Table of contents
- कक्षा 5 के लिए हिंदी की कहानियाँ (Hindi Story For Class 5)
- पहाड़ों की बेटी: अरुणिमा की उड़ान
- चंद्रावल का चोर
- अँधेरे का दीप
- मोती रानी
- मीना का साहस
- हिमालय का पौधा
- नन्ही परी
- दादा का गाँव
- छाया परी
- नन्ही सी आशा
- चिरागू
- पहाड़ों की गूंज
- कमला का कमाल
- “बेलगोंडा की बेटियां”
- अग्निपथ की छाया में: एक सच्ची कहानी
- बावड़ी वाली अंजना
- हमें हर दिन खुद को चुनौती देने और एक बेहतर इंसान बनने की प्रेरणा देती है.
- मल्लिकार्जुन मनसुखा: एक सच्चे शिक्षक की कहानी
- इरा
- शेखचिल्ली
- ‘वॉटरमैन ऑफ इंडिया’
कक्षा 5 के लिए हिंदी की कहानियाँ (Hindi Story For Class 5)
यूँ ती हिंदी की कहानियाँ सभी बच्चों के लिए जरूरी होती हैं पर कक्षा 5 तक आते आते बच्चों को तर्कपूर्ण कहानियाँ अची लगने लगती हैं, हम आपके लिए लेके आयें हैं ऐसी ही मजेदार हिंदी कहानियाँ.
कक्षा 5 के लिए हिंदी कहानियाँ (Hindi story for class 5)
पहाड़ों की बेटी: अरुणिमा की उड़ान
हिमालय की गोद में बसी अरुणिमा, एक साधारण लड़की थी. बचपन में ट्रेन हादसे में अपना एक पैर गंवाने के बाद भी उसने हार नहीं मानी. दुनिया उसे सहानुभूति की नज़रों से देखती थी, लेकिन अरुणिमा ने खुद को “विकलांग” नहीं, बल्कि “विशेष” माना.
उसने पर्वतारोहण का सपना देखा, जो किसी भी सामान्य इंसान के लिए भी चुनौतीपूर्ण था, अरुणिमा के लिए तो और भी कठिन था. लेकिन अरुणिमा ने हार नहीं मानी. उसने कृत्रिम पैर लगवाया और पर्वतारोहण का कठिन प्रशिक्षण शुरू किया. बर्फीले पहाड़ों पर चढ़ना, कमज़ोर हवा में संतुलन बनाना, ये सब उसके लिए आसान नहीं था. बार-बार गिरकर चोटें लगतीं, लेकिन वह उठती और दोबारा चलती.
2013 में अरुणिमा ने इतिहास रचा दिया. वह दुनिया की पहली महिला पर्वतारोही बनी जिसने माउंट एवरेस्ट को कृत्रिम पैर से फतह किया. इस उपलब्धि ने ना केवल भारत को गौरवान्वित किया, बल्कि दुनिया भर के लोगों को प्रेरित किया.
अरुणिमा यहीं नहीं रुकी. उसने और भी मुश्किल पहाड़ों को फतह किया, सात महाद्वीपों की सबसे ऊंची चोटियों को पार किया. वह अब एक प्रेरक वक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता भी है.
अरुणिमा की कहानी हमें सिखाती है कि हार मानना आसान है, लेकिन चुनौतियों से लड़ना और सपनों को पूरा करना ही असली जीत है. अरुणिमा ने साबित किया कि शारीरिक कमजोरी सीमा नहीं है, दृढ़ इच्छाशक्ति और हौसला हो तो कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है.
“पहाड़ों की बेटी” कक्षा 5 की हिंदी कहानी (hindi story for class 5) की सीख
अरुणिमा की तरह, हम भी अपने जीवन में आने वाली हर चुनौती को एक अवसर के रूप में देख सकते हैं. हम अपनी कमजोरियों को ताकत में बदल सकते हैं और अपने सपनों को पूरा करने के लिए लगातार प्रयास कर सकते हैं. अरुणिमा की कहानी
चंद्रावल का चोर
ठंडी हवाओं के झोंकों के साथ रात गहरा रही थी. राजस्थान के रेतीले इलाके में स्थित छोटे से गाँव, चंद्रावल में सन्नाटा पसरा हुआ था. अचानक, मंदिर की घंटी की तीखी आवाज ने इस सन्नाटे को चीर दिया. पूरे गाँव में हड़कंप मच गया. कुछ ही मिनटों में लोग इकट्ठा हो गए, उनके चेहरों पर भय और जिज्ञासा का भाव था.
मंदिर के पुजारी, पंडित धर्मदास, बेसुध हालत में फर्श पर पड़े थे. उनके माथे पर गहरा घाव था और हाथ में एक फटी हुई चिट्ठी थी. गाँव के मुखिया, भगत सिंह ने चिट्ठी को पढ़ा, चिट्ठी पढ़ कर उसका चेहरा सफेद पड़ गया. वह चिल्लाया, “हमारे गाँव का खज़ाना गायब है!“
खबर गाँव में आग की तरह फैल गई. हर किसी को हर किसी पर शक था, भरोसा किसी पर भी नहीं था. भगत ने गाँव वालों को इकट्ठा किया और कहा, “हमारे बीच ही कोई चोर छुपा है. आज रात हम सबको मिलकर चोर को पकड़ना है.”
गाँव में रहने वाले हर व्यक्ति को शक की निगाहों से देखा जा रहा था. संदेह का घेरा धीरे-धीरे दुकानदार श्याम लाल, कुम्हार भोला और यहां तक कि नई आई शिक्षिका, मीनाक्षी पर भी कसने लगा. लेकिन हरेक का अपना बचाव था, सबने अपनी अपनी सफाई पेश की. रात बीत रही थी, पर चोर का कोई सुराग नहीं मिला.
अचानक, गाँव के बाहर बने एक सूखे कुएं से चीखने की आवाज आई. सब लोग दौड़कर वहां पहुंचे. कुएं में चोर फंसा हुआ था, वह घायल था, हाथ में मशाल पकड़े हुए. वह कोई और नहीं, बल्कि गाँव का सबसे भरोसेमंद आदमी, दयाल था.
सब स्तब्ध रह गए. दयाल ने बताया कि पंडित धर्मदास को चोट पहुंचाकर उसने खजाना चुरा लिया था, पर भागते समय कुएं में गिर गया. उसने बताया कि लालच ने उसे गलत रास्ते पर ले जाया.
“चंद्रावल का चोर” कक्षा 5 की हिंदी कहानी (hindi story for class 5) की सीख
इस सच्ची घटना से प्रेरित कहानी हमें सिखाती है कि दिखावे में कुछ और, हकीकत में कुछ और होता है. कभी भी किसी पर जल्दबाजी में शक नहीं करना चाहिए और लालच इंसान को गलत रास्ते पर ले जा सकता है. साथ ही, यह कहानी हमें यह भी समझाती है कि अपराध चाहे कितना भी छिपाए, सच्चाई एक न एक दिन सामने आ ही जाती है.
अँधेरे का दीप
ठंडी हवाएं गंगा के घाटों को सहला रही थीं. वाराणसी की प्रसिद्ध गलियों में घुसते भगत ने अपनी पुरानी मोटरसाइकिल रोकी. वो एक पत्रकार था, और उसे एक गुमनाम खत मिला था, जिसने काशी विश्वनाथ मंदिर में होने वाली बड़ी चोरी की बात लिखी थी. भगत को पता था, ये कोई मामूली खबर नहीं हो सकती.
मंदिर के पुजारी, पंडित शिवानंद, जाने-माने धर्मगुरु थे. सूत्रों के मुताबिक, मंदिर में सदियों पुराना, अनमोल हीरा जड़ित हनुमान जी की मूर्ति थी, जिसकी कीमत करोड़ों में थी. खत दावा करता था कि चोरी उसी रात होने वाली है.
