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लकडहारा और पुजारी

By Deepshikha choudhary

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लकड़हारा और पुजारी की कहानी
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बहुत साल पहले, सुरुगा के बंजर मैदान में, विशालकाय कद का एक लकड़हारा रहता था।  उसका नाम था विसु। वह अपनी पत्नी और बच्चों के साथ एक झोंपड़ी में रहता था।

लकडहारा और पुजारी की कहानी

एक दिन, एक बूढ़ा पुजारी विसु से मिलने आया। उसने कहा, “प्रिय लकड़हारे, मुझे लगता है कि तुम कभी प्रार्थना नहीं करते।”

विसु ने उत्तर दिया, “यदि आपकी पत्नी और पालने के लिए इतना बड़ा परिवार हो, तो आपके पास भी प्रार्थना करने का समय नहीं होगा।”

इस टिप्पणी से पुजारी को गुस्सा आ गया। उसने लकड़हारे को लाखों साल तक मेंढक, चूहे या कीट के रूप में दोबारा जन्म लेने के भयानक दुखों के बारे में बताया। इस तरह का डरावना विवरण विसु को पसंद नहीं आया, और उसने पुजारी से वादा किया कि अब से वह हर रोज प्रार्थना करेगा।

काम करो और प्रार्थना भी करो,” पुजारी ने विदा लेते हुए कहा।

दुर्भाग्य से, विसु ने प्रार्थना के अलावा कुछ नहीं किया। वह दिन भर प्रार्थना करता और कोई काम करने से इनकार कर देता, जिससे उसकी धान की फसल सूख गई और उसका परिवार भूखा रहने लगा। विसु की पत्नी, जिसने अब तक अपने पति से एक भी कठोर या कड़वा शब्द नहीं कहा था, अब बेहद क्रोधित हो गई। वह गुस्से में अपने बच्चों के कमज़ोर शरीर की ओर इशारा करते हुए, वह बोली, “उठो नाकारा और निक्कमे विसु, अपनी कुल्हाड़ी उठाओ और प्रार्थना बुदबुदाने से बेहतर कुछ करो जो हम सबके लिए मददगार हो!”

विसु अपनी पत्नी की बातों से इतना चकित रह गया कि कुछ देर तक कोई जवाब ही नहीं दे पाया। और जब बोला भी, तो उसके शब्द उसकी बेचारी, दुखी पत्नी के कानों को चुभ गए।

उसने कहा, “हे मुर्ख औरत भगवान पहले आते हैं। तुम मुझसे इस तरह बात करने वाली अशिष्ट प्राणी हो, अब मेरा तुमसे कोई लेना-देना नहीं!” विसु झट से अपनी कुल्हाड़ी उठाकर, बिना विदा लिए झोंपड़ी से निकल गया। जंगल से तेज़ी से होता हुआ वह फुजियामा पर्वत पर चढ़ गया, जहां एक धुंध ने उसे दृष्टि से ओझल कर दिया।

जब विसु पहाड़ पर बैठ गया, तो उसे एक सरसराहट सुनाई दी, और तुरंत ही एक लोमड़ी को झाड़ियों में भागते हुए देखा। वहां पर लोमड़ी को देखना भाग्यशाली माना जाता था। तो विसु ने लोमड़ी को देखना भी बेहद भाग्यशाली माना, और अपनी प्रार्थनाओं को भूलकर, वह इधर-उधर दौड़ पड़ा, इस नुकीली नाक वाले छोटे जीव को फिर से खोजने की उम्मीद में।

लकडहारा और पुजारी की कहानी

वह हार मान ही रहा था कि जंगल में एक खुली जगह पर उसे दो महिलाएं एक झरने के पास ‘गो’ नाम का एक अजीब खेल खेलती हुई दिखाई दीं। लकड़हारा इतना मंत्रमुग्ध हो गया कि वह बस बैठकर उन्हें देखता रहा। खेल के टुकड़ों के हल्के से टकराने और झरने की बहने की आवाज़ के अलावा कोई और आवाज़ नहीं थी। महिलाओं ने विसु पर कोई ध्यान नहीं दिया, क्योंकि वे एक अजीब खेल खेल रही थीं जिसका कोई अंत नहीं था, वो खेल उनका पूरा ध्यान खींच रहा था। विसु उन सुंदर महिलाओं से अपनी नज़रें नहीं हटा सका। वह उनके लंबे काले बाल और छोटे तेज हाथ देखता रहा जो बड़ी रेशमी आस्तीन से बार-बार निकल कर टुकड़ों को हिलाते थे।

