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घड़ियों की हड़ताल (Chapter-2)

By KahaniVala

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-( रमेश थानवी ) Ramesh Thanvi

Hindi Sahitya me Khaniyon ka Bada mehhatav hai , hindi kahaniyaan bachhon ke mansik vikas ke liye ek unnat or jacha parkha madhyam hai,Yahan Par hmare dwara देश में प्रौढ़ शिक्षा का अलख जगाने वालों में अग्रणी, साहित्य और दर्शन के अध्येता, एक दौर के प्रतिष्ठित साप्ताहिक ‘प्रतिपक्ष’ की टीम के सदस्य और राज. प्रौढ़ शिक्षण समिति के अध्यक्ष रहे “श्री रमेश थानवी” ki ek kahani “घड़ियों की हड़ताल” prastut ki gayi hai jo prathmik istar ke bachhon ke liye upyukt hai . Yahan par har kahani ka likhit evam maukhik sansakran uplabdh hai , jisse har ek bacchon ko kahani padhne evam samjhne me asani ho or kahani ka anand liya ja sake.

अध्याय 2

खोजबीन जारी थी। समय गायब था। सभी परेशान थे। मगर समय की खोजबीन में इस बार सभी जुट गए थे। पंडित लोग, प्रोफ़ेसर लोग, वैज्ञानिक लोग, दिनमानी दुकानों के ज्योतिषी लोग और सौदा-सूत करनेवाले सभी व्यापारी लोग भी इस प्रकार सरकार अब अकेली नहीं रह गई थी। जनता का साथ मिला, तो कई अच्छे सुझाव भी सामने आए एक सुझाव ‘घड़ीसाजों की कमेटी’ का था।

सुझाव था कि सारे देश के घड़ीसाजों की एक राष्ट्रीय कमेटी बनाई जाए। इसी कमेटी को घड़ियों की हड़ताल का कारण तलाशने का काम सौंपा जाए।” सुझाव सभी मंत्रियों व अफसरों को अच्छा लगा था। सबने अपनी सहमति दे दी थी। सारे देश के नामी घड़ीसाजों के नाम आदेश जारी कर दिया गया था तुरंत राजधानी पहुँचा।’

सरकारी हुक्म पाते ही सभी नामी घड़ीसाज दिल्ली दौड़े आए। कुछ घड़ीसाज घबरा गए थे कि सरकार ने क्यों बुलाया। उनसे क्या कसूर हो गया? कुछ घड़ीसाज यह सोचते आए कि सरकार उनकी कारीगरी का कोई इनाम देना चाहती है। एक घड़ीसाज तो यह सोचते आए थे कि राष्ट्रपति भवन की किसी विलायती घड़ी को सुधारने का काम उनको सौंपा जाएगा। लेकिन इतना सभी घड़ीसाज जानते थे कि जैसे उनकी घड़ियाँ बंद हो गई हैं, वैसे ही दिल्ली के साहब लोगों की घड़ियाँ भी बंद हो गई होंगी शायद तभी सरकार ने उन्हें याद – किया है। सरकारी हुक्म का डर फिर भी सबके मन में बैठा हुआ था। सभी निश्चित तारीख पर सरकारी दफ़्तर में हाजिर हुए।

सगतपुर के राजमहल का बूढा घड़ीसाज़ राजधानी पहुँचा था। खैरागढ़ के नवाब का खास घड़ीसाज भी आया था। बजबज बीकानेर, बनारस, बेंगलुरु, कानपुर, काठियावाड़. लेह-लद्दाख, नमपुर तथा नाथद्वारा के नामी घड़ीसाज भी आ पहुंचे थे। उनकी एक राष्ट्रीय कमेटी बना दी गई। इन घड़ीसाजों के दिल्ली पहुंचने से मालूम हुआ था कि घड़ियों की हड़ताल देश के कोने-कोने में फैल चुकी थीं। इसके साथ ही एक अच्छी खबर यह भी थी कि जब से घड़ियों ने हड़ताल की है तब से दूसरी सारी हड़ताले टूट चली हैं। सरकार खुश थी, मगर चिंतित थी कि घड़ियों की हड़ताल को कैसे तोड़े। इनकी यूनियन को कैसे फोड़े? समय की एकता को तोड़ने की अटकल हर अफसर सोच रहा था।