भगत ने कुछ तस्वीरें लीं और स्थानीय पुलिस से संपर्क किया. इंस्पेक्टर विक्रम ने खत को हल्के में लिया, “ये कोई ऊपरी हवा होगी, बाबू. मंदिर की सुरक्षा अत्याधुनिक है.” भगत को असुरक्षा का अहसास हुआ. उसने रात भर मंदिर के आसपास छिपकर निगरानी की.
धीरे-धीरे रात गहराई. मंदिर के ऊपर हेलिकॉप्टर से तेज रोशनी पड़ी. कुछ शख्स दीवार फांदकर अंदर घुसे. भगत ने तस्वीरें लीं और इंस्पेक्टर को कॉल किया. इस बार विक्रम चौकन्ना हो गया. उसने तुरंत दल-बल के साथ मंदिर की घेराबंदी कर दी.
चोर बाहर निकलने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन पुलिस उन्हें घेर चुकी थी. गोलीबारी शुरू हुई. एक चोर घायल हुआ, बाकी पकड़े गए. गिरफ्तार हुए लोगों में मंदिर के सुरक्षाकर्मी भी थे. पूछताछ में पता चला कि उन्होंने लालच में चोरों से हाथ मिला लिया था.
भगत ने खबर लिखी, जिसने पूरे देश में तहलका मचा दिया. पंडित शिवानंद ने भगत की तारीफ की और कहा, “तुमने न सिर्फ चोरी रोकी, बल्कि भ्रष्टाचार को भी बेनकाब किया.“
कुछ दिन बाद, भगत को एक और गुमनाम खत मिला. उसमें लिखा था, “अंधेरे में कितनी ही साजिशें पनपती हैं, लेकिन सच्चाई का एक दीपक उन्हें धुआं-धुंआ कर देता है. अपना काम जारी रखो.“
भगत मुस्कुराया. वो जानता था, अंधेरे में भले ही कितना ही अंधकार हो, सच्चाई की रोशनी उसे चीरकर ही निकलेगी. और वो इसी रोशनी का दीपक बनकर रहना चाहता था.
“अँधेरे का दीपक” कक्षा 5 की हिंदी कहानी (hindi story for class 5) की सीख
अगर हम ओनी धुन के पक्के है तो कोई भी कार्य हम अकेले भी कर सकते हैं
मोती रानी
रात के सन्नाटे में जयपुर के गुलाबी शहर में घुसपैठ की हलचल थी. मशहूर हकीम शफिक की हवेली की छत पर दो साए फुर्ती से सरक रहे थे. चाँद की चांदनी उनकी काली पोशाकों को छुपा नहीं पा रही थी. वे खिड़की के पास पहुंचे और कांच फोड़कर अंदर घुसे. हवेली के भीतर एकदम ही खामोशी पसरी थी.
भीतर घुसकर, उन्हें हकीम शफिक का कमरा खोजना था, जहां उनके पास दुर्लभ हीरे का हार ‘मोती रानी‘ छुपा था. हार को खोजने के लिए उन्हें हकीम की डायरी से सुराग खोजना था. डायरी में हाथों से लिखे नोट्स, अजीबोगरीब प्रतीकों और तारीखों का जाल था. एक गलती और वे भटक जाते.
उसी समय, हवेली के बाहर से घोड़ों की टाप की आवाज़ सुने पड़ी. पुलिस! उन्हें सिपाही पकड़ने के लिए आ रहे थे. दोनों घुसपैठियों में से एक, काजल, घबराने लगी. लेकिन उनके सरगना, आकाश, शांत रहा. उसने जल्दी से कमरे को खोजना शुरू किया और एक दीवार पर छिपी तस्वीर ढूंढ निकाली. उस तस्वीर में हकीम एक गुफा के सामने खड़ा था. आकाश को समझ आ गया था – डायरी के रहस्य और हार, गुफा में ही छिपे हैं.
पुलिस को चकमा देकर वे हवेली से निकल भागे. जंगल के रास्तों पर दौड़ते हुए, उन्होंने देखा कि एक स्थानीय लड़की, मीना, उनका पीछा कर रही है. हार थमा देने के बदले में, उन्होंने मीना को गुफा की ओर ले जाने का लालच दिया. मीना, जो हकीम का बहुत सम्मान करती थी, उनके मंसूबों को जानकर हैरान रह गई. उसने मजबूरन उन्हें रास्ता दिखा दिया.
गुफा अंधेरी और नमी से भरी हुई थी. खतरनाक रास्तों और जालों को पार करते हुए वे अंत में एक कक्ष में पहुंचे, जहां ‘मोती रानी‘ की चमक ने उनकी आंखें चौंधिया दी. लेकिन ठीक उसी समय, जमीन हिल उठी. गुफा का छिपा रास्ता ध्वस्त हो गया था. वे फंस गए!
अब उनके सामने सिर्फ तीन रास्ते थे – हार छोड़कर बचना, जाल बिछाने वाले आकाश से लड़ना या मीना की मदद से निकलने का रास्ता ढूंढना. इस त्रिकोणीय लड़ाई में कौन जीतेगा और ‘मोती रानी‘ किसके हाथ लगेगी? ये रहस्य जयपुर की रात में ही छिपा होगा, लेकिन उनकी सांसें थम रही थीं और समय उनके खिलाफ चल रहा था…
क्या आप जानना चाहते हैं कि उनकी कहानी का क्या हुआ?
मीना का साहस
राजस्थान के रेगिस्तान के बीचों-बीच स्थित गाँव, मरुदूत, सूखे की चपेट में था. गाँव वाले परेशान थे, खेत सूख रहे थे, उम्मीदें मुरझा रही थीं. लेकिन 12 साल की मीना के दिल में उम्मीद की छोटी सी चिंगारी जल रही थी. एक दिन, गाँव के बुजुर्ग बाबा रामदास ने उसे एक पुरानी किताब दिखाई, जिसमें वर्षा लाने के लिए प्राचीन जल संरक्षण तकनीक का वर्णन था.
मीना ने उत्साह से किताब पढ़ी और गाँव वालों को समझाया. पहले तो सब हँसे, “एक बच्ची हमें क्या सिखाएगी?” पर मीना हार नहीं मानी. उसने बार-बार कोशिश की, समझाया, प्रेरित किया. धीरे-धीरे, कुछ लोग माने. उन्होंने मिलकर गाँव के बाहर तालाब की खुदाई शुरू की.
महीनों की मेहनत के बाद तालाब बनकर तैयार हुआ. बारिश का कोई अता-पता नहीं था, पर मीना और उसके साथी हार नहीं माने. उन्होंने बारिश का पानी इकट्ठा करने के पुराने तरीके अपनाए – छतों पर मिट्टी की परत बिछाई, पेड़ लगाए, पानी बचाने की आदत डाली.
एक शाम, हवा बदली, आसमान में बादल छाए और तेज बारिश होने लगी. खुशी की लहर गाँव में दौड़ पड़ी. सूखे खेत हरे हो गए, चेहरों पर हंसी लौट आई. मीना की कोशिश कामयाब हुई थी. उसने साबित कर दिया था कि दृढ़ संकल्प और सामूहिक प्रयास से कोई भी मुश्किल आसान हो सकती है.
मीना की कहानी पूरे राजस्थान में फैल गई. वह सूखे से लड़ने वाली “छोटी जल परी” के नाम से जानी गई और दूसरों को भी प्रेरित करने लगी.
“मीना का साहस” कक्षा 5 की हिंदी कहानी (hindi story for class 5) की सीख
इस कहानी ने हमें सिखाया कि उम्र या अनुभव कोई मायने नहीं रखते, अगर जज्बा हो तो कोई भी सपना पूरा किया जा सकता है. तो चलिए, हम भी मीना से सीखते हैं, दृढ़ संकल्प और प्रयास से अपनी सूखी ज़िंदगी में भी उम्मीद की बारिश लाते हैं.
