Tenali Raman ki Kahaniyan hamesha se hi bacchon ke liye majedar or shikshaprad rahi hai yah kahani सबसे बड़ा मनहूस! (SABSE BADA MANHOOS) class 2, class 3, class 4 & 5 ke bacchon ke liye upyukt hain. yahan par har kahani ka likhit evam maukhik sansakran uplabdh hai , jisse har ek bacchon ko kahani padhne evam samjhne me asani ho or kahani ka anand liya ja sake.
एक दिन नगर कोतवाल एक व्यक्ति को पकड़कर दरबार में ले आया। राजा कृष्णदेव के सामने उसका अपराध सुनाते हुए कहा- “महाराज , यह आदमी बहुत मनहूस है-इसकी वजह से नगर के लोगों को बड़ी तकलीफें होती हैं। सैकड़ों लोगों की शिकायतें आ चुकी हैं एक की शिकायत है कि वह अपनी बेटी की सगाई लेकर जा रहा था, सुबह-सुबह इसकी सूरत देख ली तो सगाई टूट गयी। दूसरे की शिकायत है कि वह शिकार को जा रहा था, शिकार पर निकलते ही इसकी शक्ल देख ली, शिकार तो दूर रहा, घोड़े से गिरकर वह लंगड़ा हो गया। तीसरे की शिकायत है, उसने इसकी शक्ल देख ली तो उसका लड़का मर गयां चौथे की भेंड़ बकरियां मर गयीं, पांचवे के घर में आग लग गयी ।” नगर कोतवाल अन्य लोगों की शिकायतें रखता, इससे पहले ही राजा कृष्णदेव ने हाथ उठाकर कहा- “बस-बस, अब इस व्यक्ति को भी कुछ कहने का मौका दिया जाये।“ फिर घूमकर राजा कृष्णदेव ने लाये गये व्यक्ति से कहा- “बोलो, तुम्हें अपनी सफाई में क्या कहना है -?”
“बन्दा परवर लोग ऐसा कहते हैं, इसलिए मैं अपनी सफाइ में क्या कहूं!” दरबारियों में से किसी ने कहा, “ऐसे मनहूस व्यक्ति को देश निकाला दे दिया जाए, वरना इसकी मनहूसियत का साया पड़ने से जनता को आए दिन तकलीफें भोगनी पड़ेंगी।”
तेनाली रमण खामोश बैठे सही अवसर की प्रतीक्षा कर रहे थे। राजा कृष्णदेव भी ऐसी अंधविश्वास भरी बात स्वीकार करने को तैयार न थे, मगर शिकायतों पर ध्यान भी देना था, सो उन्होंने , कहा- “ठीक है, मैं स्वयं आजमाऊंगा, उसके बाद कोई फैसला करूंगा।“
यह कहकर मनहूस व्यक्ति को उस रात राजा कृष्णदेव ने महल के एक भाग में ठहरा लिया। अगले दिन सुबह उठते ही सबसे पहले मनहूस को जगाकर उसका मुंह देखा। संयोग की बात है कि उस दिन ईरान और इराक के कुछ मेहमान राजा कृष्णदेव के पास राज-काज सम्बन्धित मशवरे के लिए आ गये। उनके साथ राजा कृष्णदेव कुछ ऐसे उलझे कि सुबह गुजर गयी, ना तो अन्न नसीब हुआ ना ही जल।
“शाम को थके-मादे राजा कृष्णदेव आराम करने को लेटे तो उन्हें यह बात ध्यान आयी कि आज तो अन्न-जल नसीब नहीं हुआ। किसी चापलूस दरबारी ने ध्यान दिलाया। यह सब उस मनहूस की शक्ल देखने का नतीजा है। “अब तो राजा कृष्णदेव को भी यकीन आ गया। उन्होंने फौरन दरबार लगावाया मनहूस को दरबार में हाजिर – करने का हुक्म दिया। सजा सुनायी “कल इस मनहूस के – बारे में सजा सुझाई गयी थी कि इसे देश निकाला दे दिया जाये -मगर मेरे विचार से यह सजा कम है, और यह जहां भी जायेगा अन्य लोगों को कष्ट उठाना पड़ेगा जैसा कि मेरे साथ हुआ आज सुबह-सुबह इसका मुंह देखा, सारा दिन बीत गया अन्न, जल नसीब न हुआ। ऐसे मनहूस व्यक्ति के लिये बस एक ही चरा है।
इसे फांसी पर चढ़ा दिया जाये।“ फांसी की सजा सुनते ही मनहूस के चेहरे की हवाइयाँ उड़ गई । यह सुनकर तेनाली रमण ने अपना स्थान छोड़ा।
“तुम्हें कुछ कहना है तेनाली रमण -?” राजा कृष्णदेव ने पूछा। “अगर आपकी ओर से कुछ कहने का हुक्म हो महाराज बन्दा कुछ कहने की इजाजत चाहता है।” “अवश्य- अवश्य…।” “क्या मुझे मनहूस से कुछ पूछने की इजाजत है ।“ तेनाली रमण आगे बढ़ते हुए बोले।
“भाई मनहूस एक बात बताओगे-डरो मत, तुम्हें सजा नहीं मिलेगी बस इतना बता बताओ कि आज सुबह-सुबह तुमने किसका मुंह देखा था? जिसकी मनहूसी के साये में तुम्हें सजा सुनायी गयी।” “हूजुर –महाराज राजा कृष्णदेव ने ही आकर मुझे जगाया था, इनका ही मैंने मुंह देखा था।” “अब आप स्वयं इंसाफ करें हुजूर -! आपने इसका मुंह देखा तो अन्न-जल न मिला, इसने आपका मुंह देखा तो इसे फांसी की सजा सुनने को मिली। यहां गौर तलब बात यह है कि सबसे बड़ा मनहूस कौन हुआ।” राजा कृष्णदेव का चेहरा मुरझा गया।
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