-( रमेश थानवी ) Ramesh Thanvi
Hindi Sahitya me Khaniyon ka Bada mehhatav hai , hindi kahaniyaan bachhon ke mansik vikas ke liye ek unnat or jacha parkha madhyam hai,Yahan Par hmare dwara देश में प्रौढ़ शिक्षा का अलख जगाने वालों में अग्रणी, साहित्य और दर्शन के अध्येता, एक दौर के प्रतिष्ठित साप्ताहिक ‘प्रतिपक्ष’ की टीम के सदस्य और राज. प्रौढ़ शिक्षण समिति के अध्यक्ष रहे “श्री रमेश थानवी” ki ek kahani “घड़ियों की हड़ताल (Chapter-10)” prastut ki gayi hai jo prathmik istar ke bachhon ke liye upyukt hai . Yahan par har kahani ka likhit evam maukhik sansakran uplabdh hai , jisse har ek bacchon ko kahani padhne evam samjhne me asani ho or kahani ka anand liya ja sake.
अध्याय 10
कागजों में अगला नंबर नाथद्वारा से आए घड़ीसाज का था। इसके बावजूद चूँकि बेंगलुरु की घड़ियों ने एन.एम.टी. के कारखाने का उल्लेख किया था, इसलिए सरकारी अफसर की राय थी कि एन.एम.टी. के इंचार्ज इंजीनियर का बयान पहले ले लिया जाए। इस बात पर सबकी सहमति लेकर एन.एम.टी. के इंजीनियर साहब से घड़ियों की हड़ताल का कारण या इसके बारे में किसी दूसरी जानकारी के बारे में पूछा गया।
इंजीनियर साहब सरकारी नौकर थे। अपनी नौकरी की चिंता उनकी सबसे बड़ी चिंता थी। वे जितना कुछ जानते थे या इस सभा में आने से पहले जितना कुछ जान सके थे. वह बताना भी वे खतरे से खाली नहीं समझते थे। उन्होंने अपनी झिझक दबाते शब्दों में माफ़ी माँग लेना ही ठीक समझा। वे बोले, “मैं तो सरकारी नौकर हूँ। आप मेरी राय न माँगें तो अच्छा है। मैं माफी ही चाहूँगा।”
“नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। आप ही तो सरकारी कारखाने के इंचार्ज हैं। आपकी बात पर किसे आपत्ति हो सकती है? फिर इस समिति को तो खुद सरकार ने सारे अधिकार दिए हैं। आप बिना किसी झिझक के सारी बात साफ़ बतलाएँ।” सरकारी अफसर ने कहा। एन.एम.टी. के इंजीनियर साहब ने साहस बटोरा तथा बताया-
“एन.एम.टी. की एक ब्रांच सरकारी दफ्तरों की घड़ियों की मरम्मत का काम करती है। इसी ब्रांच में अभी थोड़े दिन पहले ही संसद की दो बड़ी दीवार घड़ियाँ मरम्मत के लिए आई थीं। उनकी मरम्मत की जाने लगी, तो वे मैकेनिक से बोलीं-
“तुम क्यों अपना समय गंवाते हो और क्यों फ़िज़ूल में दिमाग खराब करते हो। संसद में सही समय की जरूरत किसे है? जिस बहस से जिस सदस्य का स्वार्थ जुड़ा रहता है या जिस प्रस्ताव से जिस मंत्री का मतलब होता है, केवल वही वहाँ पर सही समय पर पहुँचता है। कई सदस्य तो सदन से नदारद ही रहते हैं।”
मैकेनिक संसद की घड़ी की बात सुनकर चौका था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि संसद में ऐसा कैसे हो सकता है। हैरान मैकेनिक हक्का-बक्का रह गया था। उसे अवाक देखकर संसद की घड़ी ने अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहा-
“संसद में सारे लोग या तो समय पर तब पहुँचते हैं, जब बहस के विषय से उनका अपना स्वार्थ जुड़ा हो। अगर उनके स्वार्थ का कोई तकाजा न हो तो जरूरी नहीं है कि वे वहाँ पहुँचें ही आपने अखबार में भी पड़ा होगा कि जब संसद चल रही थी, तो कोई सदस्य मुंबई में फ़िल्म बना रहे थे या फिर कोई वहीं बैठकर ऊँच रहे थे।’
‘तो क्या हमारी संसद भी स्वार्थी से ऊपर नहीं उठी है? क्या संसद भी जनता के सुख-दुःख से नहीं जुड़ी है?” मैकेनिक ने पूछा।