हिमालय का पौधा
हिमालय की बर्फीली ऊंचाइयों पर एक छोटा सा पौधा जमीन से अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहा था. चारों ओर ठंडी हवाएं चल रही थीं, मोटी बर्फ जमी हुई थी, और भगत की किरणें मुश्किल से ही उसकी पत्तियों तक पहुंच पाती थीं. लेकिन वह पौधा हार नहीं मानता था. उसकी जड़ें जमीन में गहराई तक उतरती जा रही थीं, भगत की आखिरी किरण को सोखने की कोशिश करती थीं.
एक दिन, उसके पास एक तितली उतरी. “तुम यहां क्यों हो, छोटे से पौधे?” उसने अपनी रंगीन पंख फड़फड़ाते हुए पूछा.
पौधा बोला, “मैं अपना घर बनाना चाहता हूं, एक ऐसा घर जहां फूल खिलें और पक्षी आकर गाएं.”
तितली हंस दी, “यह मूर्खता है! यहां कोई भी फल-फूल नहीं उगा सकता. तुम बर्बाद हो जाओगे.”
लेकिन पौधे ने उसका मजाक नहीं उड़ाया. उसने कहा, “हो सकता है आप सही हों, तितली, लेकिन मैं कोशिश करूंगा. हर फूल, हर पेड़ को तो कहीं से शुरुआत करनी पड़ती है, है ना?”
तितली चली गई, पर पौधा डटा रहा. साल बीतते गए. वह धीरे-धीरे बढ़ता गया, अपनी जड़ों को मजबूत करता गया. हवाओं से लड़ता, बर्फ को सहता, और भगत की कम रोशनी में भी जिंदा रहने की कोशिश करता.
फिर एक दिन, उसके तने पर एक छोटी कली फूटी. कली बढ़ती गई, खिलती गई, और अंत में एक खूबसूरत नीला फूल बनकर खिल गई. उसकी खुशबू पूरे पहाड़ पर फैल गई. तितली उड़कर उसके पास आई, उसका रंग देखकर दंग रह गई.
“तुमने कैसे किया?” उसने पूछा.
पौधा मुस्कुराया, “मैंने कभी उम्मीद नहीं छोड़ी. मैंने सब कुछ सोखा, जमीन की मिट्टी को, हवा की दिशा को, यहां तक कि बारिश की बूंदों को भी. मैंने धीरे-धीरे सीखा, धीरे-धीरे जिया.”
तितली ने उसकी तारीफ की और उड़कर दूसरे फूलों, पक्षियों और जानवरों को खबर ला दी. जल्द ही, उस छोटे से बर्फीले पहाड़ पर जीवन की रौनक लौट आई. फूल खिलने लगे, पक्षी आकर झूमने लगे, और छोटे जानवर उस फूल के इर्द-गिर्द खुशी से कूदने लगे.
“हिमालय का पौधा” कक्षा 5 की हिंदी कहानी (hindi story for class 5) की सीख
यह छोटा सा पौधा हमें प्रकृति की ताकत और धैर्य की सीख देता है. यह हमें सिखाता है कि किसी भी मुश्किल हालात में उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए, क्योंकि धीरे-धीरे धीरे-धीरे, अपनी मेहनत से हम भी सूखे, बंजर जमीन पर जीवन बिखेर सकते हैं.
नन्ही परी
चंबल नदी के किनारे बसा हुआ था छोटा सा गाँव, नीमचौरा. यहाँ की हवा में मिट्टी की खुशबू घुली रहती थी और पेड़ों के झुरमुट पंछियों के स्वर से गूंजते थे. गाँव की बेटी, अंजना, इन सब के बीच प्रकृति की सच्ची कलाकार थी. उसे पत्तियों से आकार देना, लकड़ी से खिलौने बनाना और मिट्टी से मूर्तियाँ गढ़ना बेहद पसंद था.
एक दिन, अंजना को नदी के किनारे एक अजीब सी चट्टान मिली. वह चमकदार थी और उस पर अजीब निशान थे, मानो कोई प्राचीन चित्रकारी हो. वह उसे घर ले आई और उससे खिलवाड़ करने लगी. तभी, उस चट्टान से एक नन्ही सी परी प्रकट हुई! उसकी पंख चांदनी की तरह चमकते थे और आवाज झरने जैसी सुरीली थी.
परी का नाम था चांदनी. उसने बताया कि वह इस गाँव की रक्षक थी, मगर गाँव की बेरुखी से उसकी शक्तियाँ क्षीण हो रही थीं. अंजना हैरान रह गई. उसने पूछा, “गाँव की बेरुखी? हम तो प्रकृति से प्यार करते हैं!”
चांदनी ने दुखी होकर कहा, “तुम तो प्यार करते हो, लेकिन दूसरे नहीं. वे पेड़ काटते हैं, नदी को गंदा करते हैं और पशुओं को सताते हैं. इससे मेरी शक्ति कम हो जाती है और गाँव पर खतरा मंडराता है.”
अंजना ने चांदनी से मदद का वादा किया. उसने गाँव वालों को प्रकृति से जुड़ने के लिए कहानियाँ सुनाई, चित्र बनाए और नाटक खेले. उसने बच्चों को पेड़ लगाना सिखाया और बड़ों को नदी साफ करने के लिए प्रेरित किया. धीरे-धीरे, गाँव वालों की सोच बदलने लगी. उन्होंने प्रकृति की रक्षा करना शुरू किया.
जैसे-जैसे गाँव हरा-भरा हुआ, चांदनी की शक्तियाँ लौट आईं. उसने अंजना को धन्यवाद दिया और कहा, “तुमने सिर्फ गाँव को नहीं, बल्कि मुझे भी बचाया है.” फिर वह चट्टान बनकर वापस नदी के किनारे चली गई.
“नन्ही परी” कक्षा 5 की हिंदी कहानी (hindi story for class 5) की सीख
अंजना ने प्रकृति से प्यार का पाठ सीखा. अब वह न सिर्फ गाँव की कलाकार थी, बल्कि उसकी रक्षक भी बन गई थी. और चांदनी की चट्टान गाँव वालों को हमेशा याद दिलाती रहती थी कि प्रकृति से प्यार ही सच्ची खुशहाली का रास्ता है.
दादा का गाँव
नीम की छाँव में बैठी अंजलि ने गौर से देखा, पत्तियों के बीच छुपी एक छोटी सी चिड़िया, टहनियों पर फुदक रही थी. उसकी चोंच में एक कीड़ा था, जिसे वह बड़े प्यार से अपने घोंसले में ले जा रही थी. अंजलि मुस्कुराई, प्रकृति का यह छोटा सा नज़ारा उसे हमेशा रोमांचित कर देता था.
कुछ समय पहले तक शहर की चकाचौंध में खोई अंजलि को प्रकृति से कोई खास लगाव नहीं था. लेकिन एक दिन, जिंदगी की उलझनों से तंग आकर वो अपने दादा के गाँव आ गई. गाँव की शांत हवा, हरे-भरे खेत और नीला आसमान ने उसे एक नया नज़रिया दिया.
दिनभर प्रकृति के आगोश में रहकर अंजलि ने पेड़ों से बातें की, नदी के बहते पानी को महसूस किया और भगत ढलते हुए देखा. उसने सीखा कि प्रकृति सिर्फ सुंदर नज़ारा नहीं, बल्कि एक सिखाऊ किताब है.
एक शाम, खेत में काम करते हुए उसने देखा कि एक किसान अपनी फसल को बचाने के लिए कीटनाशक का छिड़काव कर रहा था. चिड़ियों के बेचैन चहचहाने से उसे अहसास हुआ कि कीटनाशक न सिर्फ कीड़ों को बल्कि प्रकृति के पूरे संतुलन को बिगाड़ रहा है.
