एक घने जंगल में एक झील थी। उसके किनारे चार मित्र रहते थे। पहला एक छोटा-सा भूरा चूहा था। वह झील के किनारे एक आरामदेह बिल में रहता था।
दूसरा मित्र एक काला कलूटा कौवा था । वह पास ही एक जामुन पेड़ पर रहता था । के तीसरा मित्र एक कछुआ था। उसका घर झील में था और वहीं उसे आनन्द भी आता था ।
चौथा मित्र एक हिरन था। उसकी बड़ी-बड़ी सुन्दर आंखें थीं और सुनहरे बदन पर सफेद चित्तियां ।
चारों मित्र हिलमिल कर सुख से रहते थे। जंगल के उस हिस्से में वे बिना किसी परेशानी के शान्ति से दिन बिता रहे थे।
एक शाम चूहा, कौवा और कछुवा झील के किनारे बैठे-बैठे चोथे मित्र हिरन का इन्तजार कर रहे थे। बैठे-बैठे घंटों बीत गये पर हिरन नहीं आया।
हिरण की खोज !
“लगता है हमारा मित्र किसी मुसीबत में फंस गया है, “चूहे ने चिन्तित होकर कहा ।
“हां,” कौवे ने कहा, “हो सकता है उसे किसी बहेलिये ने पकड़ लिया हो और पकड़ कर कहीं मार ही न डाला हो ।”
“हमें अपने मित्र की खोज करनी चाहिए,” कछुवे ने कहा, “भाई कोवे, तुम उड़ कर तो देखो, हो सकता है कहीं दिख ही जाये।”
“हां, हां, क्यों नहीं ?” कौवे ने कहा, “मैं अभी जाता हूँ ।”
ऐसा कहकर कौवा हिरन की खोज में उड़ चला। वह इधर-उधर, आगे पीछे, दांये बांये सब जगह उड़ा और उड़ते समय हिरन को पुकारता भी रहा, “हिरन,” वह पुकारता, “प्यारे हिरन “तुम कहां हो? तुम कहां हो?”
कुछ समय बाद उसे अपनी पुकार के जवाब में एक हल्की आवाज सुनायी दी। वह हिरन की आवाज थी।
“बचाओ, मुझे बचाओ,” हिरन कह रहा था, “मैं यहां हूँ, यहां।”
“ओहो, तो तुम यहां हो?” कोबे ने कहा, “मैं न जाने कब से तुम्हें खोज रहा हूँ ।”
कोवा उतर कर नीचे आया तो देखता क्या है कि हिरन एक जाल में फंसा है ।
“ओह, तुम तो जाल में फंसे हो,” कौवे ने दुखी होकर कहा, “अब क्या किया जाय । अच्छा ठहरो, में तुम्हारी मदद के लिए दोस्तों के पास जाता हूँ ।” अपने दोस्त को देख हिरन की आंखों में आंसू भर आये, उसने कहा, “भाई, जो ठीक समझो करो, मगर जो कुछ करना हो जल्दी करो ।”
कौवा फुर्ती से उड़ता हुआ झील के पास लौट आया। उसे देखते ही चूहा और कछुवा दोनों एकसाथ बोलने लगे ।
“कहो भाई कहो,” उन्होंने पूछा, “क्या हमारा मित्र मिल गया ? क्या हिरन मिल गया ?”
“हां दोस्तो, हां,” कौवे ने कहा, “मिल तो गया लेकिन इस समय वह भारी खतरे में पड़ा हुआ है ।”
कौवे ने हिरन को खोज निकालने और उसके जाल में फंसे होने की सारी कहानी अपने मिलों को कह सुनायी ।
हिरण का बचाव
इस पर कछुवे ने चटपट एक उपाय सोच निकाला, उसने कहा, “चिन्ता की कोई बात नहीं। चूहा जाल काटकर हिरन को आजाद कर सकता है।”
“हां, क्यों नहीं, ” चूहे ने कहा, “लेकिन मैं उसके पास जाऊंगा कैसे ?”