घड़ीसाजों की राष्ट्रीय समिति बन चुकी थी। सरकार का प्रतिनिधित्व घड़ियों के सरकारी कारखाने नेशनल मशीन टूल्स (एन.एम.टी.) के बड़े इंजीनियर कर रहे थे। समिति की सारी बैठकों के प्रबंध हो चुके थे। घड़ीसाजों से कहा गया था कि वे घड़ियों की हड़ताल का कारण तलाशें अपने-अपने घरों में सुधरने आई मरीत घड़ियों के बीच कभी किसी ने कोई कानाफूसी सुनी हो तो बताएँ। सभी घड़ीसाजों से यह भी कहा गया कि वे किसी भी तरह पीछे छूट गए समय की लौं लाने में सरकार की भरपूर मदद करें। सबसे अलग-अलग बयान गे गए थे।

सगतपुर से आए बूढ़े घड़ीसाज ने दुःखी होते हुए अपने राजमहल की रुकी हुई घड़ियों की व्यथा सुनानी शुरू की। संगतपुर के इस राजमहल में तीन सौ तैंतीस कमरे हैं, चालीस चौक हैं और चार ऊँचे लंबे घंटाघर है। इन चारों घंटाघरों में चार विलायती घड़ियाँ लगी हुई हैं। वे पिछले पचास साल से हर मौसम को सहती हुई ज्यों की त्यों डटी हैं। सही समय के घंटे बजाकर सारे शहर को समय की सूचना देती रही हैं। महत्व के हर कमरे और हर चौक में एक बड़ी टंगी है। महल में रहनेवाले और काम करनेवाले हर आदमी के हाथ पर एक-एक घड़ी बंधी है। इस प्रकार सगतपुर के राजमहल में एक हजार एक सौ एक घड़ियाँ हैं, जिनकी देखरेख यह बूढ़ा घड़ीसाज पिछले चालीस साल से कर रहा है।

सगतपुर के इस बूढे घड़ीसाज के बाल पक गए हैं, सारे दाँत गिर गए हैं। जब से दाँत गिरे हैं, यह घड़ीसाज सिर्फ यह सोचता रहता है कि कभी दिल्ली जाएगा और नए दाँत लगवा लाएगा, लेकिन वह सिर्फ़ सोचता रहा है। इसलिए मुँह अब भी पोपला है। जिस आँख पर वह काँच पहनता है. वह आँख अंदर गड़ गई है। गालों में गड्ढे पड़े हैं और चेहरे की चमड़ी झुर्रियों के कारण लटक गई है, लेकिन आज भी हरेक घड़ी की धड़कन से इसका रिश्ता नाता जुड़ा है। वह पूरी आत्मीयता के साथ सारी घड़ियों को संवारता है, साफ़ रखता है। जब से घड़ियाँ बंद हुई हैं, तब से वह बहुत दुःखी है। उसने एक-एक पड़ी का हर पुर्जा हर पंच ठीक से ठोंककर परख लिया है। सभी कुछ सही है, फिर भी घड़ियाँ बंद हैं। कारण तो उसने किसी तरह ढूँढ ही लिया है। अपने बयान में वह कहता है-

“यह तो होना ही था सरकार एक दिन तो इन घड़ियों को बंद होना ही था। जो इस ट्रेम की इज्जत करते थे, वे तो रहे नहीं। तब फिर आखिर कभी तो उस टेम को भी चला ही जाना था। “

घड़ीसाज हाँफता है ठहरकर एक लंबी साँस लेता है और आगे बताता है, “साहब! इस महल के घंटाघर हर मौसम में घंटे बजा-बजाकर बताते रहे हैं कि ‘तुम्हारा समय बीत रहा है और यह राजमहल हमेशा चौकन्ना रहा है। प्रत्येक पल की इज्जत करता रहा है। सभी लोगों के समय का खयाल रखता रहा है, उससे जुड़ा रहा है, लेकिन अब कौन जवाबदार रहा है सरकार? अब कौन जिम्मेदार रहा है? आज पल और पहर में कहीं कोई फ़र्क रहा है सरकार? आज जनता दिनमान की किसे फ़िक्र है सरकार? अपनी ही जनता से दूर राजमहल एक भुतहामहल बनकर खड़ा है सरकार!”

