अपने बेटे का जन्मदिन मनाने के लिए बहुत जल्द एक भव्य दावत का आयोजन करने जा रहा है और उसी सुअर को मांस के लिए मार दिया जाएगा। इसी उद्देश्य से उसे इतनी अच्छी तरह से खिलाया-पिलाया जा रहा है।” जैसा कि बड़े बछड़े ने कहा, कुछ दिनों के भीतर जन्मदिन मनाया गया और सुअर को मारा गया, पकाया गया और मेहमानों को विभिन्न प्रकार के व्यंजन परोसे गए। फिर बड़े बछड़े ने छोटे बछड़े से घुमा-फिराकर कहा, “हमारा वाला भोजन स्वादिष्ट भोजन से सौ गुना बेहतर है? यह हमें बेहतर स्वास्थ्य और लंबा जीवन देता है।”

शेर और बाघ की कहानी

एक घने जंगल में एक शेर और एक बाघ रहते थे। उन दोनों में बहुत गहरी दोस्ती थी। वे साथ में खाते थे, साथ में खेलते थे और साथ में ही घूमते थे। उनकी दोस्ती बचपन के बाद हुई थी। एक दिन, उन दोनों के बीच बहस छिड़ गई। वे इस बात पर बहस करने लगे कि, क्या शीत ऋतु की शुरुआत तब होती है जब अमावस्या पूर्णिमा हो जाती है या जब पूर्णिमा अमावस्या हो जाती है। यह तुच्छ तर्क अपने आपको सही साबित करने की कोशिश में झगड़े में बदल गया। एक साँप ने उन्हें लड़ते हुए सुना। वह उनके पास आया और उन्हें जंगल के बाहरी इलाके में रहने वाले हर्मिट (तपस्वी) के पास जाने को कहा। “उनके उपदेश से मन को बहुत शांति मिलती है, वे निश्चित रूप से आप दोनों की समस्या को हल करने में मदद करेंगे।” साँप के कहने पर दोनों दोस्त बुद्धिमान हर्मिट (तपस्वी) के पास गए और उनसे पूछा कि कौन सही है? हर्मिट (तपस्वी) ने उन दोनों की बात सुनी और कहा, “ठंडी हवाएँ शुरू होती हैं, जब ठंडी हवाएँ चलती हैं।” ऐसा चंद्रमा के किसी भी चरण के दौरान हो सकता है। तो, एक तरह से, आप दोनों सही हैं। आप दोनों एक-दूसरे के सबसे अच्छे दोस्त हो। हमेशा एक साथ रहें। इन तुच्छ मामलों पर एक-दूसरे के साथ कभी भी झगड़ा न करें, क्योंकि एकता खुशी लाती है।” “हाँ, श्रद्धेय, आप सही हैं। हम कितने मूर्ख थे। धन्यवाद, हमारी मदद करने और हमें ज्ञान देने के लिए,” दोनों ने कहा। शेर ने कहा “मैं अब कभी-भी आपके साथ झगड़ा नहीं करूँगा। कृपया मुझे माफ कर दो दोस्त।” बाघ ने कहा। “मुझे भी खेद है प्रिय मित्र,” उसके बाद वे दोनों एक-दूसरे के साथ कभी नहीं लड़े और खुशी-खुशी रहने लगे।

कपटी ब्राह्मण की कहानी

एक बार कोई चोर जेल से भागकर, किसी राजा के मंत्री के घर के पास ही रहने लगा और खुद को ब्राह्मण बताया। वह राजा के एक मंत्री के घर के पास ही रहने लगा। मंत्री ने ब्राह्मण को संदेह भरी नज़रों से देखा। क्योंकि उसने अपने राज्य में पहले उसे कभी नहीं देखा था। कुछ दिनों के बाद जेल से चोर के भागने की खबर राजा तक पहुँची। राजा ने अपने सभी मंत्रियों को बुलाया और उन्हें चोर को पकड़ने के लिए कहा। मंत्री ने अपने घर जाते समय उस चोर के बारे में सोचा, जो राजा ने उसे बताया था। उसने सोचा कि यह कोई और है, जो हाल ही में राज्य में प्रवेश किया था। अब अचानक उसका ध्यान उस ब्राह्मण की ओर गया जो उसके घर के पास रह रहा था। वह ब्राह्मण को रंगे हाथों पकड़ना चाहता था इसलिए उसने एक योजना बनाई।

