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हीरे की चोरी

अकबर की इच्छा थी कि बीरबल हमेशा दरबार में उपस्थित रहे। विशेष रूप से जब आर्थिक नीति की चर्चा हो। अकबर के पास लोग आते थे। वे अपनी समस्यायें उसके सामने रखते। बादशाह उन समस्याओं को दूर करने में उनकी मदद किया करते थे। बीरबल इस कार्य में बादशाह का साथ देता था। एक बहुत चालाक ठग था। वह धनी व्यापारियों का मित्र बन जाता था। जब धनी व्यापारी उस पर पूरा-पूरा भरोसा कर लेते थे तो वह उनको इस प्रकार ठगता था कि कभी पकड़ा नहीं जाता था।

एक बार उसने एक धनी व्यापारी को मित्र बनाया और व्यापारी को थोड़ी भी भनक न लगी कि वह उसको ठग लेगा। वह ठग के प्रसन्नचित व्यक्तित्व से आकर्षित हो गया। जब ठग ने व्यापारी से पूरा भरोसा पा लिया तब ठग ने व्यापारी को अपने घर दावत पर बुलाया।

उस ठग के कुछ दूसरे मित्र भी उस शाम को भोजन के लिये आमन्त्रित हुए। ठग ने सबके लिये शानदार व स्वादिष्ट भोजन तथा उम्दा शराब परोसी। आनन्दमयी भोजन के पश्चात् वे अपने-अपने घर लौट गये।

अगले दिन ठग उस व्यापारी के घर गया और उस पर घर से हीरा चुराने का आरोप लगाते हुए कहा, “मुझे वह हीरा नहीं मिला जो उसी कमरे में रखा था जहाँ तुम बैठे थे।”

व्यापारी हक्का-बक्का रह गया। उसने कोई भी हीरा चुराने से इंकार करते हुए कहा कि उसने तो हीरा देखा तक नहीं।

जब बात न बन पायी तो वे बादशाह अकबर के दरबार में गये। बादशाह के सामने ठग ने दावा किया उसके पास गवाह हैं जिन्होंने व्यापारी को हीरा चुराते देखा था।

पूरी कहानी सुनने के पश्चात् अकबर बीरबल की ओर मुड़कर बोले, “क्या तुम बता सकते हो कौन दोषी है?”

बीरबल ने कहा, “महाराज, मुझे सोचने का मौका दीजिये।”

कुछ क्षण पश्चात् बीरबल ने एक नौकर से चिकनी मिट्टी मंगाई। तत्पश्चात् उसने मिट्टी को दो भागों में बांटा और एक-एक भाग दोनों गवाहों को दे दिया फिर उन्हें अलग-अलग कमरों में ले जाया गया और प्रत्येक को बताया गया कि उन्हें मिट्टी का ऐसा ही आकार तैयार करना है जैसा चुराये गये हीरे का आकार था।अब प्रत्येक गवाह के पास मिट्टी का एक-एक ढेर था।

किन्तु उन्होंने कभी हीरा नहीं देखा था, उन्हें झूठी गवाही के लिये रिश्वत दी गई थी।

पहला गवाह एक नाई था, उसे अपने पिता के शब्द याद आ गये, ‘नाई के लिये उसका उस्तरा ही हीरा होता है।’ उसने जल्दी से मिट्टी के ढेर को उस्तरे के आकार में बदल दिया।

दूसरा गवाह दर्जी था। उसने कल्पना करने की कोशिश की कि हीरा कैसा होता है। लेकिन उसकी समझ में न आया कि हीरा कैसा होता है। काफी सोचने पर उसे उसकी माँ की बात याद आयी कि उसकी माँ कहा करती थी कि ‘एक दर्जी के लिये एक सूंई इतनी कीमती होती है जितना कि हीरा!’

उसने मिट्टी से सूंई का आकार बना दिया।

जब दोनों ने अपना कार्य कर लिया तो उन्हें अकबर के पास लाया गया।

उन्होंने अकबर को दिखाया कि चुराया हुआ हीरा कैसा दिखता था। एक उस्तरे के जैसा और एक सूई के जैसा!

बीरबल बोला, “यह साबित हो गया है कि इन्होंने कभी हीरा नहीं देखा और हम जान गये हैं कि झूठ कौन बोल रहा है?’ और फिर अकबर ने ठग को जेल की हवा खिलाने का आदेश दिया।

ऊपर आए कठिन शब्दों के अर्थ नीचे दिए गए हैं-

मुझे उम्मीद है सभी पढ़ने वाले मित्रों को हीरे की चोरी कहानी पसंद आई होगी ऐसी ही मजेदार कहानी हम आपके लिए रोज लेके आतें हैं, मजेदार कहानी सुनने के लिए जुड़े रहिए हमसे , और यदि आपके पास भी अपनी कहानी है तो आप हमे भेज सकतें हैं।

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