अगले दिन, अंजलि ने गाँव वालों को बताया कि प्रकृति से छेड़छाड़ करने के क्या नुकसान हो सकते हैं. उसने उन्हें जैविक खेती के बारे में बताया और बीज बांटे. धीरे-धीरे गाँव वालों ने भी प्राकृतिक खेती अपनानी शुरू कर दी.
कुछ सालों में, गाँव बदल गया. पहले की बंजर ज़मीन हरी-भरी हो गई, पेड़ों की संख्या बढ़ गई, चिड़ियों की चहचहाहट हर तरफ गूंजने लगी. प्रकृति ने अंजलि और गाँव वालों के प्रयासों का फल दिया था.
अंजलि ने गाँव में ही रहकर बच्चों को प्रकृति से प्यार करने की सीख देना शुरू किया. उसने उन्हें पेड़ लगाना, पक्षियों को दाना देना और पानी बचाना सिखाया. अंजलि अब सिर्फ अंजलि नहीं थी, बल्कि “प्रकृति की परी” के नाम से जानी जाती थी.
हर शाम, नीम के पेड़ के नीचे बैठकर अंजलि को गर्व होता था. उसने सीखा था कि प्रकृति से प्रेम करना ही सच्ची खुशी का रास्ता है
“दादा का गाँव” कक्षा 5 की हिंदी कहानी (hindi story for class 5) की सीख
हम प्रकृति से जितना लेंगे, उतना ही उसका सम्मान करना भी हमारा कर्तव्य है. और ये ज्ञान, उसने उस छोटी सी चिड़िया से पाया था, जिसने उसे प्रकृति की भाषा सुनने का तरीका सिखाया था.
छाया परी
रात के अंधेरे में, चांदनी से नहाए हिमालय की चोटियों पर एक रहस्य छुपा था. एक चमकदार नीला पत्थर, सदियों पुराना, धरती के गर्भ से निकला था. इस पत्थर में जादुई शक्तियां थीं, जो चाँद की चांदनी की रोशनी में जागती थीं. अफवाहों के मुताबिक, यह पत्थर किसी को भी अदृश्य (गायब) बना सकता था.
गाँव में रहने वाली सीधी-सादी लड़की, मीना, इन अफवाहों से मनो खीचीं जाती थी. उसकी जिज्ञासा उसे पत्थर की खोज में हिमालय तक ले गई. खतरनाक रास्तों को पार करते हुए, वह बर्फ से ढके पहाड़ों पर चढ़ी, जंगली जानवरों का सामना किया और तूफानों से लड़ी. मीना की हिम्मत देखकर पहाड़ भी नतमस्त हुए और उसे एक बूढ़े साधु ने रास्ता दिखाया.
आखिरकार, मीना गुफा तक पहुंची, जहां नीला पत्थर चमक रहा था. लेकिन उसे पाने के लिए एक पहेली को सुलझाना था. पहेली के जवाब में मीना ने झूठ का सहारा नहीं लिया, उसने सच्चाई और ईमानदारी से जवाब दिया. नीला पत्थर उसकी ईमानदारी से खुश हुआ और उसकी हथेली में आ गया.
अदृश्य होने की शक्ति पाकर मीना खुश नहीं थी. उसने देखा कि कैसे सत्ता में बैठे और अमीर लोग अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल कर रहे थे. उसने फैसला किया कि अपनी इस शक्ति का इस्तेमाल अच्छे के लिए करेगी. वह अत्याचारियों के खिलाफ लड़ी, भ्रष्ट अधिकारियों को बेनकाब किया और गरीबों की मदद की. अदृश्य रहकर भी, मीना गाँव की रक्षक बन गई, जिसे लोग “छाया परी” के नाम से जानते थे.
एक दिन, एक दुष्ट जादूगर ने नीला पत्थर चुरा लिया और दुनिया को अंधकार में डूबोने की कोशिश की. मीना को उसे रोकना था. लेकिन जादूगर बहुत शक्तिशाली था. मीना ने सोचा कि अदृश्य रहकर उसे नहीं हराया जा सकता. उसने जादूगर के सामने आकर उसे चुनौती दी. उनकी लड़ाई दिन-रात चली, लेकिन मीना ने हार नहीं मानी. उसने अपनी ताकत को एकजुट किया और सच्चाई की शक्ति से जादूगर को हरा दिया.
नीले पत्थर ने मीना को चुना था, क्योंकि उसके पास सच्चाई की शक्ति थी, मीना ईमानदारी और लोगों की भलाई करने की इच्छा रखती थी. यह सब देखकर ही नीले पत्थर ने सही रास्ता चुना ताकि उसकी शक्ति का कोई गलत इस्तेमाल ना कर सके.
“छाया परी ”कक्षा 5 की हिंदी कहानी (hindi story for class 5) की सीख
इस कहानी ने सबको सीख दी कि असली जादू अदृश्य होने में नहीं, बल्कि अच्छे कर्म करने और सच्चाई पर चलने में होता है. और मीना, “छाया परी”, हमेशा लोगों को याद दिलाती रही कि सच्ची ताकत दिल के अंदर होती है.
नन्ही सी आशा
तब से सदियाँ बीत चुकी हैं, जब धरती माता के बालों में आकाश के नीले फूल खिलते थे. अब शहरों के जंगल धरती को ढक चुके थे और सूरज की रोशनी भी धुंध में खो जाती थी. इन्हीं जंगलों के बीच, एक छोटी लड़की, आशा, रहती थी. उसकी आँखों में अभी भी वो चमक थी, जो वह कहानियों में सुनती थी, जब धरती हरी-भरी थी और आसमान साफ था.
एक दिन, आशा को जंगल में एक चमकता हुआ पत्थर मिला. उसे छूते ही, पत्थर ने एक अजीबोगरीब रोशनी बिखेरी और एक बूढ़ी परी सामने आई. परी ने बताया कि वो सदियों से धरती माता के खोये हुए ज्ञान की रक्षा कर रही थी. धरती माता बीमार थी और केवल धरती के दिल से निकला जादुई फूल ही उसे ठीक कर सकता था.
आशा, धरती को बचाने निकल पड़ी. परी ने उसे बताया कि फूल पाने के लिए उसे तीन परीक्षा पास करनी होंगी. पहली थी अंधेरे जंगल को पार करना, जहां भ्रम और डर रहते थे. आशा ने अपने हौसले की रोशनी से अंधेरे को दूर किया. दूसरा था चांदी की नदी को पार करना, जहां लालच का तूफान उठता था. आशा ने लालच से किनारा कर लिया और नदी को शांत कर दिया. तीसरा था पत्थर के पहाड़ को पार करना, जहां निराशा का बादल छाया था. आशा ने अपनी उम्मीद से पहाड़ को तोड़ दिया.
आखिरकार, आशा धरती के दिल तक पहुंची, जहां जादुई फूल खिलता था. पर फूल को लेने के लिए उसे एक बड़ा त्याग करना था – उसे अपना घर, जंगल को छोड़कर जाना था. आशा ने आंसू भरे मन से त्याग किया और फूल लेकर परी के पास लौटी.
परी ने फूल को धरती माता के सीने पर रखा. धरती धीरे-धीरे हरी होने लगी, पेड़ उगने लगे और आसमान साफ हो गया. आशा ने आखिरी बार अपने जंगल को देखा और एक मुस्कान के साथ आगे बढ़ गई. उसे पता था कि उसके त्याग से धरती ठीक हो गई है और अब उसे नए जंगल उगाने होंगे.
“नन्ही सी आशा” कक्षा 5 की हिंदी कहानी (hindi story for class 5) की सीख
आशा की कहानी बच्चों को सिखाती है कि सपनों को पूरा करने के लिए कभी-कभी बड़े त्याग करने पड़ते हैं. लेकिन हर त्याग के बाद एक नई शुरुआत होती है, जिसे उम्मीद और हौसले से बनाया जा सकता है. और हो सकता है, एक दिन आशा फिर अपने जंगल को लौट पाए, जहां धरती माता की हरी गोद में, आकाश के नीले फूल खिलते रहेंगे.