एक दिन वह उस ब्राह्मण के पास गया और कहा, “हे कुलीन ब्राह्मण! मैं अपने परिवार के साथ शहर से बाहर जा रहा हूँ, क्या आप गहनों के इस संदूक को अपने पास रख सकते हैं और जब तक मैं वापस नहीं आ जाता, चोरों से बचाते रहेंगे?” ब्राह्मण को उन गहनों को लूटने का एक अच्छा अवसर मिल गया और वह संदूक लेने को तैयार हो गया। अगले दिन, मंत्री ने अपने परिवार के साथ राज्य छोड़ने का नाटक किया। ब्राह्मण ने आस-पास किसी को न देखकर संदूक खोल दिया और सारे गहने एक कपड़े में समेट लिए। उसने गहनों को अपनी झोपड़ी के बाहर एक पेड़ के नीचे छिपा दिया। पेड़ के पीछे छिपे मंत्री ने उसे गहने छिपाते देख लिया। फिर मंत्री ने अन्य सैनिकों के साथ ब्राह्मण को रंगे हाथो पकड़कर उसे राजा को सौंप दिया।

राजा और भगवान की कहानी

बहुत समय पहले की बात है। कलिंग में एक क्रूर शासक हुआ करता था। उसके शासनकाल में रहने वाले लोग बहुत दुःखी थे। प्रजा का जीवन उस समय बहुत दयनीय था। लोगों को यातनाएँ और मौत की सजा दी गई, पीटा गया, खौलते पानी में डाल दिया गया। उनके पास खाने और पहनने के लिए पर्याप्त भोजन भी नहीं था। कलिंग के लोगों की बिगड़ती हालत देखकर देवताओं के राजा ने कलिंग के शासक को सबक सिखाने का फैसला किया। भगवान ने खुद को वनपाल और मंत्री को एक भयंकर काले कुत्ते के रूप में बदल दिया। वे दोनों कलिंग के राज्य में उतरे। “क्रोध ” भयंकर कुत्ते की गर्जना है। वह राज्य के पास गया और उसकी आवाज ने सभी को नरक से स्वर्ग तक हिला दिया। राज्य में रहने वाले हर व्यक्ति ने उसे दहाड़ते हुए सुना। भयभीत सभी अपने-अपने घरों में बंद हो गए। वह काला कुत्ता सीधे राजा के दरबार में गया और उस पर झपटने लगा। दरबार मैं उपस्थित सभी लोग भयभीत हो गए और राजा को कुत्ते के साथ मरणासन्न हालत में छोड़कर खुद को छुपाने लगे। देवताओं के राजा आए, जो वनपाल के रूप में प्रसिद्ध थे। अब क्रुर शासक बहुत भयभीत था और मदद के लिए चिल्ला रहा था। वनपाल को देखकर राजा ने वनपाल से स्वयं को बचाने के लिए कहा। वनपाल ने कहा, “यह कुत्ता भूखा है और पाप करने वाले सभी लोगों को खा जाएगा।” राजा घबरा गया और वनपाल को उस कुत्ते को दूर ले जाने को कहा। वनपाल ने कहा, “हे राजा! आपने इतने पाप किए हैं कि कोई भी इस भूखे कुत्ते से आपको नहीं बचा सकता। आपने अपने निर्दोष व्यक्तियों पर कई अत्याचार किए हैं। आपको अपने रास्ते सुधारने होंगे अन्यथा आप मौत के घाट उतर जाएँगे।” भयभीत राजा को अपनी गलतियों का एहसास हुआ और वह माफी के लिए गिड़गिड़ाने लगा। अंत में, वनपाल ने अपनी पहचान बताई। अपने सामने भगवान को देखकर राजा ने जो कुछ भी किया उसके लिए माफी माँगी और खुद को बदलने का वादा किया। भगवान ने उसे माफ कर दिया और अपने इन्द्रलोक में लौट आए। तत्पश्चात् सजा ने गलत रास्ता छोड़ दिया और प्रजा के साथ सच्चाई और सदाचार का व्यवहार करने लगा।

