आँखों के सामने चोरी (Ankhon Ke Samne Chori) एक मजेदार ओर व्यंगयात्मक कहानी है जो कक्षा 2 , कक्षा 3, कक्षा 4 व 5 के बच्चों के लिए शिक्षाप्रद ओर मनोरंजक है ।
एक बार बादशाह अकबर ने दावा किया कि कोई भी उसकी आँखों के सामने चोरी नहीं कर सकता, किन्तु बीरबल सहमत न हुआ और बोला, “महाराज, कुछ लोग आपके सामने ही चोरी कर सकते हैं। (आपकी नाक के ठीक नीचे ही) एक दर्ज़ी बिना अपने लिये कपड़ा बचाये कपड़े नहीं सी सकता।” उसने यह बात सिद्ध करने के लिये शाही दर्ज़ी को बुलाया और अकबर से कहा, “महाराज, हम दर्ज़ी को रानी के लिये ब्लाउज सीने की आज्ञा देते हैं और उस पर नज़र रखते हैं।”
दामोदर नामक, शाही दर्ज़ी को रानी का ब्लाउज़ सीने के लिये बुलाया गया। बीरबल ने दर्ज़ी को समझाया, “हम तुम्हें फ़ारस का मलमल का कपड़ा दे रहे हैं, तुम्हें रानी के लिये ब्लाउज़ सीना है। जब तक ब्लाउज नहीं सिल जाता तब तक तुम्हें महल से जाने की अनुमति नहीं है, कपड़े को व्यर्थ में नष्ट नहीं करना है, यह कपड़ा बहुत मूल्यवान है।”
दर्जी को कमरे में ले जाया गया। आवश्यकता के अनुसार उसने जो माँगा उसे दे दिया गया। उसकी प्रत्येक गतिविधि को देखने के लिये दरवाजे पर पहरेदार खड़े हो गये।
दोपहर बाद दर्ज़ी का बेटा उससे मिलने आया। किन्तु उसे दर्ज़ी से मिलने की अनुमति नहीं दी गयी।
उसने वहीं से चिल्लाकर कहा, “पिताजी, माता जी तुम्हें भोजन के लिये बुला रही हैं।
दामोदर ने उत्तर दिया, “मैं व्यस्त हूँ। आज घर पर भोजन नहीं कर सकता।”
लड़के ने ज़ोर देकर कहा, “माता जी ने कहा है कि मैं उनके बिना न आऊँ।”
उधर से पिता की आवाज़ आयी, “सम्भव नहीं है । “
किन्तु लड़के ने अपनी बात पुनः दोहरायी, इस पर दामोदर क्रोधित हो गया और उसने अपना जूता लड़के पर फेंक कर मारा। लड़का जूता लेकर रोता हुआ चला गया।
शाम तक दामोदर ने सिलाई का कार्य पूरा कर लिया। सुरक्षाकर्मी उसको राजा के पास ले गये। अकबर ने दर्जी से ब्लाउज़ व बचे हुए छोटे-छोटे कपड़े लिये। राजा ने उसको धन दे दिया।
अकबर बीरबल से बोले, “क्या हमने कुछ गलत कहा ? दर्ज़ी ने छोटे से छोटा टुकड़ा भी दे दिया। हमारे सामने से कोई चोरी नहीं कर सकता।”
“आप प्रतीक्षा करें और देखें आगे क्या होता है?” बीरबल बोला। कुछ दिनों बाद रानी की सेवा करने वाली दासी रानी से बोली, “मैंने एक औरत को ऐसे ही कपड़े का ब्लाउज़ जैसा आपके ब्लाउज़ का है, पहने देखा है। “
यह जानकर रानी को आश्चर्य हुआ। वह अकबर के पास गयी और बोली, “स्वामी जब आपने मुझे यह ब्लाउज़ उपहार दिया था तब आपने कहा था कि इसकी अपनी एक पहचान है और यह फ़ारस से केवल मेरे लिये मंगाया गया है।”
राजा ने जवाब दिया, “यह सच है प्रिय! “फिर मेरी दासी ने दूसरी औरत को ऐसा ही ब्लाउज़ पहने कैसे देख लिया? क्या यह मेरा अपमान नहीं है?”
दासी को बुलाया गया और उससे पूछा गया कि क्या वह उस औरत को पहचानती है?
दासी ने जवाब दिया, “वह दामोदर की पत्नी है।”
अकबर ने सेवक को तुरन्त दामोदर को लाने का आदेश दिया।
जब वह आया राजा चीखा–
“चोर……. । तुमने उस मलमल के कपड़े का टुकड़ा चुराया?”
दर्ज़ी राजा के पैरो में गिर गया और क्षमा की भीख माँगने लगा। अकबर ने पूछा, “तुमने पहरेदार के वहाँ होने के बावजूद कपड़ा कैसे चुराया?”
“कपड़ा दर्जी के द्वारा अपने बेटे पर फैंके गये जूते में था। मैं सच बोल रहा हूँ न? श्रीमान।” बीरबल दर्ज़ी से पहले ही बोल पड़ा।
दर्ज़ी ने सहमति प्रकट की। दर्ज़ी को दण्ड दिया गया और बीरबल को ईनाम।
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