चिरागू
रात के आसमान में, जहां तारे हंसी मजाक करते थे और बादल रूई के महल बनाते थे, वहीं रहता था एक छोटा सा चांद, चिरागू. चिरागू बाकी तारों से अलग था, वो चमकता नहीं था, बल्कि हल्की गुलाबी रौशनी देता था. वो खुद को अधूरा समझता था, बाकी तारों की तरह चमकने की ख्वाहिश रखता था.
एक रात, चिरागू ने एक नन्ही परी को तारों के बीच उड़ते देखा. वो हंसती-खेलती आकाशगंगा के सारे कोनों में जा रही थी. चिरागू ने उससे पूछा, “तुम कौन हो और इतनी खुश क्यों हो?”
परी मुस्कुराई और बोली, “मैं एक सपनों की परी हूं. मैं बच्चों के सपनों को इकट्ठा करती हूं और उन्हें पूरा करने के लिए तारामंडल में ले जाती हूं.”
चिरागू ने पूछा, “क्या मैं भी सपनों को पूरा कर सकता हूं?”
परी ने उसकी गुलाबी रौशनी देखी और कहा, “तुम तो खुद एक खास सपना हो! तुम्हारी रोशनी हल्की और कोमल है, जो बच्चों को डराती नहीं, बल्कि उन्हें सुकून देती है. तुम बच्चों को मीठे सपने दिखा सकते हो!”
चिरागू खुशी से झूम उठा. अब वो अपनी गुलाबी रौशनी को एक खासियत मानता था. रातों को वो बच्चों के कमरों में झांकता और उनकी खिड़कियों से उनकी सोच को पढ़ लेता. फिर वो उन्हें ऐसे सपने दिखाता, जो उनके डर को मिटाते और उनकी ख्वाहिशों को पंख लगाते.
एक बार, एक छोटी बच्ची रो रही थी. उसे अंधेरे का डर था. चिरागू ने उसकी खिड़की से झांका और उसकी सोच पढ़ी. उसने बच्ची को एक सपना दिखाया, जहां वो तारों से मिलने के लिए जा रही है. सपने में वो चमकते तारों से बात करती थी, वो हंसती थी, वो खेलती थी.
बच्ची सुबह मुस्कुराते हुए उठी. उसे अब अंधेरे का डर नहीं लगता था. वो जानती थी कि तारे हमेशा उसकी देखभाल कर रहे हैं.
इस तरह, चिरागू ने कई बच्चों के सपनों को पूरा किया. वो अब सिर्फ एक चांद नहीं था, बल्कि “सपनों का चांद” था. उसकी गुलाबी रौशनी रातों को नहीं, बल्कि बच्चों के दिलों में हमेशा चमकती रहती थी.
आप भी रात को आकाश में जब गुलाबी रौशनी देखें, तो याद रखिएगा, वो सिर्फ चांद नहीं, सपनों का चांद है, जो बच्चों को मीठे सपने दिखाता है और उन्हें खुशियों की दुनिया में ले जाता है.
“चिरागू” कक्षा 5 की हिंदी कहानी (hindi story for class 5) की सीख
कभी कभी हमे छोटी सी रौशनी(मदद) भी बड़े से अँधेरे (डर) से भर निकलने का रास्ता दिखा देती है
पहाड़ों की गूंज
हिमालय की बर्फीली चोटियों के बीच बसा था छोटा सा गांव, मल्लीगांव. यहां रहते थे रवि और गीता, दो युवा जो पहाड़ों की तरह ही मजबूत और दृढ़ थे. रवि, कुशल कारीगर, लकड़ी से खूबसूरत कलाकृतियां बनाता था. गीता, जड़ी-बूटियों की जानकार, गांव के लोगों को बीमारियों से लड़ने में मदद करती थी.
एक सर्द रात, तेज हिमस्खलन (बर्फ का खिसकना) ने गांव को तबाह कर दिया. कई घर ढह गए, फसलें नष्ट हो गईं, और कुछ लोगों की जान चली गई. रवि और गीता ने भी अपना सब कुछ खो दिया, लेकिन उसने हार नहीं मानी. उन्होंने गांव वालों को इकट्ठा किया और कहा, “हमें मिलकर अपना गांव फिर से बनाना है.”
उन्होंने सबसे पहले खाने-पीने की व्यवस्था की. जंगल से जंगली फल और जड़ी-बूटियां लाए. गीता ने अपने ज्ञान से लोगों का इलाज किया. रवि ने लकड़ी के टुकड़ों से बर्तन, चम्मच और खिलौने बनाए, जिन्हें बेचकर वे जरूरी चीजें खरीद सके.
धीरे-धीरे, गांव के लोग भी जुट गए. उन्होंने पत्थर इकट्ठे कर घर बनाए. खेतों को साफ किया और फिर से बोया. कुछ लोगों ने पर्यटकों को घुमाने का काम शुरू किया.
कुछ सालों में, मल्लीगांव पहले से भी ज्यादा खूबसूरत और मजबूत बन गया. पर्यटक गांव की सुंदरता और लोगों की मेहमाननवाजी से आकर्षित होकर आने लगे. रवि की कलाकृतियां दूर-दूर तक मशहूर हो गईं. गीता की जड़ी-बूटी की दवाएं आसपास के गांवों में भी पहुंचने लगीं.
यह कहानी 2013 में उत्तराखंड में आए भयानक बाढ़ से प्रेरित है. तब भी गांव वालों ने हार नहीं मानी थी. मिलकर उन्होंने अपना गांव फिर से बनाया था. रवि और गीता जैसे किरदार कई लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिन्होंने हिम्मत और दृढ़ संकल्प से खुद को और अपने गांव को संभाला था.
“पहाड़ों की गूँज”कक्षा 5 की हिंदी कहानी (hindi story for class 5) की सीख
इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि मुश्किलों में भी हार नहीं माननी चाहिए. दृढ़ संकल्प और एकजुटता से कोई भी चुनौती को पार किया जा सकता है. साथ ही, यह कहानी हमें उन लोगों को याद दिलाती है, जिन्होंने आपदा के समय अपने हौसले से उम्मीद की ज्योति जगाई थी.
कमला का कमाल
दिसंबर, 2004. हिंद महासागर में आई भयानक सुनामी की कहानी हर किसी के दिल में आज भी छुपी है. इस कहानी में शामिल है एक छोटा सा गांव, नागपट्टिनम, और वहां की एक बहादुर महिला, कमला.
कमला, मछुआरे की पत्नी थी. उस रात, जब समुद्र गरजने लगा और जमीन हिलने लगी, उसने तुरंत समझ लिया कि कुछ अनहोनी हो रही है. हालांकि गांव के कुछ लोग इसे भूकंप समझकर नजरअंदाज कर रहे थे, कमला को सुनामी के खतरे का पुराना ज्ञान था.
वह एक पेड़ पर चढ़ी और जोर-जोर से चिल्लाने लगी, “सुनामी आ रही है! ऊंचाई पर जाओ!” लोग पहले तो उसकी बात नहीं माने, पर सुनामी की लहरें आते ही सब समझ गए. कमला की दूरदर्शिता और साहस ने न केवल उसका जीवन बचाया, बल्कि पूरे गांव को भी सतर्क कर दिया.
लोग कमला के पीछे भागे और ऊंचाई पर पहुंचे. सुनामी की लहरें गांव को तबाह कर गईं, घरों को बहाकर ले गईं, लेकिन पेड़ पर चढ़े लोग सुरक्षित रहे. सुबह जब धूल मिट गई, तो तबाही का मंजर सामने था. कमला ने बिना समय गंवाए बचाव कार्य शुरू कर दिया. उसने पानी में फंसे लोगों को निकाला, घायलों को प्राथमिक उपचार दिया और भोजन का इंतजाम किया.