ब्राउनी और गोल्डी की कहानी

एक हिरन था, जिसका नाम ब्राउनी था। वह नए-नए स्थानों का पता लगाने के लिए पहाड़ों और जंगलों में घूमता था । एक बार जब वह किसी सुंदर बगीचे से गुजर रहा था, तब उसकी नजर गोल्डी नामक एक बारहसिंगा पर पड़ी। उसके नरम सुनहरे फर, शराबी सफेद पूंछ और चौड़ी उज्ज्वल आँखें बहुत सुंदर थीं। जिस क्षण ब्राउनी ने उसे देखा उससे प्यार हो गया। उसने गोल्डी का पीछा करना भी शुरू कर दिया, वह जहाँ भी जाती, उसकी सुंदरता के बारे में प्रशंसा करती थी। ब्राउनी के दोस्त उसे गुप्त रूप से देखते थे। एक रात ब्राउनी ने अपने दोस्तों द्वारा होने वाले खतरों से सावधान रहने के बावजूद गाँव तक गोल्डी का पीछा किया, लेकिन प्यार होने के कारण ब्राउनी ने उनकी चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया। कुछ कदम चलने के बाद, गोल्डी को होश आया कि कोई व्यक्ति आगे रखी विशाल चट्टान के पीछे छिपा है। उसे डर लगने लगा कि पास में कोई जाल हो सकता है। उसने पहले ब्राउनी को जाने दिया। काश! ब्राउनी शिकारी द्वारा बिछाए गए जाल में गिर जाए और उसके द्वारा मारा जाए। जब ब्राउनी के दोस्तों को पता चला कि क्या हुआ था। वे उस जगह की ओर बढ़े और गोल्डी पर उनकी मौत का आरोप लगाया, लेकिन उनमें से सबसे बुद्धिमान ने टिप्पणी की, “यह उसकी बेइज्जती थी जिसने उसे मार डाला। मोह एक झूठी खुशी की भावना तो देता है लेकिन अंत उसका विनाश की ओर ही ले जाता है। “

गधे को नमस्कार

किसी गाँव में एक मूर्तिकार रहता था। उसकी बनाई मूर्तियां बहुत सुंदर होती थीं। एक बार उसने देवी की बहुत ही सुंदर मूर्ति बनाई। वह मूर्ति उसे दूसरे गाँव पहुँचानी थी, इसलिए उसने अपने मित्र धोबी से उसका गधा मांगा और मूर्ति उस पर लादकर चल पड़ा। मूर्ति इतनी सुंदर और सजीव थी कि जो भी उसे देखता, श्रद्धा से नमस्कार जरूर करता। रास्ते भर यही सब होता रहा। यह देखकर मूर्ख गधे ने सोचा कि सब उसे ही नमस्कार कर रहे हैं। जैसे ही यह बात उसने सोची वह रास्ते में घमण्ड से खड़ा होकर जोर-जोर से रेंकने लगा। मूर्तिकार ने गधे को पुचकार कर समझाया कि यह लोग तुम्हें नही मूर्ति को नमस्कार कर रहे हैं।

मगर गधा तो गधा था। अगर सीधी बात बिना पीटे उसे समझ आ जाती तो उसे गधा कैन कहता। वह रेंकता ही रहा। अंत में मूर्तिकार ने उसकी डंडे से जमकर पिटाई की। मार खाने के बाद गधे का सारा घमंड उतर गया। और उसे पता चल गया कि मैं गधा हूँ। उसके होश ठिकाने आने पर वह फिर से रास्ते पर चल पड़ा।

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    Deepshikha Randhawa is a skilled Storyteller, editor, and educator. With a passion for storytelling, she possess a craft of captivating tales that educate and entertain. As trained basic education teachers, her narratives resonate deeply. Meticulous editing ensures a polished reading experience. Leveraging teaching expertise, she simplify complex concepts and engage learners effectively. This fusion of education and creativity sets her apart. Always seeking fresh opportunities. Collaborate with this masterful storyteller, editor, and educator to add a touch of magic to your project. Let her words leave a lasting impression, inspiring and captivating your audience.

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Deepshikha choudhary

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