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घड़ियों की हड़ताल (Chapter-12)

By KahaniVala

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-( रमेश थानवी ) Ramesh Thanvi

Hindi Sahitya me Khaniyon ka Bada mehhatav hai , hindi kahaniyaan bachhon ke mansik vikas ke liye ek unnat or jacha parkha madhyam hai,Yahan Par hmare dwara देश में प्रौढ़ शिक्षा का अलख जगाने वालों में अग्रणी, साहित्य और दर्शन के अध्येता, एक दौर के प्रतिष्ठित साप्ताहिक ‘प्रतिपक्ष’ की टीम के सदस्य और राज. प्रौढ़ शिक्षण समिति के अध्यक्ष रहे “श्री रमेश थानवी” ki ek kahani “घड़ियों की हड़ताल (Chapter-12)” prastut ki gayi hai jo prathmik istar ke bachhon ke liye upyukt hai . Yahan par har kahani ka likhit evam maukhik sansakran uplabdh hai , jisse har ek bacchon ko kahani padhne evam samjhne me asani ho or kahani ka anand liya ja sake.

अध्याय 12

अखबारों में छपी खबर बच्चों ने भी पढ़ी थी। छोटू, मोटू व इनकी मित्रमंडली ने भी सारे बच्चों को घड़ियों की बात पसंद थी, घड़ियों का तरीका पसंद था। बच्चों को अच्छा लगा कि घड़ियों ने उनकी वकालत की है। मास्टरों को अच्छा लगा कि घड़ियों ने उनकी भी वकालत की है। सभी गरीब लोगों को अच्छा लगा था कि घड़ियों ने दरिद्रनारायण की इतनी तगड़ी पैरवी की है। समाजवादी लोग खुश थे कि घड़ियों ने समता के राज की बात रखी है और कम्युनिस्ट खुश थे कि घड़ियों ने हर गरीब तबके के लिए रोटी कपड़ा मकान जैसी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने की पुरजोर मांग की है। सभी खुश थे।

सरकार भी नाराज नहीं थी। वह घड़ियों को मन ही मन ऐसे अहिंसक तथा शांतिपूर्ण आंदोलन के लिए धन्यवाद दे रही थी. लेकिन अभी तक सोच रही थी कि समय की यह एकता कैसे तोड़ी जाए और कैसे बीते समय को वापस लौटा कर लाया जाए!

सरकार सोच रही थी। उधर छोटू मोटू की पूरी मंडली ने तय कर लिया था कि हम घड़ियों से दोस्ती करेंगे। गहरी दोस्ती करेंगे और घड़ियों के सपनों का भारत बनाने में जुट जाएँगे। घड़ियों की बात दरअसल भारत में आम जनता की बात है। उनको विश्वास है. वे एक मित्र के नाते घड़ियों से अपनी बात मनवा लेंगे।

इसी विश्वास के साथ एक सवेरे उगते सूरज से मिलकर यह मंडली समय को लौटाने चल दी थी। उगते हुए सूरज की आभा को कौन रोकेगा? छोटू सीधा बड़े घंटाघर के टॉवर पर चढ़ गया था तथा पेंडुलम हिला बैठा था। उसने उस घड़ी को मिलाया था, चाबी भरी थी और घड़ी चल पड़ी थी। जैसे ही इस घड़ी के घंटे की आवाज़ देश में गूंजी थी. बाकी घड़ियाँ भी चल पड़ी थीं। उगते हुए सूरज का साथ दिया था समय ने और बच्चों के विश्वास का आदर किया था समय ने।

घड़ियों की हड़ताल के सभी भाग यहाँ देखें !

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