संसद की बीमार घड़ी ने दर्दभरी आवाज में कहा-‘मिस्त्री जी! आप अब भी ऐसा मानते हैं यह आपकी महानता है। इस देश की सारी जनता ही ऐसा मानती है, वह ऐसा मानती भी रहेगी। शायद हमेशा. ऐसा ही मानती रहे। दरअसल अपनी परंपरागत जनता का विश्वास बहुत गहरा है, इस विश्वास की जड़ें बहुत गहरी हैं। यह विश्वास ह उसकी सबसे बड़ी ताकत है। इस विश्वास का टूट जाना अपने आप बहुत बड़ी दुर्घटना होगी। संसद की घड़ियों ने हमेशा चाहा है कि विश्वास सदा बना रहे, लेकिन आज जनता और संसद के बीच फ़ासला बढ़ता जा रहा है। संसद सदस्यों के मन सिकुड़ते जा रहे हैं व उनके दिमाग संकुचित होते जा रहे हैं। इससे संसद का गौरव घटा है। संसद की घड़ियों के लिए यह हालत काफी चिंता की बात है और सारी घड़ियाँ बहुत निराश हो गई हैं।’
इस घटना को अभी बहुत अधिक दिन नहीं हुए थे और उधर घड़ियों की हड़ताल हो गई। मैं समझता हूँ घड़ियों की हड़ताल का एक बड़ा कारण यह भी हो सकता है।” 6
एन.एम.टी. के इंचार्ज इंजीनियर ने अपनी बात खत्म करने में पहले अपने बचाव में भी कुछ कह लेना काफ़ी जरूरी समझा, वह बोला-
“यह सूचना मुझे मरम्मत विभाग के मिस्त्री ने दी है। उसने जो कुछ बताया, वही मैंने आपको बिना किसी जोड़ तोड़ के यूँ का यूँ बताया है। बड़े साहब को कुछ बुरा लगे तो कहना मान करें।”
इंजीनियर साहब को अपने बचाव का पूरा खयाल था और बड़े अफ़सरों को वे किसी भी कीमत पर नाराज नहीं होने देते थे। उनके इस बयान में भी उनकी यह सावधानी साफ़ झलकती थी। वे खुद किसी बात के लिए जवाबदार नहीं रहे थे। सारी बात उन्होंने मरम्मत विभाग के मैकेनिक पर थोप दी थी। इस बात को उन्होंने जोर देकर कहा था कि मिस्त्री की बात को उन्होंने यूँ का यूँ बिना किसी जोड़-तोड़ के’ कहा है। इस पर अगर बड़े साहब को कुछ बुरा लगे ॥12 तो उन्होंने माफ़ी माँग ली थी। सीधे बड़े साहब से ही यूँ माफी चाहने का एक और मतलब भी था बड़े साहब के बड़प्पन और रोब को स्वीकार करते हुए उन्हें खुश करने का मतलब इंजीनियर साहब इस बरस की नौकरी में मक्खन लगाने और मतलब हल करने की कला में सिद्धहस्त हो गए थे।
इंजीनियर साहब ने अपनी बात खत्म की। समिति के अफसर ने सरकारी बड़ी में लिखा हुआ बयान सुनाना शुरू किया। बयान में लिखा था-
“संसद भवन की घड़ियाँ अभी कुछ महीने पहले बीमार रहने लगी थीं। उनके पुर्जों में एक खास तरह की थकान पाई गई थी। बीमार घड़ियाँ निराश थीं। उनका कहना था कि संसद को जनता से जोड़े रहने के लिए वे सदैव सही समय देती रहीं, लेकिन संसदवालों को जनता के सुख-दुःख की, उसके भले-बुरे समय की फिक्र नहीं रही। जो लोग सत्ता में आए उन्होंने वादे भुला दिए। भारत की संसद की घड़ियाँ हताश हुई और उन्होंने सत्याग्रह कर दिया। घड़ियों की हड़ताल शुरू हो गई।’
संसद की घड़ियों का बयान सुनकर सभी घड़ीसाज प्रसन्न हुए। उनके सामने धीरे-धीरे यह बात साफ हो चली थी कि सारे देश की घड़ियों ने जनता की हिमायत का झंडा अपने हाथ में ले लिया है। घड़ीसाजों की उत्कंठा बढ़ी थी। वे उतावले थे कि बाकी शहरों के घड़ीसाज क्या खबर लाए हैं। उन सबने खुशी में झूमते हुए कहा कि अब आगे की बात भी सुन ली जाए।
समिति के अफ़सर ने आगे की कार्रवाई के लिए कागजों में आगे के नाम देखने शुरू किए। अभी तक नाथद्वारा, कानपुर, काठियावाड़ व लेह-लद्दाख के घड़ीसाजों के बयान बाकी थे।
घड़ियों की हड़ताल के सभी भाग यहाँ देखें !
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