कहते-कहते घड़ीसाज़ से पड़ा था। उसके दिमाग में एक साथ बीते दिनों की याद कौंध गई थी और अब जो कुछ घट रहा है, उसे बरदाश्त करना उसके लिए मुश्किल हो गया था। उसके लिए यह वरदाश्त करना मुश्किल था कि शहर संगतपुर का समय चुपचाप हाथों से सरक जाए और किसी को इसका मान ही न रहो. न ही इस राजमहल की घड़ियों से यह अपमान सहा जा रहा था। बूढ़ा घड़ीसाज बता रहा था, “एक रात तो यह तमाशा भी देखना पड़ा कि सरकार, छोटे कुँवर साहब की कार कहाँ से लौटी थी 15 तभी घड़ियों ने रात के दो बजाए। सारी घड़ियाँ एक साथ दो घट बजा रही थीं। कुँवर साहब का नशा तोड़कर सुना रही थीं कि “यह घर लौटने का समय नहीं है कुँवर साहब!’ घड़ियों की चेतावनी कुँवर साहब को अच्छी नहीं लगी। उन्होंने दूसरे सबसे ही सूरजपोल (मुख्यद्वार) की घड़ी उतरवा दी सारी घड़ियों इसे अपनी तौहीन समझा था।”

घड़ीसाज फिर किसी पीड़ा के दबाव से दब गया था। थोड़ा ठहरकर कहने लगा था, “दूसरे ही सवेरे मैंने सुना कि मेरे कमरे की घड़ियाँ कानाफूसी कर रही है. एक दूसरे से कह रही है कि अब हमारा समय बीत गया है, समय की इज्जत उठ गई है। वे सारी पड़ियाँ अपनी कानाफूसी के बाद मुझे भी चेतावनी दे रही थीं। कह रही थी- ‘बूढे घड़ीसाज, तुम्हारा भी समय बीत गया है। अपने औजार समेट लो और बिस्तर बाँध लो।’ मैंने कभी यह नहीं सोचा था कि कभी मेरी घड़ियाँ ही मुझसे यूँ किनारा करने को कहेंगी किनारा करने को कहेंगी… कभी नहीं सोचा था सरकारी कर्म नहीं…!”

कहता- कहता बूढ़ा घड़ीसाज बेहोश हो गया था।

घड़ीसाज का बयान सुन रहे सरकारी अफ़सर सन्न रह गए थे। बेहोश घड़ीसाज को तुरंत अस्पताल पहुँचाने के लिए सबसे बड़ा सरकारी अफसर खुद भागा था। उस घड़ीसाज की पीड़ा से सारे अफ़सर पिघल से गए थे। वे अब घड़ियों के सवालों से जुड़ गए लगते थे, लेकिन कमेटी की कार्रवाई को आगे बढ़ाने के लिए एक अफसर ने बताया कि उसने सगतपुर के बूढ़े घड़ीसाज का बयान दर्ज कर लिया है। कमेटी के सभी अफसरों ने यह चाहा कि दर्ज हुआ बयान पढ़कर सबको सुनाया जाए। एक अफसर सरकारी रिकॉर्ड से बयान पढ़कर सुना रहा था-

“सगतपुर में समय की इज्जत करनेवाले नहीं रहे। राजमहल के लोग अपनी जिम्मेदारी भूल गए हैं- ऐशोआराम में समय नष्ट करते हैं। राजमहल जनता के समय से, शहर की जनता के दुःख-सुख से बिल्कुल कट गया है। सारे शहर का समय इसके शासकों के हाथों से चुपचाप सरकता जा रहा है और किसी को कोई परवाह नहीं है। इसलिए उस राजमहल की घड़ियाँ अब चलना जरूरी नहीं समझतीं। वे सोचती हैं कि समय बताते रहने की अब कोई सार्थकता नहीं है। इस स्थिति को घड़ियाँ अपना अपमान समझती हैं और वे बंद हो गई हैं।”

सरकारी अफसर जब बयान पढ़कर सुना रहा था, तब अफ़सर गर्दन हिला-हिलाकर घड़ियों की राय से अपनी सहमति जता रहे थे। वे सोच रहे थे रूठी घड़ियों को कैसे मनाया जाए? जिम्मेदार लोगों को जनता के दुःख-सुख के साथ कैसे जोड़ा जाए?

घड़ियों की हड़ताल के सभी भाग यहाँ देखें !

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