-गिजऊभाई बधेका
Hindi Sahitya me Khaniyon ka Bada mehhatav hai , hindi kahaniyaan bachhon ke mansik vikas ke liye ek unnat or jacha parkha madhyam hai,Yahan Par hmare dwara Gijubhai Badheka ki ek kahani सौ के साठ (60 OF 100 ) prastut ki gayi hai jo prathmik istar ke bachhon ke liye upyukt hai . Yahan par har kahani ka likhit evam maukhik sansakran uplabdh hai , jisse har ek bacchon ko kahani padhne evam samjhne me asani ho or kahani ka anand liya ja sake.
एक था मियां और एक था बनिया । मियां ने बनिये से कुछ रूपए कर्ज ले रखे थे। बनिया बार-बार रुपयों का तकादा करता, लेकिन मियां की नीयत मे ही पत्थर थे। एक धेला भी लौटाने का उसका इरादा नहीं था । बनिया जब भी उगाही के लिए आता, मियां उलटा-सीधा जवाब दे कर उसे टरका देता, आखिरकार बनिया थक गया। संदेश भेज-भेज कर परेशान हो गया। फिर भी उसने आखिरी कोशिश की ।
एक दिन बगल में बही दबा कर वह मियां के घर पहुंचा । दरवाजा बंद था।उसने बाहर से आवाज दी, ‘मियांजी घर पर हैं? मियां के बेटे ने कहा, “सेठजी, अब्बू तो बाहर गए हैं।” बनिये ने पूछा, “कहां गए हैं?” बेटा बोला,“कमाई करने” । बनिये ने पूछा,“मगर कहां?” बेटा बोला,“अमराई में । वहां से गुठुली ला कर यहां आंगन में लगाएंगे। उससे आम का पेड़ निकलेगा। आम लगेंगे। हम आम खाएंगेऔर बेचेंगे भी । उनसे जो पैसे मिलेंगे, अब्बू आपका कर्ज़ चुकाएंगे। ‘बनिया समझ गया कि इस मियां से पैसे वसूल करना दीवार से सिर टकराना है।
मियां घर लौटे । बेटे ने उनको सारी बात सुनाई । मियां ने कहा, “तूने समझदारी से काम नहीं लिया। पैसे लौटाने का जिक्र की क्या जरूरत थी?” तभी आग बबूला हुआ बनिया वहां आ पहुंचा।बोला, “बरखुरदार,रुपए चुका दो वरना मैं इंसाफ के लिए पंचों के द्वार खटखटाऊंगा।” मियां ने कहा, “अब आपने अक्लमंदी की बात कही, आप पंचों को बिठाइए, वे जो भी फैसला देंगे मुझे मंजूर होगा, वे कहेंगे तो नकद गिन दूंगा।”
चौपाल पर बैठक हुई। पंचों ने समझौता करवाने की कोशिश की । ‘हां-ना हां–ना” करते हुए आखिर पंचों ने सौ के साठ देने की बात तय की। “साठ रुपए!’ मियां ऐसे बोले जैसे आकाश टूट पड़ा हो, सरकार कुछ कम कर दें तो मैं अभी चुका दूंगा फिर पंचों ने दो इधर से घटाए दो उधर से काटे और यों आधे रुपए कम कर डाले। इसके बाद तो सिर्फ तीस रुपए ही देने को बचे। मियां बोल उठे, “वाह, इसे कहते हैं इंसाफ।”
"दस का वादा करता हूं और बाकी दस का लेना क्या और देना क्या ?"
एक अरसे बाद इतने बड़े मामले का निपटारा हुआ है। आपको इतनी रियायत तो देनी ही पड़ेगी,आपका फैसला एकदम सही है। मैं अभी दस नकद दे रहा हूं।
अब बनिये से मियां बोले, “सेठजी, पहले सुन लें और फिर अपनी बही में लिख लें।”
सौ के किए साठ, आधे हुए काठ दस दिए, दस दूंगा बाकी दस का लेना क्या देना क्या?
मियां की चतुराई देख कर बनिया हंस पड़ा। तब मियां का बैठा बेटा बोला, “अब्बू! देखिए, बनिया हंस रहा है” मियां ने कहा, “बात ही ऐसी है उसे नगद दस रुपए जो मिले हैं।”
सौ के साठ (60 OF 100 )) व अन्य गिजऊभाई बधेका की कहानियाँ पढ़ने और सुनने के लिए जुड़े रहिए हमसे , और शेयर कीजिए हमारे वेबसाईट के लिंक्स आने दोस्तों के साथ। कहानियाँ पढ़ने या सुनने के लिए आप हमारी किसी भी वेबसाईट kahani4u.com, kahani.world, kahani.site, कहानियाँ.com, कहानियां.com, हिन्दीकहानियाँ.com, हिन्दीकहानियां.com ,bacchonkikahani.com, बच्चोंकीकहानियाँ.com, बच्चोंकीकहानियां.com को विज़िट कर सकते है ।
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