एक अवसर पर बादशाह अकबर बीरबल की हाजिर जवाबी से खुश होकर उन्हें जागीर देने का वायदा कर बैठे, वायदा तो कर लिया पर जागीर देने की बात भूल गये।
राज-काज की ऐसी व्यास्तता रही कि काफी समय बीत गया तब भी बादशाह को अपना वायदा याद न आया।
बीरबल प्रतीक्षा में थे कि कोई उचित अवसर हाथ लगे तो बादशाह को उनके वायदे की बात याद दिलायी जाए।
ऐसा अवसर उस दिन हाथ आ गया जब बादशाह, बीरबल के साथ सुबह-सुबह घोड़े पर सवारी करके हवाखोरी को निकले।
काफी आगे निकल जाने के बाद अचानक बादशाह को एक ऊंट नजर आया जो अपनी गर्दन उठाए अपनी राह चला जा रहा था।
बादशाह ने मजाक में बीरबल से पूछा लिया “ऊंट की गर्दन टेड़ी क्यों?”
बीरबल ने झट कहा- जहांपनाह इसने भी कभी किसी को जागीर देने का वायदा किया होगा और अब नजरें बचाए, गर्दन टेड़ी किये घूम रहा है।”
बादशाह को अपने वायदे की बात याद आयी। बीरबल के वायदा याद दिलाने के ढंग पर खुश हुए और उन्हें जागीर दे दी।
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