दो दोस्त थे एक का नाम था राजा और दूसरे का रवि था ।
राजा पढ़ने मे बड़ा होशियार था वही रवि पढ़ने मे औसत था , दोनों दोस्त साथ में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए बाहर गए ।
कुछ समय बाद दोनों दोस्तों ने अपना वास्तुकार (architect) का काम शुरू किया ।
राजा जो पढ़ने मे अच्छा था, बड़ी अच्छी- अच्छी बिल्डिंग्स बनाने लगता है। राजा के द्वारा बनाई गई बिल्डिंग्स बड़ी ही सुंदर और सभी छोटी-छोटी चीजों का अच्छे से ख्याल रख कर बनाई हुई होती थी, वही दूसरी तरफ रवि की बिल्डिंग्स देखने में कुछ खास नहीं होती थी और रवि की बिल्डिंग्स में छोटी-छोटी बारीक चीजों का भी ख्याल रखा नहीं जाता था ।
दोनों की वास्तुकला में जमीन आसमान का फ़र्क था पर फिर भी रवि की बिल्डिंग्स की हमेशा ही सरहाना की जाती थी और राजा की वास्तुकला की कही भी कोई चर्चा नहीं होती थी ।
ऐसे ही समय बीतता गया रवि बड़ा मशहूर वास्तुकार बन गया, वही दूसरी और राजा जो सुंदर और मजबूत बिल्डिंग बनाता था मशहूर नहीं हो पाया , पर राजा के काम के बहुत सारे कद्रदान बन गए थे जो जानते थे कि राजा का काम रवि के काम की तुलना में ज्यादा अच्छा है।
रवि जो भी बिल्डिंग बनाता उसे हर अखबार और समाचारों में बड़े अच्छे तरह से दिखाया जाता और उसकी प्रशांश की जाती, रवि का काम लोगों को काम पसंद आता पर समाचार मे प्रशांशा करने वाले रवि की ही तारीफ करते न थकते, वही राजा के काम को लोग पसंद करते थे।
समय के साथ अब राजा मशहूर होने लगता है वही रवि की लोकप्रियता कम होने लगती है, रवि के द्वारा बनाई गई बिल्डिंग्स को लोग खरीदना बंद कर देते हैं। और एक नए वास्तुकार जिसका नाम दहूजा था उसकी बिल्डिंग्स की तारीफ करने लगते है। हालांकि दहूजा का काम भी किसी भी प्रकार से रवि से अच्छा नहीं था।
यह देख कर रवि परेशान होकर अपने एक पुराने प्रशंसक के पास जाकर अपनी गलती के बारे में पूछता है कि आखिर वह अब क्या गलती कर रहा है जो उसके काम की सरहना नहीं होती ?
तब रवि के बूढ़े प्रशंसक ने रवि से कहा “तुम कभी भी अच्छे वास्तुकार नहीं थे, तुमसे अच्छा वास्तुकार तो हमेशा से ही राजा था और राजा आज इस दहूजा से भी अच्छा है जिसकी हम तारीफ कर रहे हैं”
यह सुनकर रवि चौंक पड़ता है! और चौंककर बूढ़े से कहता है, “ऐसा कैसे?”
तब बूढ़ा उससे कहता है, “हम लोग हमेशा से ‘राजा’ की काबिलियत को जानते थे पर हमने अपनी बातों से तुम्हें बड़ा बनाया ताकि तुम हमेशा हमारे कृतज्ञ रहो और हमारे अहसानों में दबे रहो, अगर हम राजा की तारीफ कर देते तो राजा को उससे कोई फरक न पड़ता और वो कभी भी हमारे कहे अनुसार न चलता क्यूंकि वह अपनी कीमत जनता है”
बूढ़े की बात सुनकर रवि की आँखों मे अश्रु आ जाते हैं।
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