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अनोखा मूर्तिकार

By KahaniVala

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अनोखा मूर्तिकार एक लघु हिंदी कहानी है जो कक्षा 2, कक्षा 3, कक्षा 4 व 5 के बच्चों के लिए पंचतंत्र, अकबर बीरबल, तेनाली रमण की कहानियों की तरह मजेदार एवं शिक्षाप्रद है।

किसी नगर में चित्रांगद नाम का एक मूर्तिकार रहता था। वह जो भी मूर्ति बनाता था वह इतनी सजीव-सी लगती थी मानो अभी बोल पड़ेगी। उसने अपने घर के द्वार पर भी युवा चौकीदार की एक मूर्ति बनाकर रख छोड़ी थी। उसे जीता-जागता चौकीदार समझकर कोई भी चोर उस घर की ओर रुख करने की हिम्मत नहीं कर पाता था।

अनोखा मूर्तिकार

समय के साथ-साथ चित्रांगद बूढ़ा हो चला था।

एक रात उसने भयानक स्वप्न देखा । स्वप्न में उसने देखा कि कुछ यमदूत उसे घसीटकर यमपुरी ले जा रहे हैं। वह उनके आगे बहुत गिड़गिड़ाया, लेकिन उसके गिड़गिड़ाने का उन यमदूतों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।

सुबह जब वह नींद से जागा तो मृत्यु के बारे में विचार करने लगा। उसे अंदेशा था कि अब वह कुछ ही दिन और जीवित रह पाएगा, लेकिन जीवित रहने की उसकी ललक अभी बाकी थी। उसने यमदूतों को चकमा देने की एक योजना बनाई। योजनानुसार उसने अपनी ही हमशक्ल दस मूर्तियां बनाईं।

एक दिन मृत्यु का समय निकट जानकर वह उन मूर्तियों के बीच में जाकर खड़ा हो गया । इत्तफाक से उसी दिन यमदूत उसे लेने आ गए। यमदूतों ने देखा कि यहां तो एक नहीं दस-दस चित्रांगद हैं। वे असली

चित्रांगद को पहचान नहीं सके और यमपुरी लौट गए। जब यमदूत चले गए।

तब चित्रांगद की सांस में सांस आई। यमपुरी जाकर जब यमदूतों ने अपने स्वामी यमराज को वस्तुस्थिति से अवगत कराया तो वह बिगड़कर बोले, “अरे मूर्खो! चित्रांगद उसी घर में मूर्तियों के

बीच छिपा है। उसे तुरंत लेकर आओ। वरना तुम्हारी खैर नहीं है।“

यमदूत वापस चित्रांगद के घर पहुंचे और उसे उन मूर्तियों के बीच ढूंढने लगे । यमदूतों में से एक यमदूत बेहद चतुर था। उसने सभी यमदूतों को एक कोने में बुलाकर कहा, “सुनो, मनुष्य में बड़ा अहंकार होता है। हमें इन मूर्तियों में कमियां ढूंढ़नी चाहिए। इस प्रकार असली चित्रांगद अपनी बुराई सुनकर कुछ न कुछ बोल पड़ेगा और हम उसे धर दबोचेंगे। “ फिर यमदूत एक-एक मूर्ति के पास जाकर उसकी प्रशंसा करने लगे, लेकिन

एक मूर्ति के पास खड़े होकर वह बोले, “मूर्तिकार ने मूर्तियां तो सजीव -सी बनाई

हैं, लेकिन एक कमी छोड़ दी। “

इतना सुनना था कि चित्रांगद तुनककर बोला, “क्या कमी छोड़ दी मैंने?” जैसे ही यमदूतों ने उसे बोलते सुना तो तुरंत धर दबोचा और बोले, “यही कमी कर दी कि ये मूर्तियां बोल नहीं सकतीं।“ फिर उसे यमपुरी में ले जाकर यमराज के सम्मुख खड़ा कर दिया।

कथा-सार

अहंकारी प्राणी किसी भी लाभप्रद स्थिति का सदुपयोग नहीं कर सकता। अहंकार ही मनुष्य का वह अवगुण है जो उसे विनाश की ओर धकेल देता है।

हमे उम्मीद है के सभी पढ़ने वाले रीडर्स को हमारी यह कहानी अनोखा मूर्तिकार जरूर पसंद आई होगी ।

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