-( रमेश थानवी ) Ramesh Thanvi
Hindi Sahitya me Khaniyon ka Bada mehhatav hai , hindi kahaniyaan bachhon ke mansik vikas ke liye ek unnat or jacha parkha madhyam hai,Yahan Par hmare dwara देश में प्रौढ़ शिक्षा का अलख जगाने वालों में अग्रणी, साहित्य और दर्शन के अध्येता, एक दौर के प्रतिष्ठित साप्ताहिक ‘प्रतिपक्ष‘ की टीम के सदस्य और राज. प्रौढ़ शिक्षण समिति के अध्यक्ष रहे “श्री रमेश थानवी” ki ek kahani “घड़ियों की हड़ताल” prastut ki gayi hai jo prathmik istar ke bachhon ke liye upyukt hai . Yahan par har kahani ka likhit evam maukhik sansakran uplabdh hai , jisse har ek bacchon ko kahani padhne evam samjhne me asani ho or kahani ka anand liya ja sake.
अध्याय 9
बीकानेर के घड़ीसाज के बाद बैंगलुरु के घड़ीसाज़ की बारी थी। बेंगलुरु का घड़ीसाज़ बाकी घड़ीसाजों की तरह बूढ़ा नहीं था। जवान घड़ीसाज ने शौकिया ढंग से घड़ियाँ सुधारने का काम शुरू किया था, लेकिन उसकी लगन और उसकी समझ के कारण उसका शौक उसकी जरूरत बन गया था, उसका व्यसन बन गया था।
घड़ियाँ सुधारते – सुधारते उसे लगने लगा था कि यह काम सबसे पवित्र काम है। यह काम आम आदमी के समय से जुड़ने का काम है उसे सही समय बताते रहने का काम है। समय की कीमत उसने अच्छी तरह समझी थी। उसके मन में अपने मास्टर जी से बचपन में सुनी बात भी अभी तक बसी हुई थी। उसके मास्टर जी ने अंग्रेजी शब्द ‘वॉच’ का अर्थ बताया था तथा उसकी व्याख्या की थी।
उसके मास्टर जी ने बताया था, ‘वॉच’ का अर्थ रक्षा करना पहरेदार हमारी रक्षा करता है। इसलिए उसको ‘वॉचमैन’ कहते हैं। घड़ियाँ भी हमसे महत्त्वपूर्ण चीजों की रक्षा करने की बात कहती हैं। मास्टर जी की व्याख्या यूँ थी-
W वॉच योर वैल्थ अपने धन की रक्षा करो।
A वॉच योर एसपिरेशस अपनी इच्छाओं पर काबू रखो।
T वॉच योर टाइम अपने समय की रक्षा करो।
C वॉच योर कैरेक्टर अपने चरित्र की रक्षा करो।
H वॉच योर हैल्थ अपने स्वास्थ्य की रक्षा करो।
अपने मास्टर जी की यह व्याख्या अभी भी उसके दिमाग उतरी हुई थी। वह कई बार ‘वॉच’ की व्याख्या अपने मित्रों के दोहराता है। उसके मित्र इसलिए उसे मजाक में ‘वॉचमैन’ कहा करते थे। वह उसके बारे में कहा करते थे, वॉचमन की बात निराली वह तो सभी को ‘वॉच’ करता है जब देखो तब यही कहेगा- बाँच योर टाइम, वॉच योर केरेक्टर..’
