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घड़ियों की हड़ताल (Chapter-5)

-( रमेश थानवी ) Ramesh Thanvi

Hindi Sahitya me Khaniyon ka Bada mehhatav hai , hindi kahaniyaan bachhon ke mansik vikas ke liye ek unnat or jacha parkha madhyam hai,Yahan Par hmare dwara देश में प्रौढ़ शिक्षा का अलख जगाने वालों में अग्रणी, साहित्य और दर्शन के अध्येता, एक दौर के प्रतिष्ठित साप्ताहिक ‘प्रतिपक्ष’ की टीम के सदस्य और राज. प्रौढ़ शिक्षण समिति के अध्यक्ष रहे “श्री रमेश थानवी” ki ek kahani “घड़ियों की हड़ताल (Chapter-5)” prastut ki gayi hai jo prathmik istar ke bachhon ke liye upyukt hai . Yahan par har kahani ka likhit evam maukhik sansakran uplabdh hai , jisse har ek bacchon ko kahani padhne evam samjhne me asani ho or kahani ka anand liya ja sake.

अध्याय 5

बच्चों ने महसूस किया था कि वे आजाद हो गए हैं। मगर आजादी अपने साथ अराजकता नहीं लाई थी। उसने हर बच्चे का हौसला बढ़ाया था। विश्वास बढ़ाया था। छोटू मोटू के सभी दोस्त पहले से ज्यादा जिम्मेदार हो गए थे, लेकिन यह जिम्मेदारी वही थी, जिसे उन्होंने खुद चुना था। इस बार उन्होंने तय किया था कि वे रोज सवेरे घूमने जाएँगे तथा हर सवेरे सूर्योदय देखेंगे। उनका यह फ़ैसला इस बार लोहे की लकीर हो गया था और हर दोस्त में होड़ लग गई थी कि पहले कौन जगे व किसको कौन जगाए। इस होड़ ने न केवल जगने की बात सिखाई थी. बल्कि जगाने की बात भी सिखाई थी।

एक सवेरे खोटू भी जल्दी जगा था। उसे आज जगना बहुत अच्छा लगा था। आज पहली बार उसने सूर्योदय देखा था। उसे सूरज की पहली किरण ने एक नयी बात बताई थी। अँधेरे को चीरने की बात। आज उसने अपनी आँखों से देखा था कि सूरज की पहली किरण धरती से अंधकार की चादर अपने हाथों उघाड़ती है। पहली किरण रातभर से सोए शहर में एक नयी हलचल पैदा करती है। लोग गुदड़ी छोड़कर सड़क पर निकल आते हैं। धंधे पर चल देते हैं। कोई ठेला लेकर निकल पड़ता है, तो कोई पूजा के फूल लेकर मंदिर चल देता है। आज सवेरे पहली बार खोटू ने भी पूजा तथा काम निकट संबंध को देखा था। रिक्शेवाले के लिए रोजी पूजा थी, यह उसने अपनी आँख से देखा था। उसे समझ में आया था कि जगना पाना है तथा सोना गँवाना है।

खोटू ने आज सवेरे केवल जगने के अर्थ ही नहीं समझे थे। उसे जगाने का सुख भी मिला था। वह आज पहली बार अपने एक दोस्त, को जगाने पहुंचा था। उसे जगाकर दोनों साथ घूमने निकले थे। दोनों ने सवेरे की हलचल को पहली बार देखा। दोनों ही सूरज की पहली किरण से प्रभावित थे। खोटू ने जगाने के इस सुख को अपना माना था। वह जगने तथा जगाने में विश्वास करने लगा था। उगते सूरज के साथ उनका यह रिश्ता उसे अच्छा लगने लगा था। उसे लगने लगा था कि बच्चों को उगता सूरज बनना होगा। खोटू के दूसरे दोस्त भी अब सूर्योदय से पहले घूमने की मंडली में शरीक होने लगे) थे। घूमने के साथ-साथ उपयोगी बातों पर सोचने-विचारने लगे थे। इससे भी आगे का आश्चर्य यह था कि सोच-विचार केवल हवा में 103 नहीं होता था, बाकायदा रोज की पढ़ी किताबों या खबरों पर होता था । सोच-विचार की यह बात जिम्मेदारी की बात थी। आगे बढ़ने की बात थी अपनी जानकारी बढ़ाने की बात थी। अपनी खुशियाँ बहाने व बाँटने की बात थी, लेकिन यह सुख उनका अपना सुख था। उन्होंने इसे चुना था और पाया था। बच्चों को लगने लगा था कि उनकी बुद्धि अब बड़ी हो रही है और वे अब कुछ रच सकते हैं। इससे एक विश्वास जगा था।

बच्चों के इस विश्वास ने माँ-बाप को भी नया विश्वास दिया. था। छोटू के पिता समझ गए थे कि हड़बड़ी बुरी होती है। शांति और धीरज की बात बड़ी होती है। वे अब समझ गए थे कि बच्चों की दुनिया एक अलग दुनिया है। लेकिन बच्चों की दुनिया से बड़ियों को दुनिया का ऐसा निकट संबंध उनके लिए एक नयी खबर थी। जब से घड़ीसाजों के बयान अखबारों में छपने लगे हैं, तबसे सभी परिवारों की घड़ियों की बातों में दिलचस्पी बढ़ गई है। घड़ियों की हड़ताल का रोज़ नया कारण! वे हैरान तो हैं, लेकिन जब से घड़ियों की बात बच्चों से जुड़ी है, तब से इस मसले को लोगों ने एक पारिवारिक मसला मान लिया है। हर घर-परिवार अब घड़ियों की समझ और संवेदना को दाद देने लगा है। हर घर अब दूसरे सवेरे के अखबार का इंतजार करने लगा था- घड़ियों की हड़ताल का अगला कारण जानने के लिए।

इधर इंतज़ार हो रहा था, उधर बयान चल रहे थे। सारे घड़ीसाज अपने-अपने बयान देने की बारी का इंतजार करते थे और अपना नंबर आने पर अपनी पोटली से अच्छा सा कारण निकालकर परोस देते थे। ऐसा लगता था कि जैसे हर घड़ीसाज़ के पास कोई नया रहस्य है। इसी रहस्य को जानने के लिए ही समय भवन के बाहर पत्रकारों की भीड़ सरकारी विज्ञप्ति की प्रतीक्षा करती रहती थी। घड़ीसाजों के बयान की सुनवाई बंद कमरे में ही हो रही थी। सरकार को खतरा था कि समय की एकता का रहस्य कोई दूसरा न जान ले।

समय की एकता का यह रहस्य सरकार के लिए बहुत बड़ा रहस्य बना हुआ था, लेकिन अब तक हुए बयानों ने सरकार को बहुत निराश किया था। ऐसा कोई कारण अभी तक सामने नहीं आया था कि सरकार कोई सीधी कार्रवाई कर सके। न ही कोई ऐसा कारण सामने आ रहा था, जिसका कोई स्थायी इलाज सरकार के पास हो। नतीजतन कार्रवाई को जारी रखना जरूरी था। कार्रवाई चल रही थी। समय ठहरा खड़ा था। सरकारी नुमाइंदे सरकार की लाचारी पर तरस खा रहे थे।

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