“यह भी कोई बात है ?” कौवे ने कहा, “मैं तुम्हें अपनी पीठ पर बैठा- कर ले चलूंगा ।”
“तो आओ चलें,” चूहे ने कहा और उचक कर कौवे की पीठ पर बैठ गया।
चूहे को लेकर कौवा उड़ा और थोड़ी ही देर में हिरन के पास जा पहुंचा। हिरन के पास पहुंचते ही चूहा फोरन कोवे की पीठ से उतरा और अपने पैने दांतों से जाल काटने लगा। उसने जरा हो देर में हिरन को आजाद कर दिया। हिरन उठ खड़ा हुआ। उसी समय धीरे-धीरे रेंगता हुआ उनका चौथा साथी कछुवा भी वहीं आ पहुंचा।
अहा!” कछुवे को देखकर तीनों मित्र बोले, ” तुम्हें यहां देखकर हमें बड़ी खुशी हुई।”
कुछ देर तक सबके सब हिरन के बच निकलने की चर्चा करते वहीं हुए पर खड़े रहे । अचानक किसी के आने का खटका सुनकर चारों चुप हो गये । उन्होंने देखा सामने से बहेलिया चला आ रहा है।
बहेलिये पर नजर पड़ते ही कौवा उड़कर एक ऊंचे पेड़ की डाल पर जा बैठा, चूहा एक बिल में जा छिपा और हिरन चौकड़ी भरता हुआ पलभर में गायब हो गया ।
लेकिन कछुवा बेचारा क्या करता ? वह जैसे-तैसे एक झाड़ी की ओर रेंगने लगा ।
बहेलिये ने पास आकर देखा तो जाल खाली देख भौंचक रह गया “अरे ! यह क्या ?” उसने कहा, “फंसा-फंसाया हिरन भाग निकला !”
वह चकित होकर इधर-उधर देखने लगा। अचानक उसकी निगाह झाड़ी की ओर रेंगते हुए कछुवे पर पड़ी।
“आहा !” उसने कहा, “यहां तो कछुवेराम दिखायी दे रहे हैं। चलो आज इन्हीं का भोग लगाया जायेगा ।”
उसने लपक कर कछुवे को पकड़ा और एक थैले में बन्द कर घर की ओर चल दिया। पेड़ पर बैठा हुआ कौवा इस सारी घटना को देख रहा था ।
“ओ चूहे भाई! ओ हिरन भाई” उसने अपने दोस्तों को पुकार कर कहा, “जल्दी भागो, जल्दी। हमारा मित्र कछुवा भारी मुसीबत में फंस गया है।”
चूहा और हिरन तुरन्त भागे-भागे कौवे के पास आये। कौवे ने उन्हें बताया कि बहेलिया किस प्रकार कछुवे को थैले में बन्द करके ले गया है।
“अब क्या हो ?” कौवे ने कहा, “कछुवे को आजाद कैसे कराया जाय ?”
“जो कुछ भी करना हो,” चूहे ने कहा, “बहेलिये के घर पहुंचने से पहले ही कर डालना चाहिए ।”
कछुवे का बचाव
हिरन ने कहा, “हमें क्या करना है, यह मैं बताता हूँ। मैं बहेलिये के रास्ते में खड़ा होकर घास चरने का बहाना करूंगा । बहेलिया मुझे देखेगा तो थैला छोड़कर मेरा पीछा करने लगेगा। उसी बीच चूहा थैला काट देगा और कछुवा आजाद हो जायेगा ।”
“लेकिन मानलो, कहीं उसने तुम्हें पकड़ लिया तो?” कौवे ने पूछा “अरे नहीं । तुम चिन्ता न करो। मैं इतना तेज दौड़ंगा कि उसे नानी याद आ जायेगी ।”
हिरन बहेलिये के रास्ते में जाकर आराम से खड़ा हो गया और मजे से घास चरने लगा ।
“हिरन !” उसे देखते ही बहेलिया चिल्लाया, “कितना मोटा ताजा हिरन” उसने थैला जमीन पर रक्खा और हिरन को पकड़ने दौड़ा।
चूहे की फुर्ती !
उसी समय चूहा फुर्ती से आया और थैला काटने लगा । जरा ही देर में कछुवा आजाद हो गया । वह, जितनी जल्दी हो सकता था, भागा और पास ही एक घनी झाड़ी में छिप गया। उधर हिरन ऐसा दौड़ा कि बहेलिया उसकी दुम भी न पकड़ सका । वह खाली हाथ थैले के पास लौट श्राया ।
“हिरन हाथ न आया तो क्या हुआ ?” उसने कहा, “यह मोटा-ताजा कछुवा तो है ही। आज के खाने को यही काफी है।”
लेकिन जब बहेलिये ने थैला उठाया तो वह खाली निकला । वह इतना चकित हुआ कि उसे अपनी ही आंखों पर यकीन न आया ।
“यह क्या ?” वह चीखा, “कछुवा नदारद ! इतना सुस्त जानवर कैसे भागा होगा ? लगता है आज मेरी किस्मत ही खराब है । पहले तो हाथ आया हिरन जाता रहा और अब यह रेंगनेवाला कछुवा भी गायब हो गया, आज तो भूखे ही सोना पड़ेगा ।”
कौवा, हिरन, चूहा और कछुवा छिपे-छिपे बहेलिये को देख रहे थे। जब वह खाली थैला लेकर चला गया तो वे सब ठाठ से बाहर निकल आये ।
इस प्रकार वे चारों मित्र मिलजुल कर एक दूसरे की मदद करते हुए कई वर्षों तक आनन्द से दिन बिताते रहे ।
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