घड़ियाँ बंद होने से पहले ही बैंगलुरु के इस ‘वॉचमैन’ को पता चल गया था कि घड़ियाँ एक दिन जरूर कभी हड़ताल करेंगी। उसने अपने घर में रखी घड़ियों को बातचीत करते सुना था। घड़ियाँ बंगलुरु में खुले घड़ियों के सरकारी कारखाने के बारे में बात कर रही थी ।
पहली घड़ी सुना है, अब तो भारत सरकार ने भी आलाड़ियाँ – बनाने का कारखाना खोला है। सरकारी कारखाने की इन उम्दा घड़ियाँ की बिक्री भी खूब हुई है।
दूसरी घड़ी-घड़ियों की बिक्री बढ़ने की बात तो अच्छी है और सरकारी कारखाना उम्दा घड़ियाँ बना लेता है, यह भी बड़ी बात है। सरकारी कारखानों का नफा तो जनता को ही मिलता है। इसलिए यह भी अच्छी बात है कि वहाँ बिक्री बढ़े, लेकिन घड़ियों का सरकारी कारखाना लगने में एक बड़ा खतरा है।
तीसरी घड़ी कैसा खतरा है दूसरी घड़ी – सबसे बड़ा खतरा है- समय के सरकारीकरण का खतरा । समय पर सत्ता के अधिकार का खतरा। अभी तो हम सब पृथ्वी की परिक्रमा के हिसाब से घूमती हैं, लेकिन फिर खतरा है, सरकारी कानून से चलने का खतरा सरकार जब घड़ियाँ बनाने लगी है, तो संभव है अपने यहाँ बनी सारी घड़ियों के पुर्जो को इस तरह बैठा दे कि वे सरकारी मर्जी के मुताबिक समय देने लग जाएँ। तब सरकारी कानून भी घड़ियों को मानने होंगे। सरकार जब जितना चाहे बजा देने का कानून भी बना सकती है। समय पर सत्ता के ऐसे अधिकार से ही तो जनतंत्र को खतरा है।
दूसरी घड़ी की यह बात सारी घड़ियों को सही लगी थी। सबको यह सब सुनकर चिंता हुई थी। बंगलुरु के घड़ीसाज़ मि. वॉचमैन इसी बात से समझ गए थे कि एक दिन घड़ियाँ जरूर आंदोलन छेड़ेंगी। हुआ भी ऐसा ही। उसी दिन से बैंगलुरु की घड़ियों को उसने उदास देखा। इसी उदासी के बीच उसने देखा कि घड़ियों की कानाफूसी की आदत बढ़ गई है। यह कानाफूसी दरअसल इसी विषय पर होती थी कि समय के सरकारीकरण का विरोध कैसे किया जाए क्या कदम उठाया जाए? कोई कदम उठाएँ इससे पहले घड़ियों ने सरकारी कारखाने का हाल जान लेना जरूरी समझा। यह काम उन्होंने उसी कारखाने के एक मजदूर की घड़ी को सौंपा था। दूसरे दिन नेशनल मशीन टूल्स के मजदूर की घड़ी ने बताया
था- “समय का सरकारी व्यापार दिनोदिन बह रहा है। अब तो सरकारी कारखाने ने तारीख व दिन सतानेवाली ऑटोमेटिक घड़ियाँ भी बना दी हैं।” मज़दूर की उस घड़ी ने आगे बताया- “सरकारी कारखाना शुरू हुआ था, सस्ती घड़ियाँ बनाने और उन्हें वाजिब दाम पर बेचने के लिए, लेकिन अब तो वही कारखाना महंगी घड़ियाँ बनाने लगा। सेठ लोगों व संपन्न लोगों की शान को ध्यान में हुए सरकारी कारखाने में सोने की घड़ियाँ भी बनानी शुरू की हैं। इसी बात से उस कारखाने की घड़ियाँ भी दुःखी हैं और वहाँ के मैकेनिक लोग भी। वे सब यह समझ नहीं पा रहे हैं कि समानत लानेवाली और असमानता मिटाने का दावा करनेवाली समाजवादी सरकार ऐसा क्यों कर रही है। सरकारी कारोबार के बढ़ने के साथ- ही इस कारखाने की घड़ियों और मैकेनिकों की हैरत बढ़ गई है।”
यह सब जानकर बैंगलुरु की घड़ियों के सामने यह साफ़ हो गया कि सरकार कभी भी घड़ियों का और समय का सरकारीकरण कर सकती है। बेंगलुरु की घड़ियों के लिए अब इसका विरोध करना भी आसान हो गया था, क्योंकि खुद सरकारी कारखाने में ही असंतोष था। वहाँ की घड़ियाँ भी विरोध की किसी कार्रवाई में शामिल होने की तैयार थीं।