कमला की बहादुरी और नेतृत्व ने पूरे गांव को संभाला. उसने स्थानीय अधिकारियों से संपर्क किया और मदद के लिए गुहार लगाई. कुछ ही दिनों में, राहत कार्य शुरू हो गया और गांव को फिर से बनाने की कोशिशें शुरू हो गईं.
कमला की कहानी पूरे देश में फैल गई. उसे “सुनामी की वीरांगना” कहा गया. उसने न केवल अपने गांव को बचाया, बल्कि दूसरों को भी आपदाओं के प्रति जागरूक होने का संदेश दिया.
आज, नागपट्टिनम सुनामी से उबर चुका है. वहां एक स्मारक बना है, कमला की बहादुरी को याद दिलाता हुआ. वह न केवल एक गांव की वीर है, बल्कि प्राकृतिक आपदाओं से लड़ने की प्रेरणा भी है.
“कमला का कमाल” कक्षा 5 की हिंदी कहानी (hindi story for class 5) की सीख
कमला की कहानी हमें सिखाती है कि साहस, दूरदर्शिता और दृढ़ संकल्प से कोई भी मुश्किल आसान हो सकती है.
“बेलगोंडा की बेटियां”
ठंडी हवाओं के झोंके झारखंड के जंगलों में सरसराहट कर रहे थे. साल 2006 था, और नक्सलवाद की आग पूरे राज्य को अपने चपेट में ले रही थी. इसी आग में झुलस रहा था गाँव बेलगोंडा, जहाँ रहती थीं दो बहनें, अनीता और ललिता. उनके पिता नक्सलियों द्वारा उठाए गए थे और भाई की मौत भी उसी संघर्ष में हो चुकी थी.
गाँव में डर का साया था, कोई कुछ बोलने की हिम्मत नहीं करता था. लेकिन अनीता और ललिता का दिल ग़ुस्से और बदला लेने की आग से भरा था. उन्होंने फैसला किया कि ये अन्याय अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. उन्होंने गाँव की अन्य महिलाओं को इकट्ठा किया और उनसे अपने दर्द को बांटा. एक-एक करके, महिलाओं में भी ज्वाला लगी.
अनीता, जो पढ़ी-लिखी थी, गाँव की बच्चियों को स्कूल ले जाने लगी. स्कूल बंद कर दिया गया था, पर वो उन्हें घर में ही पढ़ाती. शिक्षा से ही नक्सलवाद के काले जाल से निकलने का रास्ता वो देखती थी. ललिता, जो बहादुर थी, महिलाओं को संगठित करती. वो हथियार नहीं उठाती थीं, पर उनका विरोध शक्तिशाली था. वो नक्सलियों से बात करतीं, उन्हें समझातीं कि हिंसा से कुछ हासिल नहीं होगा.
धीरे-धीरे, उनकी हिम्मत का असर होने लगा. कुछ ग्रामीण नक्सलियों से अलग हो गए. बच्चों को स्कूल जाने की हिम्मत मिली. महिलाओं ने गाँव में छोटे कारोबार शुरू किए, आत्मनिर्भर बनीं. अनीता और ललिता की कहानी पूरे इलाके में फैल गई. उन्हें “बेलगोंडा की बेटियां” के नाम से जाना जाने लगा.
नक्सलवादियों ने उन्हें रोकने की कोशिश की, धमकियां दीं. लेकिन वो झुकी नहीं. उनके हक की लड़ाई लगातार जारी रही. आखिरकार, उनकी निरंतर कोशिशों का फल मिला. कुछ सालों में, नक्सलवाद की पकड़ ढीली पड़ने लगी और बेलगोंडा शांति की तरफ बढ़ने लगा.
आज, बेलगोंडा खुशहाल गाँव है. वहां स्कूल और अस्पताल चल रहे हैं. नक्सलवाद की छाया हट गई है और इसकी वजह हैं “बेलगोंडा की बेटियां” – अनीता और ललिता, जिन्होंने अपनी हिम्मत और त्याग से पूरे गाँव को बदलकर दिखा दिया.
“बेलगोंडा की बेटियां” कक्षा 5 की हिंदी कहानी (hindi story for class 5) की सीख
यदि हम अन्याय के खिलाफ आवाज ताकत से आवाज़ उठाते हैं, तो हमारी ताकत से हम पहाड़ों को भी हिला सकती है.
अग्निपथ की छाया में: एक सच्ची कहानी
साल 2017, जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले का एक छोटा सा गाँव, हफ़रूदा. गाँव के निवासी ज़्यादातर किसान थे, जो अपनी शांत ज़िंदगी जी रहे थे. एक शाम, अचानक पहाड़ों से उठते धुएं ने गाँववालों को चौंका दिया. कुछ ही देर में, जंगल में आग लग गई और तेज़ हवाओं के कारण तेज़ी से फैलने लगी.
गाँव के युवाओं में से एक, इकबाल, जो भारतीय सेना की अग्निपथ योजना के तहत प्रशिक्षण ले रहा था, तुरंत हरकत में आया. उसने ग्रामीणों को आग बुझाने में मदद करने के लिए बुलाया और गाँव के मुखिया के साथ मिलकर राहत योजना बनाई.
इकबाल को सेना में आग बुझाने का प्रशिक्षण मिला था, जो अब काम आने वाला था. उसने ग्रामीणों को आग बुझाने के तरीके बताए और उन्हें सुरक्षित दूरी पर रहने की हिदायत दी. जंगल में पहुंचकर, उन्होंने पेड़ों से सूखी पत्तियां हटाकर आग को फैलने से रोका. पानी के स्रोत दूर थे, इसलिए इकबाल ने ग्रामीणों को बाल्टियों और मिट्टी से आग बुझाने का तरीका बताया.
गाँव के बच्चे भी मदद करने के लिए उत्सुक थे. इकबाल ने उन्हें पानी पहुंचाने और थकान से लबरेज ग्रामीणों को पानी पिलाने का काम सौंपा. पूरा गाँव एकजुट हो गया, बच्चे से लेकर बूढ़े तक, सभी आग से लड़ने में जुट गए.
दो दिनों की कड़ी मेहनत के बाद आग पर काबू पाया गया. जंगल का कुछ हिस्सा जल चुका था, लेकिन गाँव को बचा लिया गया. इकबाल और ग्रामीणों की बहादुरी और सामूहिक प्रयास ने एक बड़ी तबाही को टाला था.
इस घटना ने इकबाल को और भी दृढ़ बना दिया. उसने सेना में शामिल होने का अपना सपना पूरा किया और वर्तमान में जम्मू-कश्मीर में देश की सेवा कर रहा है. हफ़रूदा गाँव में भी इकबाल एक नायक बन गया. उसकी बहादुरी ने न केवल गाँव को बचाया, बल्कि ग्रामीणों में एकता और साहस की भावना भी जगाई.
“अग्निपथ की छाया” कक्षा 5 की हिंदी कहानी (hindi story for class 5) की सीख
यह कहानी हमें सिखाती है कि मुश्किलें चाहे कितनी भी बड़ी हों, सामूहिक प्रयास और दृढ़ संकल्प से उन्हें दूर किया जा सकता है. इकबाल की कहानी न केवल एक सैनिक की बहादुरी की कहानी है, बल्कि एकजुट होकर किसी भी चुनौती का सामना करने की प्रेरणा भी है.
बावड़ी वाली अंजना
वर्ष 2008, राजस्थान के सूखे इलाके में एक छोटा सा गाँव, भैंरूपुरा स्थित था. सूखे ने गाँव की ज़िंदगी को तबाह कर दिया था. खेत प्यासे थे, कुएँ सूखे पड़े थे और उम्मीदें मुरझा रही थीं.
गाँव की एक साधारण सी महिला, अंजना, इस स्थिति को बदलने का सपना देखती थी. वो पढ़ी-लिखी नहीं थी, पर उसके पास था दृढ़ संकल्प और धरती से गहरा नाता. उसने सुना था पुराने ज़माने में गाँव में बावड़ियाँ हुआ करती थीं, जो बारिश का पानी इकट्ठा करती थीं.