वहाँ तीन सौ साल तक बैठा रहा, हालांकि यह समय उसे बस एक गर्मी की दोपहर जैसा लगा, उसने देखा कि एक खिलाड़ी ने गलत चाल चल दी। “गलत, सुंदर देवी!” वह उत्तेजना में चिल्लाया। एक पल में वे महिलाएं लोमड़ियों में बदल गईं और वहां से भाग गईं।

जब विसु ने उन्हें पकड़ने के लिए उठने की कोशिश की, तो उसने पाया कि उसके अंग बुरी तरह अकड़ गए हैं,उसे हिलने में भी तकलीफ हो रही है और उसके बाल बहुत लंबे हैं, एवं उसकी दाढ़ी जमीन को छू रही है। उसने यह भी पाया कि उसकी कुल्हाड़ी का हत्था, जो सबसे कठोर लकड़ी का बना था, धूल के छोटे ढेर में बदल गया है।

बहुत कष्ट के बाद विसु अपने पैरों पर खड़ा हो पाया और बहुत धीरे-धीरे अपने घर की ओर बढ़ा। जब वह वहां पहुंचा, तो झोंपड़ी न देखकर हैरान रह गया। एक बहुत बूढ़ी औरत को देखकर उसने कहा, “महिला, मैं यह देखकर चकित हूं कि मेरी छोटी सी झोपड़ी गायब हो गई है। मैं आज दोपहर को गया था, और शाम ढलते-ढलते यह गायब हो गई!”

बूढ़ी औरत, ने सोचा कि कोई पागल उससे बात कर रहा है। उसने उसका नाम पूछा तो वह बोला “विसु”। तब वह स्त्री बोली, “वाह! तुम सच में पागल हो गए होगे! विसु तो तीन सौ साल पहले रहता था! वह एक दिन चला गया और फिर कभी वापस नहीं आया।”

तीन सौ साल!” विसु बुदबुदाया। “यह संभव नहीं हो सकता। मेरी प्यारी पत्नी और बच्चे कहाँ हैं?”

दफना दिए!” बूढ़ी औरत फुसफुसाई, “और, अगर तुम जो कह रहे हो वह सच है, तो तुम्हारे बच्चों के बच्चे भी। देवताओं ने तुम्हारी पत्नी और छोटे बच्चों की उपेक्षा करने के दंड में तुम्हारी ज़िन्दगी को लंबा कर दिया है।”

विसु के मुरझाए गालों पर बड़े-बड़े आँसू बहने लगे। उसने भारी आवाज़ में कहा, “मैंने अपनी जवानी को खो दिया। मैं सिर्फ प्रार्थना ही करता रह गया, जबकि मेरे प्रियजन भूखे थे, उन्हें मेरे इन मजबूत हाथों की मेहनत की जरूरत थी। वृद्ध महिला, मेरे अंतिम शब्द याद रखना: “यदि तुम प्रार्थना करते हो, तो काम भी करो!”

हमें नहीं पता कि अपने अजीब कारनामों से लौटने के बाद विसु कितने समय तक ज़िंदा रहा। कहते हैं कि जब चाँद चमकता है तब उसकी सफेद आत्मा अभी भी फुजियामा पर भटकती है।

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    Deepshikha Randhawa is a skilled Storyteller, editor, and educator. With a passion for storytelling, she possess a craft of captivating tales that educate and entertain. As trained basic education teachers, her narratives resonate deeply. Meticulous editing ensures a polished reading experience. Leveraging teaching expertise, she simplify complex concepts and engage learners effectively. This fusion of education and creativity sets her apart. Always seeking fresh opportunities. Collaborate with this masterful storyteller, editor, and educator to add a touch of magic to your project. Let her words leave a lasting impression, inspiring and captivating your audience.

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