बेंगलुरु के घड़ीसाज के पास यह जानकारी पहले से ही थी। जब घड़ियों की हड़ताल हुई, तो वह समझ गया कि अंततः घड़ियाँ) ने कोई कदम उठा ही लिया। बेंगलुरु का युवक घड़ीसाज पड़ियों की इस सीधी कार्रवाई से खूब खुश था। वह चाहता था कि घड़ियों इस प्रकार मन ही मन न घुटे। वह यह भी मानता था कि आज की दुनिया में अगर कोई सीधी कार्रवाई नहीं करता है, तो सुनवाई संभव नहीं। उसे घड़ियों का डर भी सही लगा था। वह भी घड़ियों की ही तरह परेशान था कि असमानता मिटानेवाली सरकार असमान चीजों का उत्पादन क्यों करती है? उनकी बिक्री क्यों करती है? वह स्वयं इन सवालों पर पिछले कई दिनों से सोचता रहा है। घड़ियों के साथ उसका रिश्ता चूँकि नैतिक है, इसलिए घड़ियों की पीड़ा उसकी प है सरकारी बुलावा आने पर उसने तय किया था कि वह पूरी ताकत के साथ घड़ियों की पैरवी करेगा, उनकी वकालत करेगा।
अपना नंबर आते ही मि. वॉचमैन ने सारा किस्सा कह सुनाया। बाकी सारे घड़ीसाजों को बेंगलुरु की घड़ियों की चिंता सही लगी। मामला सरकारी सिद्धांतों और नीति से जुड़ा था। इसलिए सरकारी अफसर ने बैंगलुरु के मि. वॉचमैन की बात सरकारी बही में लिखने से पहले वहाँ उपस्थित नेशनल मशीन टूल्स के चीफ इंजीनियर की राय माँगी। उस चीफ इंजीनियर ने भी अपने कारखाने में एक खास तरह का असंतोष पाया था। उसने अपनी राय देते हुए कहा-
“इनकी बात सही लगती है। ऑटोमैटिक व रोल्ड गोल्ड घड़ियों को लेकर हमारी यूनिटों में विवाद खड़ा हुआ था। मैकेनिकों का कहना था कि महँगी घड़ियों का निर्माण बंद होना चाहिए।”
एन.एम.टी. के चीफ इंजीनियर की राय जानकर सरकारी अफसर ने मि. वॉचमैन का बयान दर्ज किया। बयान में लिखा गया था- “बेंगलुरु की घड़ियों को भय है कि समय पर शीघ्र ही सत्ता का अधिकार होनेवाला है। सरकारी कारखाना घड़ियों में भी कोई ऐसा पुर्जा बैठाने वाला है, जिससे घड़ियाँ सरकार की मर्जी और मूड के मुताबिक चला करेंगी घड़ियाँ मानती हैं कि समय पर सत्ता का यह अधिकार लोकतंत्र विरोधी बात है। उनका यह भी तर्क है कि सरकारी कारखाने द्वारा कीमती घड़ियों का निर्माण सरकार की अपनी नीति के खिलाफ़ है इससे असमानता बढ़ती रहेगी, मिटेगी नहीं।’
क्यान दर्ज हुआ, मामला महत्त्वपूर्ण समझा गया। सारा किस्सा टाइप कराकर संबंधित अफसरों व मंत्रियों के पास उसी वक्त विशेष हरकारों के साथ भेज दिया गया। बैंगलुरु का घड़ीसाज यह सब देखता रहा। उससे अधिक देर चुप न रहा गया, वह बोला, “कागजी कार्रवाई और घड़ियाँ की कार्रवाई में जो फ़र्क है, उसे देखिए साहब!”
सरकारी अफ़सर अपनी कार्रवाई का पक्का था। वह बिना उस तरफ ध्यान दिए अगली कार्रवाई के कागज ही पलट रहा था।
घड़ियों की हड़ताल के सभी भाग यहाँ देखें !
अगर आपको कहानी अच्छी लगी हो तो हमारी वेबसाईट पर दोबारा जरूर आएं और हमारी वेबसाईट के लिंक्स आप आने दोस्तों के साथ भी शेयर करें । कहानियाँ पढ़ने या सुनने के लिए आप हमारी किसी भी वेबसाईट kahani4u.com, kahani.world, kahani.site, कहानियाँ.com, कहानियां.com, हिन्दीकहानियाँ.com, हिन्दीकहानियां.com ,bacchonkikahani.com, बच्चोंकीकहानियाँ.com, बच्चोंकीकहानियां.com को विज़िट कर सकते है ।
*यदि आपको लगता है कि यहाँ पर आपका कोई Copyright Content यहाँ उपलब्ध है तो कृपया करके आप हमे सूचित कर सकते हैं हमारे Contact Us पेज के द्वारा ।