अंजना ने गाँव वालों को ये विचार बताया. पहले तो सभी हँसे, “एक अनपढ़ औरत क्या सिखाएगी?” पर अंजना हार नहीं मानी. उसने बार-बार कोशिश की, समझाया, प्रेरित किया. धीरे-धीरे, कुछ लोग माने. मिलकर खोदी गई एक पुरानी बावड़ी की मरम्मत शुरू की.
महीनों की मेहनत के बाद बावड़ी बनकर तैयार हुई. बारिश का कोई अता-पता नहीं था, पर अंजना और उसके साथी हार नहीं माने. वे आसपास के गाँवों से मिट्टी की टोकरियाँ इकट्ठा कर उन्हें नालियों से जोड़कर जमीन के नीचे पानी इकट्ठा करने का पुराना तरीका अपनाया.
एक शाम, हवा बदली, आसमान में बादल छाए और तेज बारिश होने लगी. खुशी की लहर भैंरूपुरा में दौड़ पड़ी. सूखे खेत हरे हो गए, पेड़ जिंदगी से लहलहा उठे और अंजना के चेहरे पर एक अद्भुत मुस्कान खिली.
धीरे-धीरे अंजना की कहानी पूरे राजस्थान में फैल गई. उसे “बावड़ी वाली अंजना” के नाम से जाना जाने लगा. उसने हज़ारों लोगों को प्रेरित किया. इसी प्रेरणा से राजस्थान में हजारों बावड़ियों का निर्माण हुआ और सूखे की समस्या कम होती गई.
आज, अंजना एक राष्ट्रीय नायक है, उसे कई सम्मान मिले हैं. पर वो कहती है, “मेरा असली सम्मान उन महिलाओं का है, जो मेरे साथ खड़ी रहीं, भाईचारे से काम किया और ये बदलाव लाया.”
“बावड़ी वाली अंजना” कक्षा 5 की हिंदी कहानी (hindi story for class 5) की सीख
अंजना की कहानी हमें सिखाती है कि दृढ़ संकल्प, सामूहिक प्रयास और जमीनी हकीकत से जुड़ाव से कोई भी मुश्किल आसान हो सकती है. वो हमें याद दिलाती है कि बदलाव की शुरुआत छोटे कदमों से हो सकती है और असली ताकत सामूहिकता में है.
हमें हर दिन खुद को चुनौती देने और एक बेहतर इंसान बनने की प्रेरणा देती है.
मल्लिकार्जुन मनसुखा: एक सच्चे शिक्षक की कहानी
मल्लिकार्जुन मनसुखा का नाम आज भी ग्रामीण भारत में शिक्षा की ज्योति के रूप में चमकता है. उनकी कहानी महात्मा गांधी के स्वावलंबन और शिक्षा के प्रति समर्पण की सीख को अपने समय में आगे बढ़ाती है.
मनसुखा जी का जन्म 1919में महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव में गरीब किसान परिवार में हुआ था. उनके पास औपचारिक शिक्षा का अवसर नहीं था, लेकिन ज्ञान की प्यास उन्हें हमेशा जलाती रहती थी. वह दूसरों से सीखने के लिए हमेशा उत्सुक रहते थे और रातों को चांद की रोशनी में किताबें पढ़ा करते थे.
गांधी जी के विचारों से प्रेरित होकर, उन्होंने 1956 में गांधीजी के ग्राम स्वराज्य के सिद्धांतों पर आधारित ‘शिक्षा निकेतन‘ नामक एक अनोखा स्कूल शुरू किया. यह स्कूल परंपरागत शिक्षा प्रणाली से अलग था. यहां औपचारिक शिक्षा के साथ-साथ बच्चों को कृषि, हस्तशिल्प, और ग्रामीण जीवन कौशल सिखाए जाते थे. शिक्षा का माध्यम मराठी था, ताकि बच्चों को अपनी जड़ों से जुड़े रहने का अवसर मिले.
मनसुखा जी मानते थे कि शिक्षा सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं होनी चाहिए. उनका मानना था कि प्रकृति, समाज और अनुभव ही असली शिक्षक हैं. इसलिए, उन्होंने बच्चों को खेतों में काम करने, हाथ से कपड़े बनाने, और गांव के लोगों के साथ बातचीत करने के लिए प्रोत्साहित किया.
शिक्षा निकेतन की सफलता ने आसपास के गांवों में क्रांति ला दी. गरीब परिवारों के बच्चों को अब शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिला. मनसुखा जी के स्कूल में पढ़े हुए कई बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर और शिक्षक बन गए.
मनसुखा जी ने कभी भी अपने स्कूल को व्यावसायिक बनाने की कोशिश नहीं की. उनका मानना था कि शिक्षा एक व्यापार नहीं, बल्कि सेवा है. उन्होंने हमेशा गरीब बच्चों को निःशुल्क शिक्षा प्रदान की.
मनसुखा जी का जीवन हमें सिखाता है कि शिक्षा का असली उद्देश्य सिर्फ डिग्री हासिल करना नहीं है, बल्कि स्वावलंबी, जिम्मेदार और समाजसेवी बनना है. उनकी कहानी हमें यह भी प्रेरित करती है कि हम अपनी जड़ों से जुड़े रहकर, प्रकृति और समाज से सीखते हुए, दूसरों की सेवा के लिए काम करें.
” मल्लिकार्जुन मनसुखा ” कक्षा 5 की हिंदी कहानी (hindi story for class 5) की सीख
मल्लिकार्जुन मनसुखा की कहानी महात्मा गांधी के सपनों को साकार करने वाली एक जीवंत मिसाल है. उनका जीवन हमें हर परिस्थिति में शिक्षा के महत्व को समझने और दूसरों को शिक्षित करने की प्रेरणा देता है.
इरा
जंगल की गहराई में, जहां भगत की किरणें भी मुश्किल से पहुंचती थीं, एक छोटी सी चींटी रहती थी. उसका नाम था इरा. वो अपने से कई गुना बड़े चींटियों को देखकर हताश होती थी. उसे लगता था कि वो कभी उन जैसी मजबूत और कामयाब नहीं हो सकेगी.
एक दिन, भारी बारिश हुई. जंगल का रास्ता एक पत्ते से अटक गया, जिससे इरा और उसके साथी बाहर नहीं निकल पा रहे थे. सब हताश हो गए, लेकिन इरा को कुछ याद आया. उसने सुना था कि कभी महान सम्राट अशोक भी एक छोटे से पौधे की तरह ही कमजोर था, लेकिन उसने हार नहीं मानी और पूरे भारत पर शासन किया.
इरा ने कहा, “हम सब मिलकर पत्ते को हटा सकते हैं. छोटे कदमों से बड़ा बदलाव लाया जा सकता है, जैसे सम्राट अशोक ने किया था.”
इरा की बातों से प्रेरित होकर, सभी चींटियां इकट्ठा हुईं. उन्होंने मिलकर पत्ते को धीरे-धीरे खींचना शुरू किया. पहले तो उन्हें लगा कि ये असंभव है, लेकिन हार न मानकर कोशिश करते रहे. कुछ देर बाद, पत्ता हिलने लगा और थोड़ी देर में वो रास्ता खुल गया.
चींटियां खुशी से जंगल में बाहर निकल आईं. इरा को एहसास हुआ कि ताकत सिर्फ आकार में नहीं, बल्कि इच्छाशक्ति और एकजुटता में होती है. उसे सम्राट अशोक की कहानी ने न केवल प्रेरित किया, बल्कि एकजुटता की ताकत का पाठ भी पढ़ाया.
