Akbar Birbal ki Kahaniyan hamesha se hi bacchon ke liye majedar or shikshaprad rahi hai yah kahani असली मालिक कौन ? (Asli Malik Kaun) class 2, class 3, class 4 & 5 ke bacchon ke liye upyukt hain. yahan par har kahani ka likhit evam maukhik sansakran uplabdh hai , jisse har ek bacchon ko kahani padhne evam samjhne me asani ho or kahani ka anand liya ja sake.
बीरबल की प्रसिद्धि चारों ओर फैल चुकी थी। लोग उसके पास सलाह लेने आते थे। वह एक न्याय करने वाले के रूप में प्रसिद्ध हो गया था। त्रिपुरा के राजा चन्द्रवर्मा ने बीरबल के सम्बन्ध में बहुत कुछ सुना था। उसकी बीरबल से मिलने की इच्छा हुई।
राजा चन्द्रवर्मा ने एक व्यापारी का वेश धारण किया और अपने घोड़े पर बैठकर आगरा रवाना हुआ। जैसे ही वह आगरा पहुँचने वाला था, चन्द्रवर्मा ने एक कमज़ोर व्यक्ति को लड़खड़ा कर चलते देखा। यह देखकर राजा को दया आ गयी, वह घोड़े से उतरा और उसको बैठने को कहा। राजा आगे बैठा और वह व्यक्ति जिसका नाम रवि शर्मा था, उसके पीछे। जब वे आगरा पहुँचे तो चन्द्रवर्मा ने रवि शर्मा से घोड़े से उतरने को कहा। अब राजा के आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब रवि शर्मा ने ये कहा कि घोड़ा तो उसका है और उसने उतरने से मना कर दिया।
जब उनकी यह नोक-झोंक चल रही थी तभी वहाँ कुछ व्यक्ति इकट्ठा हो गये। जब वे उनका फैसला न कर सके तो उन्होंने दोनों को बीरबल के पास जाने का सुझाव दिया।
चन्द्रवर्मा सहर्ष तैयार हो गया। क्योंकि वह बीरबल से मिलना ही चाहता था। जब बीरबल ने दोनों की बात सुन ली तो बीरबल ने कहा, “मुझे एक दिन का समय चाहिये और यह घोड़ा मेरे पास छोड़ जाओ।” वे बीरबल के घर से चल दिये। बीरबल ने एक नौकर को उनका घोड़ा लेकर उनके पीछे भेजा। और यह निर्देश दिया कि घोड़े को स्वतन्त्र छोड़ देना और देखना कि घोड़ा दोनों में से किस व्यक्ति के पीछे जाता है।
कुछ समय पश्चात् नौकर घोड़ा लेकर वापस लौटा और उसने बताया कि घोड़ा चन्द्रवर्मा के पीछे गया था। अगले दिन चन्द्रवर्मा और रवि शर्मा का बीरबल के घर स्वागत हुआ। उसने नौकर से कहा, “घोड़े के असली स्वामी को हमारे अस्तबल से अपना घोड़ा लेने दो।” अस्तबल में पहुँच कर रवि शर्मा ठगा सा रहा गया, क्योंकि वहाँ एक रंग और एक क़द के सैंकड़ों घोड़े थे। जबकि चन्द्रवर्मा सीधा अपने घोड़े के पास गया और उसे खोल कर पुचकारने लगा। घोड़े ने मालिक को पहचान लिया और प्रसन्नता से हिनहिनाने लगा।
रवि शर्मा बीरबल के पैरों में पड़ गया और क्षमा माँगने लगा। राजा चन्द्रवर्मा बड़ा प्रसन्न हुआ। जैसा उसने बीरबल के सम्बन्ध में सुना था, उसने उसे ऐसा ही पाया। अभी भी व्यापारी के वेश में ही उसने बीरबल को धन्यवाद दिया और जैसे ही वह चलने लगा बीरबल ने विनम्रतापूर्वक कहा, “महाराज! मैं आशा करता हूँ कि आप हमारे सम्मानित मेहमान बनेंगे।” बीरबल जान चुका था कि वह राजा चन्द्रवर्मा है।
चन्द्रवर्मा ने आश्चर्यचकित होकर पूछा, “आपने मुझे कैसे पहचाना?” बीरबल बोला- “जैसे ही हमारे राज्य में कोई अजनबी व्यक्ति प्रवेश करता है तो जासूस हमें समाचार दे देते हैं।” राजा ने उत्सुक होकर पूछा, “अच्छा, यह बताओ कि तुम्हें घोड़े के वास्तविक स्वामी का कैसे पता चला ?” बीरबल ने राजा को पूरी घटना बता दी और कहा, “एक घोड़ा अपने स्वामी के पीछे ही जायेगा और वास्तविक स्वामी ही अपने घोड़े को कहीं भी पहचान सकता है। राजा चन्द्रवर्मा बीरबल की समझ-बूझ से अत्यन्त प्रभावित हुआ। उसने बीरबल की प्रशंसा की और उनको बहुत से उपहार दिये।
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