आज हम आपके लिए लेके आयें है “चींटियों की सूझबूझ” नाम की एक “लोककथा” जो बच्चों को अपने आस पास के परिवेश को समझने मे सहायता करती है। यहाँ पर सभी कहानियों का लिखित एवं “मौखिक रूप” उपलब्ध है जिससे बच्चों को कहानी को समझने मे या पढ़ने मे कोई कठिनाई ना आए ।
आसाम (भारत में पूर्व का एक प्रदेश) के एक जंगल में एक हाथी रहा करता था। उसी जंगल में छोटे-छोटे बिल बनाकर चींटियाँ भी रहती थीं। वह चीटियों से बहुत चिढ़ता था । अक्सर हाथी उनका अपमान कर देता था। कभी-कभी जब जंगल में भोज का आयोजन होता था, तो हाथी उनकी मौजूदगी चिढ़ जाता था। जब कभी कोई चींटी उसके सामने से निकलती तो वह उन्हें अपने पैरों से रौंद (कुचल) देता।
हाथी अक्सर कहता, “अरे, इन चींटियों की बातों में कहाँ पड़ते हो इनमें न अक्ल होती है और न शक्ति ।“
एक बार चींटियों ने जंगल मैं कुछ व्यक्तियों को एक बड़ा सा गड्ढा खोदते देखा तो वे आतंकित (घबरा जाना या डर जाना) हो उठीं। काफी बड़ा गड्ढा खोदे जाने पर चींटयों ने देखा कि उन व्यक्तियों ने उसे घास-फूस और बांस की टहनियों से ऐसा ढका कि वह बराबर ज़मीन मालूम पड़ने लगी। फिर वे आदमी आपस में हाथी को पकड़ने की बातें करने लगे ।
यह सुनकर एक चींटी दूसरी चींटी से बोली, “अब हाथी को कितनी निर्दयता (बिना दया के) के साथ पकड़ लिया जायेगा ।” दूसरी बोली, “हमें कुछ सोचना चाहिये अपनी सूझ-बूझ दिखाने का यही सही मौका है।“ तीसरी बोली, “हाँ ,हम अपनी अक्ल से यदि हाथी को बचा सकें तो कितना अच्छा हो ।“
हाथी एक छायादार पेड़ तले सो रहा था । चींटियाँ उसके बदन पर चुप चाप जाकर बैठ गईं। कुछ देर बाद हाथी की नींद खुल गई। उसे जोर की भूख लगी थी। वह मीठे गन्ने के खेत की ओर जाने लगा। उसी रास्ते पर इन व्यक्तियों ने एक बड़ा सा गड्ढा खोदा था। चींटियों ने देखा कि गड्ढा आने वाला है। उन्होंने हाथी के शरीर पर इधर-उधर काटना शुरू किया। हाथी कभी पैर पटकता तो कभी सूंड़ उठाकर चिल्लाता, चिंघाड़ता (जोर जोर से चिल्लाना) पर हाथी फिर भी उसी रास्ते पर चलता रहा।
हाथी को गड्ढे की तरफ जाता देख कर चींटियों उसे और जोर से काटने लगीं तब वह तिलमिला (परेशान होकर) कर दूसरे रास्ते पर दौड़ने लगा। पेड़ पर बैठे शिकारी लोग यह सब देख रहे थे। वह हाथी को पकड़ने के लिये पेड़ से कूदे परन्तु वे यह भूल गये थे कि नीचे उन्होंने ही गड्ढा खोदा था और वे सब उसी गड्ढे में गिर गये।
हाथी ने जब मुड़कर यह दृश्य देखा तो चिल्ला पड़ा, “मैं खुद इस गड्ढे में गिर गया होता यदि मेरे शरीर में खुजलाहट न होती।” यह सुनकर सभी चींटियां एक साथ बोल पड़ी “खुजलाहट हमने की थी हाथी जी!” “हमारे कहने को आप न मानते, इस कारण आपको बचाने के लिये हमें आपको काटना पड़ा । ” हाथी ने कहा, “मुझे क्षमा कर दो, ऐ नन्हीं चींटयों ! मैं तुम्हें मूर्ख और जाने क्या-क्या कहता था। मैं अपने ताकत के नशे में चूर था, पर समझदारी के मामले में तुम चींटियों से बढ़कर और कोई नहीं हो सकता ।
कहानी सार
“चीटियों की सूझबूझ से स्पष्ट है कि हाथी को अपने शरीर पर घमंड था पर उसने अन्त में माना कि कोई बड़ा छोटा नहीं होता। हर वस्तु का, हर जीव का अपने-अपने स्थान पर महत्व होता है। शक्तिशाली जीवों को कमज़ोर जीवों का भी आदर करना चाहिये ।
असम/आसाम कहाँ है एवं असम/आसाम राजधानी क्या है?
हाथी चींटियों के बारे मे क्या सोकता था ?
चींटियों ने हाथी को किस्से बचाया ?
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