इसके बाद, इरा ने बाकी चींटियों को भी यही बात समझाई. वो सब मिलकर कड़ी मेहनत करने लगीं. उन्होंने अपना घर बड़ा किया, ज्यादा भोजन इकट्ठा किया और पूरे जंगल में मिलकर काम किया. धीरे-धीरे, वो जंगल की सबसे मजबूत और सफल चींटी कॉलोनी बन गईं.
” इरा ” कक्षा 5 की हिंदी कहानी (hindi story for class 5) की सीख
इरा की कहानी हमें सिखाती है कि सपने चाहे कितने भी बड़े हों, उन्हें छोटे-छोटे कदमों से हासिल किया जा सकता है. हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए और दूसरों के साथ मिलकर काम करना चाहिए. ठीक वैसे ही जैसे छोटी सी चींटी ने सम्राट अशोक से प्रेरणा लेकर अपने जीवन को बदल दिया. तो चलिए, हम भी इरा की तरह हार न मानें, छोटे-छोटे कदम उठाएं और अपने सपनों को पूरा करें. याद रखिए, एकजुटता ही सबसे बड़ी ताकत है!
शेखचिल्ली
शहर के एक कोने में, गली के राजा के तौर पर कुख्यात था शेखचिल्ली. छोटी–मोटी चोरी–चकारी, जुआ और झगड़े उसका रोज़ का धंधा थे. मोहल्ले वाले उससे खौफ खाते थे, उसकी हरकतों से परेशान रहते थे. एक दिन, जब शेखचिल्ली एक बुजुर्ग महिला का पर्स छीनने की कोशिश कर रहा था, तभी उसे किसी ने पकड़ लिया. वो चौंका, सामने एक छोटी सी लड़की, गुड़िया, खड़ी थी. गुड़िया उस मोहल्ले में सामाजिक कार्यों में सक्रिय थी, सबका मान रखती थी.
दबोच लिया जाना शेखचिल्ली को बर्दाश्त न हुआ. गुड़िया की नन्ही हथियारों से झगड़े की धमकी देने पर वो हंस पड़ा. मगर गुड़िया हंसी नहीं थी, उसने शेखचिल्ली की आंखों में देखा और पूछा, “तुम ऐसा क्यों करते हो, शेखचिल्ली?”
शेखचिल्ली ने घबराहट छिपाने के लिए फिर ठहाका लगाया, “मैं जो करता हूं, वो मेरा काम है!“
गुड़िया ने दृढ़ता से कहा, “तुम गलत रास्ते पर हो, शेखचिल्ली. तुम्हारे अंदर अच्छाई दबी है, पर उसे तू खुद दबा रहा है. तुम्हारी ताकत का सही इस्तेमाल हो सकता है.”
कुछ देर चुप रहने के बाद शेखचिल्ली बोला, “मैं भी चाहता हूं बदलना, पर कुछ कर नहीं सकता.”
गुड़िया मुस्कुराई, “अगर तुम कोशिश करना चाहते हो, तो मैं मदद करूंगी.”
वो दिन शेखचिल्ली की ज़िंदगी का मोड़ बन गया. गुड़िया की मदद से उसने जुआ छोड़ा, स्थानीय दुकानदारों की सुरक्षा करने लगा, यहां तक कि मोहल्ले में सफाई अभियान चलाने में भी हाथ बंटाया. लोगों का नज़रिया बदला, शेखचिल्ली से खौफ की जगह सम्मान पैदा हुआ.
एक बार, इलाके में आग लग गई. लोग घबरा गए थे, तभी शेखचिल्ली दौड़ता हुआ आया. उसने खुद को बचाने की परवाह किए बिना आग बुझाने में मदद की, घायलों की सहायता की. उसकी बहादुरी से कई लोगों की जान बच गई.
शेखचिल्ली अब गली का राजा नहीं था, वो मोहल्ले का रक्षक था. उसकी कहानी सारे शहर में फैल गई. वो उन युवाओं के लिए प्रेरणा बन गया, जो गलत रास्ते पर चले जा रहे थे.
“शेखचिल्ली” कक्षा 5 की हिंदी कहानी (hindi story for class 5) की सीख
शेखचिल्ली की कहानी हमें सिखाती है कि बदलाव कभी भी संभव है. अंधेरे से उम्मीद की रोशनी लाने के लिए बस एक छोटी सी कोशिश, हौसला और किसी को रास्ता दिखाने वाला हाथ काफी है. हमेशा याद रखें, अच्छाई की कोई उम्र नहीं होती, वो किसी के भी अंदर जाग सकती है, बस उसे जगाने की ज़रूरत होती है.
‘वॉटरमैन ऑफ इंडिया’
समय था 1982 का, जगह थी मध्यप्रदेश का छोटा सा गाँव, जो कि सूखे की चपेट में था. गाँव के किसान हताश थे, कुएँ सूख चुके थे और फसलें बर्बाद हो रही थीं. ऐसी ही परिस्थिति में पैदा हुए थे राजेंद्र सिंह, जिनके लिए पानी की कीमत सोने से भी ज़्यादा थी.
राजेंद्र ने गाँव की हालत देखी तो उन्हें लगा कि कुछ करना चाहिए. उन्होंने गाँव के बुजुर्गों से बात की और जाना कि पहले गाँव में तालाब हुआ करता था, जो समय के साथ सूख गया था. राजेंद्र ने तय किया कि तालाब को दोबारा जिंदा किया जाएगा.
शुरुआत में गाँव वालों ने उनका मजाक उड़ाया. लेकिन राजेंद्र हार नहीं माने. उन्होंने गाँव वालों को समझाया कि तालाब से सिर्फ पानी नहीं मिलेगा, बल्कि खेती भी लहलहाएगी और ज़मीन उपजाऊ बनेगी. उनकी बातों से प्रभावित होकर कुछ लोग मदद के लिए आगे आए.
राजेंद्र ने गाँव वालों के साथ मिलकर तालाब की खुदाई शुरू की. यह आसान काम नहीं था. धूप में, पसीना बहाते हुए दिन-रात काम किया जाता था. पर राजेंद्र का हौसला और अटूट विश्वास उनके साथ था.
दो साल की कड़ी मेहनत के बाद तालाब तैयार हो गया. बारिश का मौसम आया और आसमान से बरसने वाला पानी तालाब में इकट्ठा होने लगा. कुछ समय बाद तालाब लबालब भर गया. गाँव के लोगों की खुशी का ठिकाना न रहा.
तालाब से न केवल खेतों को सींचा गया, बल्कि पशुओं के लिए भी पानी की समस्या दूर हो गई. धीरे-धीरे गाँव हरा-भरा हो गया. गाँव की महिलाओं को भी अब दूर से पानी लाने की ज़रूरत नहीं पड़ी.
राजेंद्र सिंह की पहल ने गाँव की तस्वीर ही बदल दी. उनके हौसले और दृढ़ संकल्प ने न केवल सूखे से लड़ना सिखाया, बल्कि सामुदायिक प्रयास की ताकत भी दिखाई.
राजेंद्र सिंह आज ‘वॉटरमैन ऑफ इंडिया’ के नाम से जाने जाते हैं. उनकी प्रेरणा से देशभर में हज़ारों तालाबों का जीर्णोद्धार हुआ है.
“वाटरमैन ऑफ इंडिया” कक्षा 5 की हिंदी कहानी (hindi story for class 5) की सीख
उनकी कहानी हमें सिखाती है कि अगर कोई सपना हो और उसे पूरा करने की ठान ली जाए, तो कोई भी मुश्किल उसे रोक नहीं सकती. राजेंद्र सिंह की कहानी हमें यह भी बताती है कि छोटे-छोटे प्रयासों से बड़े बदलाव लाए जा सकते हैं.
तो चलिए, हम भी राजेंद्र सिंह से प्रेरणा लेकर अपने आसपास के लिए कुछ अच्छा करने का संकल्प लें. क्योंकि छोटी-छोटी कोशिशें मिलकर बड़ा बदलाव ला सकती हैं.
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